इसी चित्रकूट में श्री रामचंद्र जी ने माता पिता द्वारा दिये गये 14 वर्ष के वनवास में 12 वर्ष यहीं गुजारे थे।
महर्षि अत्रि व पत्नी अनुसूया की यह पवित्र तपोस्थली थी । यह धर्म की नगरी कही जाती है। संत शिरोमणि तुलसीदास जी ने में रामचरितमानस में चित्रकूट का बहुत ही मनोहारी व विशद वर्णन किया है ।अपने 14 वर्ष के वनवास में जब श्री रामचंद्र जी बाल्मीकि जी के आश्रम में जाकर उनसे अपने निवास स्थान के लिए पूछा तो फिर बाल्मीकि जी ने कहा ,
चित्रकूट गिरि करहु निवासू ,तहँ तुम्हार सब भांति सुपासू ।।
चित्रकूट महिमा अमित कहीं महामुनि गाइ ।
संत शिरोमणि तुलसीदास जी ने रामचरितमानस में बहुत ही अच्छा वर्णन किया है । चित्रकूट में बहुत से घूमने के स्थल हैं । रामचंद्र जी के वहां पर 12 वर्ष रहने के कारण चित्रकूट का कण-कण एक परम पावन पवित्र भूमि बन गया है।प्रकृति ने प्रभु राम जी के आगमन की खुशी मे चित्रकूट को दोनो हाथो से प्राकृतिक सम्पदा वारी है।
मान्यतानुसार यहां जो प्राण त्यागेगा सीधे बैकुंठ जाएगा ।वैष्णव, शैव्य, शक्ति तीनों के उपासको ने अपनी तपस्थली बनाई है। तीनो के आराध्य देव भी विराजमान हो अपने साधकों को आध्यात्मिक विभुतियो से कृतकृत्य करते हैं ।
चित्रकूट धाम कर्वी के नाम से उत्तर प्रदेश मे मंडल है यह उसी में स्थित है। यह इलाहाबाद से 120 किलोमीटर है कर्वी से मात्र 8 किलोमीटर है यह विंध्य पर्वत श्रंखला में आता है यहां पर कामदगिरि पर्वत है । पयस्वनी मंदाकिनी के नाम से गंगा है ।अनेक मनोरम घाट वा मंदिर हैं ।यहां पर अनेकों संप्रदायों के मठ और अखाड़े हैं। यहां पर एक तुलसी पीठ भी बनाया गया है जिसके श्री रामभद्राचार्य जी पीठाधीश्वर हैं ।
रामघाट ,राघव घाट व भरत घाट है।
चित्रकूट की यात्रा में हम सबसे पहले चलते हैं रामघाट ।कर्वी रेलवे-स्टेशन व बसस्टैड से रामघाट को बस, टेम्पो,टैक्सी ई रिक्सा जैसे साधन आसानी से उपलब्ध हो जाते है मात्र 8-10 किलोमीटर की दूरी है ।
राम घाट********
राघव घाट के उत्तर दिशा के घाट को रामघाट कहते हैं । इसी रामघाट मे श्री राम जी स्नान करते थे ।
आइ नहाए सरित बर सिय समेत दोउ भाइ । (रामचरितमानस)
तुलसीदास जी ने हनुमान जी की प्रेरणा से यहीं पर रामचंद्र जी के साक्षात दर्शन किये थे लेकिन तुलसीदास जी उनको पहचान नहीं पा रहे थे तब हनुमान जी ने तोता का स्वरूप धारण कर उनको ये दोहा पढ़ते हुए पहचान बताई थी ।
चित्रकूट के घाट में भई संतन की भीर। तुलसीदास चंदन घिसे तिलक देत रघुवीर
घाट मे शुकरूपी हनुमान जी की प्रतिमा बनी हुयी
है ।
राघव घाट*****
इस घाट में महापुरुष श्री रामचंद्र जी ने अपने पिता दशरथ जी का तर्पण कर पिंडदान किया था । । जो पुण्य श्राद्ध संस्कार का फल्गु नदी गया बिहार में मिलता है वही राघव घाट में किए पिंडदान का फल मिलता है । यह रामघाट का दक्षिणी सिरा है और चार दिव्य नदियों का संगम है । सीता मां के अंश से उत्पन्न गायत्री गंगा, वहां पर किसी समय कामदगिरि पर्वत के ब्रह्मकुंड स्थान से निकली सरयू ,सतना जिले के वरौधा के पास, उद्गम स्थल दूध सदृश जलवाली मां पयस्वनी व अत्रि आश्रम से मन्दाकिनी के नाम से आई गंगा का संगम स्थल था । पिंड दान करने के कारण और 4 नदियां मिलने के कारण ही इसे राघव प्रयाग नाम मिला था । अब केवल मंदाकिनी धारा ही शेष बची है ।
भरत घाट *****
मान्यतानुसार यहां भरत जी जब राम को मनाने आये थे तब सभी गुरुजनो व भरत जी ने यहीं पर स्नान किया था ।तीनो घाट पास-पास अगल-बगल हैं ।
जय श्रीराम।