मन्दाकिनी नदी
नदी के विहंगम दृश्यों पर नजर डालने से यहां के घाट बनारस की याद ताजा कर जाते हैं । यहां शाम को बनारस की ही तरह आरती और कीर्तन होते है ।दीपावली अमावस की काली रात मे प्रज्वलित दीपों से मन्दाकिनी के रामघाट की शोभा अमरपुरी सदृश अलौकिक मनोहारी होती है ।
मंदाकिनी नदी की महिमा *****
मंदाकिनी बहुत ही पवित्र नदी है और इसको गंगा का ही रूप माना गया है
"सब सर सिंधु नदी नद नाना मंदाकिन कर करहिं बखाना ।
उदय अस्त गिरि अरु कैलासू मंदर मेरु रस सकल सुर बासू "।
इसकी महिमा का वर्णन सभी समुद्र, नदियां ,तालाब सभी मंदाकिनी की महिमा का यशगान करते हैं ।
"सुरसरि सरित नाम मंदाकिनि।
सो सब पातक पोतक डाकिनि "।।
ये मंदाकिनी ऐसी डाकिनी के समान है जो सभी पापों की संतान को खा डालती है इसमे स्नान करन से पाप समूल नष्ट हो जाते है । यहाँ पर नौकायन का आनन्द भी लेते हैं। चांदनी रात मे इसका नजारा कुछ दूसरा ही होता है ।घाट मे केवट अपनी सजी-सजाई नाव लिये खड़े रहते हैं ।
घाट के सामने में यहां पर चरखारी मंदिर और भरत मंदिर हैं लेकिन वह सभी जीर्ण शीर्ण अवस्था में है ।
मत्यगजेंद्र नाथ जी का मंदिर*****
यहां मत्यगजेंद्र नाथ स्वामी जी के रुद्राभिषेक की अत्याधिक मान्यता है। इन को चित्रकूट के क्षेत्रपाल का दर्जा प्राप्ति की मान्यता के कारण तीर्थयात्री मंदाकिनी के जल मे स्नान कर इनका जलाभिषेक व दर्शन करके ही अपनी चित्रकूट यात्रा की शुरुआत करते हैं।
मंदिर मे चार रुद्रावतार ज्योतिर्लिंग हैं ।1--सतयुग में एक स्वयंभू मूर्ति जो ब्रह्मा जी द्वारा किये यज्ञकुंड से प्रकट हुई थी ।स्वयं ब्रह्मा जी द्वारा स्थापित है ।
2--दूसरी रावण के पिता विश्वश्रवा द्वारा स्थापित की गयी है ।
3--तीसरी अत्रि ऋषि द्वारा स्थापित की गई है ।
4--चौथी मूर्ति की श्री राम जी ने स्थापना की थी ।
महालिंग प्रतिष्ठाप्य शाम्भव भूरि भावनः।
मत्तगेन्द्रेति नामेद क्षेत्रपाल समादधे (बृहद)
यहां बहुत से श्रद्धालुओं की मन्नत पूरी होती हैं ।
पुरानी लंका********
रामघाट के सामने के घाट के स्थान को पुरानी लंका बोला जाता है नयी लंका कुबेर ने बनवाई थी जिस पर रावण ने अधिकार कर लिया था ।यही रावण के पिता रहते थे ऐसी मान्यता है ।
रामघाट से आगे जाने पर 2 रास्ते जाते हैं बायीं ओर का सतना बस स्टॉप, प्रमोदवन, जानकीकुंड ,आरोग्यधाम रामदर्शन से होता हुआ सतना (मध्यप्रदेश) को जाता है ।
दूसरा दाहिनी ओर गायत्री शक्तिपीठ से होता हुआ कामदगिरि परिक्रमा को जाता है ।
क्षेत्रीय भाषा मे कामतानाथ स्वामी कहा जाता है ।