भरतकूप*******
भरत जी जब रामचंद्र जी को मनाने अयोध्या से चित्रकूट आए थे तब उन्होने रामचंद्र जी के राज्याभिषेक के लिए साथ में सभी तीर्थों का जल ले लिया था लेकिन प्रभु पित्राज्ञा से 14 वर्ष के वनवास के लिए दृढ़ प्रतिज्ञ थे ।
भरत कूप
तब भरत जी ने अत्रि ऋषि की परामर्शानुसार अपने साथ में लाए हुए जल को एक कूप में रख प्रभु श्रीराम की खंड़ाऊ लेकर लौट गए थे । यहां पर राम सीता लक्ष्मण भरत शत्रुघ्न जी की धातु की मूर्तियां दर्शनीय है ।वास्तुशिल्प के अनुसार यह बहुत ही प्राचीन मूर्तियां बताई जाती हैं ।
इस स्थान पर स्नान करने से सभी तीर्थों का जल होने के कारण सभी तीर्थों के स्नान का पुण्य मिल जाता है ।यह इलाहाबाद चित्रकूट खजुराहो मार्ग पर पड़ता है । रामघाट से लगभग 12- 13 किलोमीटर दूर है ।
कोटि तीर्थ *******
यहां पर एक कोटि मुनीश्वरों ने रामचंद्र जी के दर्शन हेतु तप किया था । यह संकर्षण पर्वत के पूर्व दिशा में स्थित है समस्त पापों का निवारक स्थान कहा जाता है । यहां पर भगवान शिव जी भी माता गौरा के साथ रहे थे । यहां दर्शन मात्र से सहस्त्र गोदान का फल मिलता है। रामघाट से पूर्व 6 मील दूर पर्वत पर स्थित है । यहां एक शिव जी का मंदिर है इस स्थल को सिद्ध बाबा का आश्रम भी कहते हैं ।
इसी संकर्षण पर्वत में पास में सोम तीर्थ सूर्य तीर्थ ,वायु,यम व अग्नि आदि पंच तीर्थ हैं । पर्वतीय मार्ग में सरस्वती नदी मिलती है ।गृद्धाश्रम, सिद्धाश्रम व मणिकर्णिका आदि आश्रम हैं ।कुछ दूरी पर ही बृह्मपदतीर्थ है ।
देवांगना *******
इसी पर्वत पर कोटि तीर्थ से लगा देवांगना है । यहाँ के घुमावदार रास्ते मसूरी की याद ताजा कर जाते है ।मान्यता है कि जब श्री रामचंद्र जी 14 वर्ष के वनवास में यहां पर आए तो सभी देव अप्सराएं उनके दर्शनार्थ यहीं पर रुकी थी ।
देवलोक की अप्सरा मेनका फिर यही बस गई थी । यह स्थान कोटि तीर्थ से लगभग 1 किलोमीटर दक्षिण की ओर पड़ता है।यहीं इन्द्र पत्नी शची भी रुकी थी ।यहां देवकन्या ने तप किया था जो इंद्र की बहू जयंत की पत्नी थी । जंगली पशु व डाकुओं के भय से पहले यहां पर लोग नहीं आते थे पर अब जाते हैं । यह साधकों के लिए परम शक्तिशाली तपस्थली है ।