भरत मिलाप *********
बच्चो रामचन्द्र जी पिता की आज्ञा मानकर 14 वर्ष को पत्नी सीता व भाई लक्ष्मण के साथ वन को चले जाते अयोध्या में कैकेयी पुत्र भरत व सुमित्रा नन्दन शत्रुघ्न लौटकर जब आते हैं तो उन्हें दशरथ जी के बारे में और रामचंद्र जी के वनवास का हेतु खुद का होना पता लगता है , वह दशरथ जी का क्रिया कर्म करने के बाद सब के बहुत कहने पर भी राजगद्दी में न बैठ कर रामचंद्र जी को मनाने के लिए चित्रकूट आते हैं साथ में शत्रुघ्न गुरु वशिष्ठ सभी माताएं मंत्रीगण व असंख्य प्रजा भी जाती है । यह वही स्थान है जहां राम और भरत का मिलन हुआ था।
भरत राम की मिलन लखि ,
बिसरे सबहिं अपान ।
पाषाण शिला तक पिघल गई थी कहने का अर्थ है जो ह्रदय से बहुत कठोर थे उनके ह्रदय भी इस प्रेम की पराकाष्ठा के मिलन की गर्मी से मोम जैसे पिघल गए थे । उनके मिलन की साक्षी पिघली शिलाओं पर राम सीता लक्ष्मण भरत जी चरण चिन्ह आज भी अंकित देखे जा सकते हैं ।
लक्ष्मण पहाड़ी*******
पर्वत के दक्षिणी भाग में छोटी सी पहाड़ी है इसे लक्ष्मण पहाड़ी कहते हैं। यहां पर शिखर में लक्ष्मण जी का मंदिर बना हुआ है ।मंदिर में एक कुंड है जो हमेशा जलापूरित रहता है । मंदिर के बरांडे में बने स्तंभों को लोग लक्ष्मण जी का स्वरूप मानकर भेंटार्चन करते हैं। जब प्रभु राम जी और माता जानकी शयन करते थे तो जंगली प्राणियों से रक्षार्थ धनुष बाण लेकर लक्ष्मण जी बैठते थे ।रामचरितमानस में चौपाई है
कछुक दूरी धरि बान सरासन,
जागन लगे बैठि वीरासन ।
यहां पर रोपवे मार्ग भी बन गया है यदि सीढ़ियों से चढ़ने में असमर्थ है तो ट्रॉली से ऊपर जा सकते हैं ।ये परिक्रमा मार्ग मे ही पड़ता है ।
प्रमोद वन********
रामघाट के आगे 2 रास्ते हो जाते है ।दाहिनी ओर का कामदगिरि परिक्रमा मार्ग की ओर जाता है बायीं ओर का प्रमोदवन से रामदर्शन तक जाता है ।
रामघाट से बाईं ओर 1 किलोमीटर चित्रकूट सतना रोड पर सतना बस स्टॉप के आगे यह पवित्र स्थान है । यहां रीवा नरेश द्वारा निर्मित नारायण भगवान का मंदिर है ।यहां पर कल्पवृक्ष है जो विश्व में कहीं पर भी नहीं है ऐसी मान्यता है इसके नीचे परिक्रमा करने से मन्नत पूरी होती हैं । ये 500 वर्ष पुराना बताया जाता है । संतान कामना वाले यहां वृक्ष के तने मे कलावा धागा बांधकर व नारियल रखकर मन्नत मानते हैं पूरी होने पर यहां दर्शन करने आते
हैं ।
यहां पर जीवित्पुत्रिका शिवलिंगी का भी वृक्ष है जिससे पुत्र प्राप्ति की मनोकामना पूर्ण होती है । इसे संतान दायिनी वृक्ष कहा जाता है । कहा। जाता है रीवा नरेश ने संतान कामना से 108 कुंडी यज्ञ कराया था जिसके साक्षी दास हनुमान प्रमोद वन के सामने एक सिद्ध स्थान है।