कामदगिरि के पूर्व दिशा में एक संकर्षण गिरि
है ।
इसी पहाड़ी के शिखर पर स्थित हनुमान धारा में पहाड़ के सहारे टिकी हनुमान जी की विशाल मूर्ति है मूर्ति के ठीक ऊपर पहाड़ मे 2 कुंड हैं जिनका जल मूर्ति के सामने गिरता है । इसी पहाड़ी की एक शिला पर मारुति नंदन की आकृति उभरी हुयी है दक्षिण भुजा स्कंध भाग पर ऊपर झरने से जलधारा गिरती है ।
इस जलधारा को पाताल गंगा के नाम से जाना जाता है ।हनुमान जी को स्पर्श कर गिरने के कारण यह हनुमान धारा के नाम से प्रसिद्ध है । भीषण गर्मी मे भी इस जलधार से अनवरत शीतल जल गिरना रहस्य का विषय है जबकि पूरा पहाड़ तप्त होने से कोई भी अन्य जलस्रोत आस-पास नहीं दिखाई पड़ते हैं । इसका जलस्रोत पृथ्वी के अंदर से बताया जाता है ।
इस जल को रोग नाशक कहा जाता है इसमें अनेकों वनौषधियां व भूगर्भीय खनिज मिश्रित रहते हैं । हनुमान धारा नाम का यह स्थान बहुत ही मनोरम और हरीतिमा युक्त मनोहारी है । एक समय डाकुओ का ठिकाना होने के कारण श्रद्धालु अकेले जाने से डरते थे ।
मान्यता है कि लंका दहन के बाद आग की लपटों से दग्ध मारुति नंदन समुद्र में कूद पड़े थे पर इससे भी उनका दाह कम नहीं हुआ था तब राम राज्य में उन्होंने प्रभु श्री रामचंद्र जी से शारीरिक दाह को शांत करने का उपाय पूछा । श्रीराम जी ने चित्रकूट के बिंध्य गिरि पर निवास करने के लिए बताया तब से हनुमान जी यहीं विराजमान हो गये ।
पहाड़ी शिखर पर ही थोड़ी और ऊपर सीता रसोई है यहां माता सीता वनवास काल मे भोजन बनाती
थीं ।
एक दूसरी किवदंती है कि जब भगवान अपनी लीला निर्वहन कर गोलोकवासी होने लगे तो हनुमान जी ने भी इच्छा जताई तब भगवान ने कहा पवनपुत्र आपको तो यही रहना पड़ेगा आपको अशोक वाटिका मे सीता माता ने अजर-अमर का वरदान दिया था ।श्रीराम प्रभो की आज्ञा शिरोधार्य कर हनुमान जी संकर्षण गिरि पर विराजमान हुए तो भगवान ने वाण मारकर एक जलस्रोत निकाल दिया जो आजतक है उसका जल जाता कहां है यह भी अज्ञात है ।
यहां पर लाल पत्थर के संगमरमर से बनाई हुई 365 सीढ़ियां हैं अब तो यहां पर रोपवे का भी निर्माण हो गया है उड़न खटोला से यहां का दृश्य काफी मनोरम मनोहारी दिखाई पड़ता है ।
वनदेवी अयोध्या की कुलदेवी***
हनुमान धारा मार्ग पर लगभग दो ढाई किलो मीटर पर एक वनदेवी आश्रम है कहा जाता है कि जब रामचंद्र जी वनवास को आए तो उन की रक्षार्थ अयोध्या की कुलदेवी भी यही निवास करने लगी । अयोध्या कांड में चौपाई भी आई है *******
वनदेवी वनदेव उदारा ,
करिहहिं सास-ससुर समसारा ।
सीता जी स्नान करके इनका पूजन अर्चना करती थी उसके बाद ही यहां पर रसोई बना कर प्रथम उनका प्रसाद भोग लगाती ।