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बबंडर

18 अगस्त 2022

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Title-बवंडर 
ख्वाब भी कितना अजीब होता है, चलते हुए इंसान को सपनों की दुनिया में पहुंचा देता है। मैं ऐसा इस लिए कह रहा हूं कि जिन्दगी की कड़वी लेकिन सच्ची  बात भी यही है। अगर यह सपने न होते.तो शायद रिधम के तार टूट जाते। या फिर इंसान इतना अकेला हो जाता कि खुद की वास्तविकता नहीं समझ पाता। 
                                              सही ही तो है कि ख्वाब के पनाहगाह में इंसान खुद को इतना तो मजबूत कर लेता है कि सारी कायनात उसे छोटी लगने लगती है। वो हर रास्ते से रिश्ता बना लेता है, जो कि कभी उस से अंजान थे। तभी तो इक कवि के, इक लेखक के एवं एक विचारक के हृदय से निकला हुआ तरंग किसी को भी अपने में डूबो ले जाता है।


                      Thanks
                                   Madan Mohan (मैत्रेय)



साथ तो चलना ही चाहिए, यही तो जिन्दगी का मूल मकसद है।
पर वाह रे इंसान, अपनी ही फितरत से परेशान है, भूल जाता है, हां यही तो कहना श्रेष्ठ होगा कि इंसान कुदरत का बनाया हुआ प्रकृति के लिए नायाब सा तोहफा है।
बुढन काका अपने ही रौ में बोलते जा रहे थे।
सामने बैठे हुए गाँव वाले जिस में औरत मर्द, बच्चे बुढे सभी थे, ध्यान लगा कर काका की बातों को सुन रहे थे, पर एक वो था जो कि शायद बुधन काका की बातों को नहीं सुन रहा था, या फिर सुन कर भी अनसुनी कर रहा था।
हाँ वो खयालों की दुनिया में खोया हुआ था, ख्याल भी ऐसा जो कि किसी के भी जीवन में सतरंगी रंग बिखेर दें। नाम था राजीव, गाँव के ही सोहन ठाकुर का लड़का ,पढाई की थी बी काँम तक, लेकिन आरक्षण के मकर जाल में फंस कर रह सा गया था, पिताजी बोलते थे कि बेटा बिजनेस में आजमाईस कर, लेकिन कहते है न कि युवा खून के रंग ही अलग होते हैं।
वैसे रामपुरा गाँव प्राकृतिक दृष्टि से भरा पुरा गाँव है, उसपर सोहन ठाकुर आर्थिक दृष्टि से भरे पुरे और रसूख बाले इंसान है और जैसा कि हर पिता चाहता है, वैसे वो भी चाह रहे थे कि राजीव उनके सल्तनत को आगे बढाए। लेकिन राजीव की सोच ही अलग थी, वो गाँव की ही लड़की सान्या को दिल दे बैठा था और उसी को लेकर सपने बुनता रहता था। आज भी वो सपने की दुनिया में खोया था।
सान्या अनाथ लड़की थी, वो अपने बुढी माँ के साथ साधारण से घर में रहती थी।
                        गाँव का नियम था कि हर शनिवार को देश, धर्म और राजनीति पर परिचर्चा होता था, आज भी शाम को बरगद के पेड़ के नीचे परिचर्चा हीं हो रहा था, लेकिन राजीव तो बस सान्या के खयालों में खोया हुआ था। ऐसा नहीं था कि सान्या उसे नहीं चाहती थी, वो भी राजीव को दिल में बसा रखी थी, आखिर ऐसा हो भी क्यों नहीं, दोनों हीं गाँव की श्रेष्ठ जोड़ी थे।
मैं समझता हूं कि कदम दर कदम साथ चलने से ही समाज का, राज्य का और देश का संपूर्ण विकास संभव है, बोलने के साथ ही बुधन काका खासे, उनके खांसते ही राजीव की तंद्रा टूटी, फिर वो उठ कर खड़ा हो गया। उसने भी सोच लिया था कि वो भी आज बोलेगा, बल्कि बोल कर ही रहेगा। उसके मन में जो कड़वाहट भरा हुआ है, वो आज उसे बाहर निकाल हीं देगा।
                                  वो आगे बढा और चौपाल के करीब आ गया, वो कहना चाहता था सो कहता ही चला गया, आप लोगों ने सुना कि काका ने कहा कि सब साथ चले तो राष्ट्र का विकास तिगुनी गति पकड़ लेगा, लेकिन आज हालात बिल्कुल हीं अलग है। आज समाज हो, राज्य हो या फिर राष्ट्र हो, हर कोई अपने स्वार्थ की रोटियाँ सेंक रहा है, आज योग्यता से ज्यादा वोट समीकरण महत्वपूर्ण हो गए है। हर कोई हर एक दूसरे के हक की रोटी मार कर खा जाना चाहता है, आज समाज कई टुकड़ों में बंट चुका है। एक बिरादरी दूसरे बिरादरी से तिकरमबाजी करने से वाज नहीं आता, तो फिर सब का साथ सब का विकास कब होगा।
                        सुन कर भीड़ ने तालियां बजाई, तो राजीव के स्वर और भी ऊंचे हो गए! वो बोला, इसलिए मैं ने सोच लिया है कि मैं अपने जैसे लाखों युवकों से संपर्क करूंगा और नई रणनीति लाकर सब को साथ लाने की कोशिश करूंगा। हालांकि यह काम मुश्किल तो जरूर है, पर असंभव तो बिल्कुल नहीं।
                                        राजीव जब चुप हुआ तो पुरी गांव सभा उत्साहित होकर ताली बजा रही थी। आखिर सभा की समाप्ति हुई,
              शाम का हल्का सा धून्धलका छाने लगा था, चिड़ियां भी झुंड के झुंड घोसलों की ओर लौट रहे थे। गांव सभा समाप्त होने के साथ ही सभी गांव बासी घरों को लौट गए ,लेकिन राजीव! राजीव का मन तो चकोर की भांति था, जो अपने चंदा के उगने का इंतजार कर रहा था। शाम के धुंधले आवरण ने रात का अंधेरे का रूप ले लिया, मानो कि प्रकृति ने स्याह चादर ओढ ली हो। राजीव का दिल तेज रफ्तार से धड़कने लगा, तभी दूर कहीं कोयल ने मधुर सा राग छेरा, और इधर राजीव का दिल तेज गति से पेन्डूलम के कांटे की भांति हिलने लगा।
                       वो उठा और अमराई के झुंड की ओर बढ गया ,दिल की धड़कन ने मानो तो सौ की स्पीड पकड़ ली थी, एक अजीब सा एहसास था अपने प्रियतमा से मिलने का। वैसे तो वो दोनों रोज ही मिलते थे, लेकिन बिछड़ने की घङी युगों सा हो जाता था। सान्या और राजीव की जोड़ी थी ही अलग, बिल्कुल एक दूजे के लिए बने, एक दूजे में एकाकार और साकार रूप, और यह दिल ही तो है जिसने उसके कदमों की गति को बढा दी।
                                         गांव काफी विकसित है, रोशनी, पक्की सड़क और भौतिक सुविधाओं से लैस, लेकिन गांव से दूर अमराई में अंधेरा था, चंदा की शीतल चांदनी भी अमराई में फैले अंधेरे के दीवार को तोड़ने में असमर्थ थी। राजीव पहुंच हीं गया अमराई में, उसने देखा कि पेर के झुंड के पास कोई इंसानी छाया है, बस वो दौर कर उस छाया को बांहों में भर लिया।
रुको बाबा! इतने उतावला क्यों हो रहे हो।
उतावला ना हो तो क्या करें, दिल है कि मानता नहीं, राजीव ने शरगोशी की!
लेकिन मैं कहां भागी जा रही, मैं तो बस तुम्हारी हूं और तुम्हारी रहूंगी, सान्या खनकते हुए शब्दों को तोल कर बोली।
यही तो, यही तो हमेशा मुझमें भय समाया रहता है कि तुम मुझसे कहीं दूर ना हो जाओ, उतावला होकर राजीव बोला और सान्या को आगोश में समेट लिया। दोनों एक दूजे के बांहों में खो से गए, पवन देव भी ठंढी हवाओं के आवेग से दोनों के पवित्र प्यार को आशीर्वाद दे रहे थे! जब दोनों का जी हल्का हुआ तो दोनों एक दूजे से अलग हुए। तब राजीव बोला, चलो सान्या तालाब के मूंडेर पर बैठते है।
चलो, सान्या ने संक्षिप्त सा उत्तर दिया।
दोनों तालाब के किनारे आकर एक दूजे के करीब बैठ गए।
फिर उन दोनों के बीच गहरी चुप्पी सी छा गई।
चंदा की रोशनी में तालाब का चमकता पानी और दूर झींगुर की आवाज, मानो वातावरण में छाए चुप्पी को भेदने की कोशिश कर रहा था। दिशाएँ मौन थी। राजीव कभी- कभी कंकर फेंक कर तालाब से अपने मौन प्रश्नों का उत्तर पाने की कोशिश कर रहा था।
लेकिन व्यर्थ, प्रश्न को तो खूद हीं सुलझाना परता है और इंसान अपने प्रश्नों का खुद ही उत्तर दाई होता है। अंधेरा धीरे- धीरे गहराता जा रहा था, और जटिल होते जा रहे थे वो प्रश्न, जो उसे उद्वेलित कर रखे थे!
तो क्या सोचा है तुमने राजीव? सान्या ने प्रश्नों के तीर चलाएं।
किसके बारे में! राजीव चिहुंक कर बोला।
अपने बारे में, हम दोनों के बारे में, कब तक यूं ही छुप -छुप कर मिलेंगे हम दोनों ?हम दोनों के प्यार को परवान चढे चार वर्ष हो चुके है। आखिर कब तक हम यूं ही मिलते रहेंगे? सान्या उत्तेजित होकर बोली।
मैं समझ सकता हूं तुम्हारे भावनाओं को!
लेकिन समझने से हीं नहीं जीवन के अध्याय पुरे हो जाते है, बोलते -बोलते सान्या व्यग्र हो गई।
मुझे थोरा सा मौका और दो, राजीव गंभीर होकर बोला।
लेकिन कितना? सान्या और भी व्यग्र हो गई।
जानु विश्वास भी करो ना, मैं जल्द हीं कोई ना कोई रास्ता निकाल  लूंगा, बोलते वक्त राजीव के स्वर में ढृढता थी। एक पल को दोनों के बीच फिर चुप्पी का साम्राज्य छा गया! तब सान्या बोली कि हमें चलना चाहिए! रात काफी हो चुकी है।
बस !इतना हीं, राजीव लम्बी सांस लेकर बोला।
हां मेरे प्राणनाथ, सान्या चहक कर बोली।
तो चले, राजीव खड़ा होकर बोला, सुन कर सान्या भी उठ खड़ी हुई और दोनों एक दूसरे के बांहों में बांहें डाले पगडंडी पर बढ चले।
                               यह इश्क जो है न कुदरत का बनाया हुआ नायाब तोहफा है इंसान के लिए, लेकिन यह भी हकीकत है कि जब इंसान प्यार के जाल में फंसता है,तो लिपटता हीं चला जाता है। यह जो इश्क है न कितनों की हस्ती बना डाली और कितनों की हस्ती बिखेर दी, इश्क वो शै है, जिसके चाल को आज तक कोई समझ ही नहीं पाया।
                        खैर चाहे जो भी हो, है तो दिल का मर्ज बुरा, लेकिन इस के बीना जिन्दगी भी तो अधूरी है, तभी तो बरे-बरे तपस्वी, ज्ञानी, कवि और शायर इसके राहों में फना हो गए। फना होना अगर भँवरे का मुकद्दर है,तो इस भय से वो कलियों के पास जाना नहीं छोड़ता ना। शायद यही हाल सान्या और राजीव के दिल का भी था! गांव आ चुका था, चारों ओर रोशनी का साम्राज्य था ,ना चाह कर भी दोनों ने एक दूजे को आलिंगन में लिया, चुमा और अलग हो गए। सान्या अपने घर की ओर और राजीव अपने घर की ओर बढ चले।
                                   ठाकुर बिला की दस गांव में गूंज थी, राजीव जब बंगले में प्रवेश किया तो सामने ही ढ्योढी में सोहन ठाकुर आराम चेयर पर बैठे शिगार पी रहें थे। पुरा बंगला रोशनी से जगमगा रहा था।
राजीव को देख कर सोहन ठाकुर की भवें तन गई।
कहां से आ रहे हो वर्खुर्दार?
पापा! वो मैं दोस्तों के साथ, राजीव शालीनता से बोला।
मैं जानता हूं कि तुम सान्या से मिल कर आ रहे हो। रुआबदार स्वर में ठाकुर साहब बोले।
जी पापा! राजीव ने संक्षिप्त सा उत्तर दिया।
ठीक है खाना खा कर मेरे पास आ जाओ! इस बार ठाकुर साहब के स्वर में नर्मी थी।
जी पापा! बोलने के साथ ही राजीव आगे बढ गया।
ठाकुर बिला अंदर से अति भव्य था। राजीव जभी हाँल में पहुंचा, उसकी माँ सुनन्दा देवी भागती-भागती आई, वो सबसे ज्यादा राजीव को हीं चाहती थी! राजीव की एक बहन  थी शुरभी जो कालेज में रह कर पी एच डी कर रही थी। हलांकि सोहन ठाकुर के लिए दोनों हीं आँखों के तारे थे।
                          सुनन्दा देवी ने डायनिंग टेबुल पर खाना लगा दिया, तब तक राजीव फ्रेश होकर आ गया और चेयर पर बैठ कर खाने लगा। सुनन्दा देवी प्रेम से उसे खिलाने लगी, बीच- बीच में वो अलक मलक की बातें पुछती रही, जिसके जबाव में वो हां ना करता रहा, खाना खाने के बाद वो बाहर आ गया और ठाकुर साहब के सामने बैठ गया। थोरी देर तक दोनों के बीच चुप्पी छाई रही, जिसे ठाकुर साहब ने तोड़ा ।
राजीव।
जी पापा।
आगे क्या सोच रक्खे हो? बोलते वक्त ठाकुर साहब गंभीर थे।
मैं ने सोच लिया है कि सिस्टम से लड़ूंगा ! राजीव ढृढता से बोला।
लेकिन यह राह काफी मुश्किल है।
उसके बारे में सोचूंगा ,वो बेफिक्री से बोला।
बिना कोई योजना के तुम कभी भी सफलता हासिल नहीं कर पाओगे !ठाकुर साहब चिंतित होकर बोले।
पापा मैं जो भी करूंगा, आपके दिशा निर्देश में ही करूँगा। राजीव ढृढता से बोला।
                   सुन कर ठाकुर साहब के चेहरे पर शांति छा गई! थोरी देर तक दोनों ही आने बाले समय के पदचाप को महसूस करने की 
कोशिश में चुप हो गए। दोनों के बीच अजीब सी खामोशी पसर गई।
थोरी देर बाद ठाकुर साहब ने ही फिर चुप्पी तोड़ा ।
सान्या के लिए क्या सोच रखते हो?
जी पापा! मैं समझा नहीं, राजीव झिझकता हुआ बोला।
अरे बावले, मैं ने जान लिया है कि तुम दोनों एक दूजे को चाहते हो, दुनिया के नजरों से छुप- छुप कर मिलते हो! मैं नहीं चाहता कि तुम दोनों का प्यार यूं ही दम तोड़ दे। बेटे मैं ने दुनिया को करीब से देखी है।मैं ने अगर तुम्हारे सपनों के पंख काट डाले, तो मेरे हाथ कुछ भी नहीं आएगा! बेटे मैं औरो की भांति टूट कर बिखरना नहीं चाहता ,बल्कि मैं तुझमें खुद की तस्वीर देखना चाहता हूं। बोलते वक्त ठाकुर साहब काफी गंभीर थे।
ओह मेरे अच्छे पापा, यु आर सो ग्रेट! बोलने के साथ हीं राजीव उठा और ठाकुर साहब के कदमों के पास बैठ कर उनके गोद में सिर रख दिया। ठाकुर साहब उसके बालो में अंगुली फेरने लगे!
                                        सुबह- सुबह ठाकुर बिला में काफी चहल कदमी थी! नौकर चाकर भाग-भाग कर तैयारी में जुटे थे। जी नहीं आप लोग सोच रहे होंगे कि यह उत्सव की तैयारी है,तो ऐसा नहीं था! बात तो यूं था कि राजीव ने अपने युनिवर्सिटी के सभी छात्र-छात्राओं को बुलाया था और इसमें ठाकुर साहब की पुर्ण सहमति थी। दस बजते- बजते ठाकुर कंपाउंण्ड विद्यार्थी से भर गया! आयोजन का कमांड निखिल और सम्यक ने संभाला था। उत्सुकता बस गांव के भी अधेर, बुढे और बच्चे जमा होने लगे थे।
                             धीरे -धीरे वो वक्त भी आ गया जिसका सभी इंतजार कर रहे थे! सभी उत्सुकता के साथ ठाकुर बिला के लाँन को देख रहे थे। तभी सम्यक उस टेबुल के पास आकर खड़ा हो गया और माइक थाम कर बोला।
लेडीज एंड जेंटल मैन,मैं शुरुआत करना चाहता हूं उन यक्ष प्रश्नों को जो कि हम सभी के लिए विष बेल बन चुका है। उससे पहले हमारे प्रिय मित्र राजीव आ कर आप लोगों को संबोधित करेंगे।
                   सुन कर राजीव एक पल को खामोश रहा, लेकिन जब ठाकुर साहब ने इशारा किया तो वो आगे बढा। टेबुल के पास आकर माइक थामता हुआ बोला! मेरे प्यारे साथियों हम अनु ग्रहीत है और आप लोगों के यहां आने पर हार्दिक अभिनंदन करते है। मैं जिस गाँव में पला-बढा हूं, जहां पर शिक्षा प्राप्त की है उन सभी जगहों पर हमें भरपूर प्यार और सम्मान मिला है और यही कारण है कि आप लोग मेरे एक बुलाने पर हीं यहां आकर खड़े हो गए है! आगे हमारे प्रिय मित्र सम्यक बोलेंगे।
                       सुन कर सम्यक एक पल को चुप रहा फिर माइक थाम कर बोला। जो मैं आप लोगों को बताने जा रहा हूं, मुझे राजीव ने उसके फैक्ट समझाए थे! सुन कर एक पल को मैं भी अवाक हो गया। 
समझ नहीं आया कि क्या प्रति उत्तर दूं। जब समझ आया तो परिणाम आपके सामने है! आप लोग मेरे सामने हैं। अब फैसला आप लोगों को करना है कि हमारा साथ देंगे कि नहीं?
                          हां माय डियर फ्रेंण्ड यह हमारा हीं नहीं, बल्कि आप लोगों के जीवन से भी जुड़ा है। यह यक्ष प्रश्न है, इस बार निखिल बोल रहा था! वो आगे जोश में बोला। यह कैसी विडंबना है कि भारत के राजनीति ने भारत के ही अंग को छिन्न-भिन्न कर दिया है! आज कुर्सी के लिए नेताओं ने समाज को तोड़ कर अनेक भागों में विभक्त कर दिया है। आज स्वार्थ की रोटी सेंकने के लिए आरक्षण रूपी रेवड़ी खुब बांटी जाती है। परिणाम टैलेंट धूमिल हो चुके है। आज नौकरी के लिए पढाई नहीं बल्कि जाति का प्रमाण पत्र चाहिए।
                                 हां और इस लिए आप लोग बताएं कि हमें क्या करना चाहिए! इस बार सम्यक उत्तेजित होकर बोला।
हम सभी मिल कर सरकार की नीतियों का विरोध करेंगे।
हां-हां हम लोग विरोध करेंगे! भीड़ ने एक साथ सहमति जताई।
                             हां और इस लिए हम लोगों ने योजना बनाई है कि हम लोग कल सुबह बाईक रैली निकालेंगे और जिला कलक्टरी तक जाएंगे। वहां पर सभा संबोधित करेंगे, वहां से ही आगे की योजना का प्रारुप तैयार करेंगे। निखिल मजबूत शब्दों में बोला।
                        भीड़ उत्साहित नजर आ रही थी! तभी बुधन काका भीड़ से उठ कर आगे बढ कर टेबुल के पास पहुंचे। माइक थामा और धीमे स्वर में बोले। पहले तो मैं ठाकुर साहब को साधुवाद देना चाहूंगा, जिन्होंने बच्चों के भावनाओं को समझा और इतना सफल आयोजन किया। साथ ही मैं आज आप लोगों को कहना चाहूंगा, आप लोग जो भी करना चाहतें हो समझदारी पूर्वक करो। हम लोगों का मार्गदर्शन हमेशा आप लोगों के साथ है।
                                    सुन कर ठाकुर साहब आगे आकर माइक थाम कर बोले। मैं समझता हूं कि आज युवा देश का भविष्य हैं, मैं उन में खुद की छवि देखता हूं और मैं आप लोगों के कदम से कदम मिला कर चलने की कोशिश करूंगा।
                                     ठाकुर साहब ने जब माइक रखा तो भीड़ किलकारी मार कर अपनी खुशी जता रही थी। क्रमशः बहुत से युवाओं ने अपने विचार रक्खे। आखिर में भोजन का क्रम चालू हुआ। धीरे-धीरे भीड़ छटने लगी थी।
                          सारे कार्यक्रमों को निपटाते हुए शाम हो गई, दिन भर की भागदौड़ से मानो सूर्य देव थकावट महसूस कर रहे थे और अस्ताचल में जाकर विश्राम करने की सोच रहे थे। आज ठाकुर साहब के घर पर मेहमानों का जमावड़ा था। सच और यही कारण था कि राजीव का दिल बल्लियो उछल रहा था। यह प्रीत वैरन है हीं ऐसी कि जब लग जाती है तो दिन का चैन और रातों की निंद उड़ जाती है, तभी तो इस प्रेम की लौ में राधा तरपती रह गई, और कृष्ण ने तो मानो अपने बांसुरी की आवाज को ही खो दिया!
                                          खैर जो भी हो, ना आज तक प्रेम के रहस्य को कोई समझ सका है, और ना ही कोई समझ पाएगा। शाम ने भी धीरे से अंधेरे के आगोश में शरण ले ली। व्याकुल हृदय को ठंढक सी मिली और राजीव सबसे छुपता-छिपाता गांव से बाहर अमराई की ओर बढ गया। पैर तो जमीन पर ही पर रहे थे! लेकिन खयाल उसे सान्या के पास खींच कर ले जा रही थी और पता ही नहीं चला कि अमराई कब आ गई। वो तो चौंक ही गया, दिल धक्क से रह गई, बात ही कुछ ऐसा था, सांस तेज-तेज चलने लगी। हां यह हुआ इसलिए कि सान्या ने उसे पीछे से बांहों में जकड़ लिया।
                                           यह जो दिल की आँखें है ना, तिलिस्म की तरह काम करती है, वो अपने दिलवर को बिन देखे ही पहचान लेती है। सांसे भी कहां कम है, दिल बालों के लिए सेंसर का काम करते है! फिजा में लाखों ही सुगंध क्यों ना हो। अपने दिलवर के गंध को पहचान हीं लेता है। राजीव ने धड़कते हुए दिल को संभालने का असफल प्रयास करते हुए बोला। सान्या, तुम भी ना किसी दिन मेरी जान लेकर ही मानोगी।
मरे तुम्हारे दुश्मन,सान्या ने राजीव के होंठों पर अंगुली रख कर बोली, जानु ऐसा तो फिर कभी ना बोलना। सान्या मानो आरजू कर रही हो, ऐसे बोली।
यह इश्क है ना, इसमें बरा हीं रिश्क है! दिलवर के होंठों से निकली हुई ऐसी कोई भी बात, जो कि बिछड़ने के बिंदु को इंगित करें। दिल तरप ही जाता है,सान्या को घबड़ाया हुआ देख राजीव ने उसे खींच कर बांहों में भर लिया और शरगोशी की। धत्त! पगली मैं तो मजाक कर रहा था और एक तू है कि घबड़ा ही गई।
घबड़ाऊँ नहीं तो क्या करुं? तुम क्या जानो कि दिल का मर्ज क्या होता है? मैं विरहन सी तुम्हारी वाट देखती रहती हूं।
जी हां, मैं क्या जानु, जानता तो मैं यह हूं कि तुम्हारे बिना सांस लेने की दुश्वारियां है। इसलिए तो तुम्हें घर ले जाने की कर ली तैयारियां है। राजीव ने मुस्करा कर बोला। फिर वो सान्या के होंठों को अपने होंठों के बीच फंसा लिए और प्रेम सुधा पीने की कोशिश करने लगा। मिनट दर मिनट गुजर गए लेकिन प्यास नहीं बुझनी थी, सो नहीं बुझी। काफी समय बाद दोनों एक दूसरे से अलग हुए और तालाब के मूंडेर पर एक दूजे के पास सट कर बैठ गए। मानो फिर कभी अलग नहीं होंगे। यह प्रेम की ही ज्योति है, जो कि भगवान को भी विवश कर देता है। दोनों यूं ही अलक-मलक की बातें करते रहे,यूं ही समय गति से चलता रहा और वह वक्त भी आ गया। जब दोनों को अलग होना था।
                                         यह इश्क वो दरिया है, जहां डूब के जाना है, दो गुमनाम मुसाफिर है और दिल का रोग पुराना है। सच यही तो होता है। कब वक्त निकल गया, पता ही नहीं चला और समय आ गया अलग होने का। दिल नहीं मानता, लेकिन दुनिया की बंदिशें है। वो दोनों धड़कते दिलो से अलग हो गए।
                                              सुबह होते ही ठाकुर साहब के बंगले के पास बाईक सवार नवयुवक इकट्ठा होने लगे। दस बजते- बजते तो जहां नजर डालो, वहां तक बाईक और युवाओं का ही झुंड नजर आ रहा था। रैली का वक्त ग्यारह बजे निर्धारित की गई थी। वो वक्त भी आ गया, जब युवाओं को मुख्य सड़क होते हुए जिला मूख्यालय पहुंचना था। निखिल, सम्यक और राजीव ने रैली की बागडोर संभाली। आगे ठाकुर साहब अपनी जिप्सी में थे,जिप्सी पर युवा मोर्चा का बैनर लगा था!
                                     तय समय पर युवा मोर्चा ने अपने गंतव्य की ओर प्रस्थान किया। युवा शक्ति वो है, जो देश की दशा और दिशा तय करती है! सच भी तो है, यह युवा शक्ति ही तो है,जब अपने पर आ जाए, मजबूत से मजबूत राजनीतिक पार्टी को भी घुटनों पर ला देती है। खैर जो भी हो, अभी तो हो यह रहा था, कि यह रैली जैसे-जैसे आगे बढ रही थी, एक विशाल मानव समूह का रूप लेती जा रही थी। ठाकुर साहब इस विशाल जन समूह को देख कर फूले नहीं समा रहे थे, जबकि युवाओं का जोश उनके जोशीले नारे का रुप ले रहा था। कमी थी, तो बस किसी भी बात को तुल देने बाले मीडिया की। वो भी पूरा हो गया!
                      कहते हैं ना कि समाज में हलचल हो और मीडिया हाउस अछूती रहे। यह सम्भव ही नहीं है,तुरन्त ही मीडिया हाउस की टीम भी पहुंच गई। वे लोग इस युवा जोश को कवर करने में लग गए । लेकिन उनका उद्देश्य उनके मूलभूत भावनाओं को कवर नहीं करना, अपितु अपने टी आर पी को बढाना था, जिसमें वो लोग अंशतः सफल भी हो रहे थे। धीरे-धीरे यह काफिला जिला मूख्यालय पहुंच चुका था! आनन फानन में मूख्यालय के सामने मंच का प्रबंध हो गया। पुलिस बल को तो समझने में ही समय लग गया कि यह जो बला है, विशाल जन समूह के रुप में रूपांतरित होकर क्योंकर आई है। थोरी ही देर में पुलिस के आला अधिकारी भी आ गए, माजरा समझते उन्हें देर नहीं लगी। अब उन लोगों का ध्यान उमर आए जन समूह को कंट्रोल करना और कार्यक्रम को सुचारु रुप से संपन्न कराना था।
सो वे सभी व्यवस्था कायम रहे, इस प्रयास में लग गए।
                                           मंच पर जो युवाओं का नेतृत्व कर रहे थे, वो लोग आ-आ कर अपने विचारों को रखने लगे। मीडिया हाउस उन लोगों के वक्तव्य का लाइव प्रसारण कर रही थी। समय की गति बढती रही और उसी क्रम में भीड़ भी बढ रही थी। बढते हुए भीड़ को देख कर पुलिस बालो के हाथ पांव फुल गए थे, तभी सभा समापन के रूप में ठाकुर साहब मंच पर आए और अपने ओजस्वी स्वर में बोले।
साथियों मैं मानता हूं कि हम आपके बीते हुए कल है और मेरा मानना है कि बीते हुए कल के आवाज में आज की आवाज नहीं दवाई जा सकती।
                  मैं समझता हूं कि आज का आवाज यही है कि युवा प्रतिभा को आरक्षण रूपी तलवार से क्यों कर काटा जाए। क्या यही है सब का सम्मान, समान रूपी विकास, तो मैं कहूंगा कि नहीं, यह गलत है। आज राजनीतिक स्वार्थ सिद्धि के लिए समाज में विष बेल को बोया गया है, जो हमारे समाज को टुकड़े -टुकड़े विभाजित कर देगा, अतः हम लोगों ने निर्णय लिया है कि देश के कोने-कोने में जाकर इस व्यवस्था के खिलाफ आवाज को उठाएंगे, बोलो जय हिंद।
जय हिंद- जय हिंद।
                           सभा समाप्त होते-होते दोपहर ढलने लगा था। जैसे सूर्य देव जाते-जाते वातावरण में अपनी गर्मी और उष्णता छोर जाते है। सेम युवाओं की इस सभा ने किया था, राजनीति के केन्द्र बिंदु में हलचल ला दी थी। बाकी का काम मीडिया हाउस ने आग में घी डाल कर- कर दिया था। सभा समापन के समय ठाकुर साहब ने बोला कि आगे कि रणनीति हम आगे तय करेंगे और आप लोगों को इसके बारे में सूचना दी जाएगी। सभा का समापन हुआ, सभी अपने-अपने घरों की ओर लौट चले। लेकिन राजीव, राजीव तो कहीं खोया हुआ था, वो शॉपिंग मोल की ओर बढ चला। उसे सान्या के लिए मोबाइल, एसेसरीज एवं उपहार जो लेना था।
                                       राजीव के लिए शहर का वातावरण नया नहीं था। वो शहर में ही रह कर पढा लिखा था,वो सीधा शॉपिंग मोल में घुसा। मोल में काफी भीड़ थी, लेकिन उसे इन चीजों से कोई मतलब नहीं था। उसने तो सान्या के लिए मोबाइल ,लैपटाप और श्रृंगार की वस्तु  खरीदी। बिल पेमैंट की और बाहर निकलने लगा, लेकिन मीडिया वाले उसे सूंघते-सूंघते वहां पहुंच गए।
आप ही राजीव हो? आज तक की ऐंकर सुचिता अग्रवाल ने सीधा सा सवाल दागा।
यश मैं ही राजीव हूं, लेकिन आपकी तारीफ?
मैं सुचिता अग्रवाल, आज तक की ऐंकर!
बोलिए मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूं?
आपको मेरे सवालों के जबाव देने होंगे।
लेकिन क्यों? राजीव झल्ला कर बोला।
वो इसलिए राजीव बाबू कि आपने सिस्टम पर सवालात खड़े किए है, तो जबाव भी तो आपको हीं देना होगा। सुचिता मुस्करा कर बोली।
पुछिए! क्या पुछना है आपको।
मैं बस आपसे चंद सवाल करूंगी, जिसका जबाव पुरा देश सुनना चाहता है।
ठीक है, आप जो भी सवाल करेंगी, मैं समुचित उत्तर देने का प्रयास करूंगा। राजीव निर्णायक स्वर में बोला।
                               राजीव का इतना बोलना था कि कैमरे की फोकस उस पर हो गई। आपने कितनी पढाई की है राजीव बाबू? सुचिता का पहला प्रश्न था।
बी काँम, मगध युनिवर्सिटी से।
आगे भी पढाई जारी है?
हां मैं पी एच डी के लिए अप्लाई कर चुका हूं।
पर सुनने में आया है कि आपको शीट नहीं मिली, इस लिए पुरे सिस्टम को ही सवालों के कठघरे में डाल दिया। इस बार सुचिता का स्वर तीव्र था।
नहीं ऐसी कोई बात नहीं है मैडम, यह मेरे अकेले की लड़ाई नहीं है। आज सामान्य वर्ग का हर वो युवा जो कि प्रतिभा संपन्न है, वो इस सिस्टम की मार से त्रस्त है। आखिर यह हम लोगों के साथ क्योंकर होता है। यह जानना हमारा अधिकार है।
तो फिर आप क्या करोगे?
मैं अपनी आवाज को हर गली, हर नुक्कड़ बल्कि देश के हर कोने तक पहुंचाऊंगा । मैं आज के युवा की आवाज बनूंगा।
धन्यवाद राजीव बाबू, जो आपने हमें अपना बहुमूल्य वक्त दिया। बोलने के साथ ही सुचिता कैमरे के सामने हो गई। हां तो आप सभी ने हमारे न्यूज चैनल पर आज के युवा आवाज को सुना। अब देखना यह है कि इनकी आवाज लटकते-भटकते कौन सा रुप लेती है। दिलचस्प यह भी होगा कि आज की राजनीति इसे स्वीकार करती भी है कि नहीं। आज तक ब्युरो रिपोर्ट छपरा।
                                  पत्रकारों से पीछा छूटते ही राजीव अपने गाड़ी की ओर बढा, सामान गाड़ी में रखा और गाड़ी को श्टार्ट करके गांव की ओर तेजी से मोड़ दिया। सूर्य देव ढल कर अपने अस्ताचल की ओर जा रहे थे, लेकिन आज के जनसभा ने जलजला सा ला दिया था। देश के हर कोने में एक ही चर्चा था कि अब क्या होगा। सभी नेगेटिव और पोजिटीव दोनों रुप से इसमें संभावनाओं की तलाश कर रहे थे।
                शहर का वो बिल्डिंग जो कि भव्य था, भारतीय जनतांत्रिक गठबंधन का मूख्यालय था। शाम होने के साथ ही बिल्डिंग रोशनी से जगमगा उठी थी! लेकिन आँफिस में किसी प्रकार का हलचल नहीं था। गेट पर खड़े दो चौकीदार अपनी डियूटी को अंजाम दे रहे थे। तभी दूर सड़क पर इनोवा कार चमकी और फिसलती हुई बिल्डिंग के अहाते में रुक गई। कार का गेट खुलने के साथ जो शख्स उतरे, वो थे राजनीति के धुरी प्रवीण धारवार । वे पार्टी के मुख्य सचिव थे और जिलाध्यक्ष भी। वो तेजी से उतर कर गलियारे की ओर बढ गए।
                      इस वक्त उनके चेहरे पर परेशानी की रेखा को स्पष्ट देखा जा सकता था। वो तेजी से चलते हुए अपने आँफिस में प्रवेश कर गए। वहां पर पहले से ही सुधांशु सरकार मौजूद थे, वे चिन्ता मग्न आँखों को बन्द किए हुए थे। पदचाप सुनकर उनकी तंद्रा टूटी,तो आप आ ही गए। उन्होंने सीधा सा सवाल प्रवीण धारवार की ओर उछाला।
जी महाशय।
और आपको आश्चर्य भी हुआ होगा, मुझे यहां देख कर?
बिल्कुल नहीं श्रीमान! प्रवीण ने उनके प्रश्नों का उत्तर दिया।
आप भले ही आश्चर्य चकित ना हो, पर मैं आपके कार्य से जरूर आश्चर्य चकित हूं।
लेकिन क्यों?
आप तो ऐसे सवाल पुछ रहे है, जैसे आपको जानकारी ही ना हो। बोलते वक्त सुधांशु सरकार का स्वर कठोर हो चला था।
मैं भी बिगड़े हुए हालात को समझ रहा हूं, लेकिन यह सब इतनी तीव्र गति से हुआ कि हमें समझने का मौका ही नहीं मिला। प्रवीण जी धीरे से बोले।
आप तो यह बोलकर जिम्मेदारी से छिटक लेंगे, लेकिन मैं क्या करुं? मैं प्रदेश प्रभारी हूं। शीर्ष नेतृत्व हमसे जवाब मांग रही है, बोलिए क्या जबाव दिया जाए?
जबाव क्या देना है? हम परिस्थिति को नियंत्रित करने की कोशिश तो कर हीं रहे है। प्रवीण जी सामने बाले चेयर पर बैठते हुए बोले।
आप तो बस चुप हीं रहिए, आप जानते है, आम चुनाव सिर पर आ पहुंचा है। ऐसे में यह जो परिस्थिति बनी है, हमारे लिए घातक है। हमारे सारे जातीय समीकरण बिगड़ गए है। सुधांशु सरकार आवेश में बोले।
तो आप चाहते क्या है?
मेरे चाहने से कुछ भी नहीं होगा, प्रवीण जी हम दोनों को दिल्ली बुलाया गया है।
ठीक है ना, तो फिर चलते है। प्रवीण जी निश्चिंत होकर बोले, फिर दोनों के बीच खामोशी पसर गई।
                                   इधर जब राजीव गांव पहुंचा तो रात के दश बज चुके थे। राजीव परेशान था, दिलरुबा से मिलने के लिए, लेकिन रात ज्यादा बीत जाने के कारण यह बिल्कुल संभव ना था। इसलिए उसने हाथ पैर धोए, अनमने भाव से थोरा सा खाया और अपने कमरे में आकर सो गया। थोरी सी बेचैनी के बाद नींद ने उसे अपने आगोश में ले लिया।
                    सपना भी कितना विचित्र होता है, जगे में आता है,तो सोने नहीं देता। नींद में आता है,तो पुरे करने की जिद्द लग जाती है। सपने में राजीव ने देखा कि उसने जिस क्रांति की मशाल जलाई है, उसकी रोशनी फैलता ही जा रहा है। पूरा भारत वर्ष उस रोशनी में भीग चुका है,अपनी सफलता से वो अभिभूत है। उसने लोकसभा के चुनाव की तैयारी की है, उसके समर्थित उम्मीदवार चुन लिए गए है। सदन में वो प्रवेश करता है और समय आ जाता है। वो शपथ ले रहा है, कि वो देश के सम्मान रक्षा करने के लिए जी जान लगा देगा। समाज में फैले बुराइयों को समाप्त करेगा। युवाओं के स्वर्णिम भविष्य के लिए संविधान में अमूल चूल परिवर्तन करेगा। तभी वो देखता है कि सान्या उससे दूर जा रही है, वो लाख कोशिश करता है। लेकिन सान्या को नहीं रोक पा रहा है, तभी उसके आँखों पर तेज प्रकाश परता है और वो चीखता है।
                                       और चीख कर राजीव उठ बैठा, तो देखा कि सुबह हो चुकी थी। सूर्य देव आसमान पर चढ आए थे, उन्हीं की तेज रोशनी ने मानो उसे जगाया हो। थोरी देर तक बौखलाहट में वो खिड़की से बाहर देखता रहा, फिर सामान्य होकर उठा और वाथरुम की ओर बढ गया। जब तक वो फ्रेश होकर ड्राईंग हाँल में आया, उसकी माँ ने टेबुल पर नाश्ता लगा दिया था। अनमने भाव से उसने थोरा सा नाश्ता किया, दो चार घूँट काँफी पी और जो बैग उसने खरीद कर सान्या के लिए लाया था, उठा कर बाहर निकल गया।
                                             चाहत में इंसान जोश और उमंग से इस तरह भर जाता है कि राह की हर मुश्किलें आसान लगती है। तभी तो रोशनी की चाहत में पतंगा अपनी जान गंवा देता है और उसकी लौ में जल जाता है। खैर जो भी हो, राजीव अमराई में पहुंच चुका था। उसने संदेश भेजा था, सान्या को मिलने आने के लिए। अमराई में दूर-दूर तक शांति का साम्राज्य स्थापित था, जिसे कभी-कभी कोयल अपने मधुर आवाज से भंग कर देती थी। दिन के दस बज गए थे, उसने सामान एक साइट रक्खा और आम के पेर के नीचे बैठ गया। लमहा-लमहा समय आगे खिसकने लगा।
                                            इंतजार भी कितना अजीब शब्द है, दूसरे को करना परे, तो पता ही नहीं चलता और जब खुद को करना परे, तो एक-एक पल एक युग के समान महसूस होता है। उसमें भी अगर मामला दिल का हो, तो तौबा-तौबा। राजीव की नजर एक टक ही गाँव की तरफ से आ रहे पगडंडी पर थी। बेचैनी से उसका बुरा हाल था,तभी दूर पगडंडी पर सान्या दिखी। मानो तपते हुए रेगिस्तान में बारिश की बूंदें परी हो, तन मन ने मीठी अंगड़ाईं ली। सान्या के पास आते ही राजीव उठा और उसे बाँहों में भर कर बेतहाशा चूमने लगा। यही तो वह प्यास है, जो कभी नहीं बुझती। यही तो चाहत की विशेष खासियत है।
अरे मेरे सोना, रुको भी, सान्या खूद को नियंत्रित करती हुई बोली।
कैसे रुकूँ जानु, तुमसे बिछड़ने की पीड़ा मुझे व्याकुल कर देती है। राजीव थरथराते लफ्जों में बोला।
मेरे सोना, यही तो प्यार है, सान्या राजीव से अलग होकर बोली। फिर दोनों जमीन पर ही बैठ गए, तब सान्या बोली। अच्छा, अब बताओ कि मुझे क्यों बुलाया।
अजी खास ही तो है, तभी तो बुलाया है। राजीव ने शरगोशी की फिर साथ लाए बैग को खोलने लगा। सान्या बस उत्सुकता बस देखे जा रही थी। देखते ही देखते उसने लैपटाप ,मोबाइल एसेसरीज एवं एक पैकेट उसके सामने रख दिया।
लेकिन इन सब चीजों की क्या जरूरत थी? सान्या धीरे से बोली।
जरूरत थी, तभी तो लाया हूं, जिस प्रकार से मुझे जनता की प्रतिक्रिया मिल रही है। मैं ने सोच लिया है, पूरे देश में व्यापक स्तर पर मुहिम चलाऊंगा। ऐसे में हम दोनों हफ़्तों दूर रहेंगे। ऐसे में यही वो साधन है, जिस के द्वारा दूर होकर भी हम पास- पास होंगे। राजीव बोलने के बाद मुसकुराया।
लेकिन इस बैग में क्या है? सान्या कुतूहलता बस बोली।
आपके लिए सुन्दर सा लहंगा! तुम्हारा परसो बर्थडे है ना। पापा ने बोला है, बंगले पर मनाएंगे, इसलिए लेता आया।
लेकिन यह तो काफी महंगा होगा? सान्या विचलित होकर बोली।
जानु तुम भी ना, अरे प्यार में मोल भाव नहीं होते। बस दिल को सुकून मिले, यही कीमत है। राजीव बोलते वक्त दार्शनिक हो गया।
                                               फिर दोनों घंटों बैठे यूं ही अलक-मलक की बातें करते रहे। यह प्यार है ही ऐसी चीज, जो इंसान को शब्दों की रचना करना सिखला देता है। समय की सीमा खत्म हो जाती है, लेकिन खत्म नहीं होता है,तो प्रेमी हृदय में समाया हुआ शब्द। जो होंठों से भी बयां होता है, आँखों से भी बयां होता है। जो भी हो, मुहब्बत है, बहुत जानदार चीज।
                                             दिल्ली का पाश इलाका, भारतीय जनतांत्रिक गठबंधन का मूख्यालय । रात के दस बज चुके थे, पूरा ही मूख्यालय रोशनी से नहाया हुआ था। इस वक्त मूख्यालय के मीटिंग हाँल में मीटिंग चल रही थी। वहां पार्टी के कुल दस शीर्ष अधिकारी बैठे थे, जिसमें सुधांशु सरकार और प्रवीण भी थे। मीटिंग हाँल का माहौल काफी गर्म हो चुका था, तभी अध्यक्ष महोदय ने धीमी आवाज में बोला। जिनका नाम सोहन कांडी था।
सुधांशु जी, आप अपनी जिम्मेदारी से यूं नहीं छिटक सकते।
तो मैं भी कहां अपनी जिम्मेदारी से भाग रहा हूं। सुधांशु सरकार तीव्र स्वर में बोले।
सुधांशु जी, प्लीज नार्मल होकर बोलें, आपने उस लड़के से कांन्टेक्ट किया। उसे समझाया, आपने परिस्थिति को किस प्रकार ट्रीट किया। आप हम लोगों को समझाएंगे, सोहन कांडी धीमे स्वर में बोले।
श्रीमान परिस्थिति का एकाएक ऐसे निर्माण हुआ कि हम कुछ भी समझ ना पाए। जब समझने की कोशिश की, तो आपने हमें दिल्ली बुला लिया। सुधांशु सरकार के स्वर मिर्च की तरह तीखा था।
दिल्ली नहीं बुलाते, तो क्या करते, जिस जाति-पाति और आरक्षण के बस पर हम लोग राजनीति करते है और सत्ता सुख पाते है। वो किला ही हिलने लगा है, इस बार उपाध्यक्ष अरविंद त्रिपाठी बोले।
हां त्रिपाठी साहब ने ठीक ही कहा है, हमारे मुख से निवाला छीन जाएगा। आप समझ रहे है ना, मैं क्या बोल रहा हूं। सोहन कांडी इस बार अधीर होकर बोले।
हां मैं समझ रहा हूं श्रीमान।
तो फिर कुछ कीजिए ,जाइए उसे डराइए ,धमकाइए, नहीं माने तो फिर मैं समझता हूं कि आपको समझाने की जरूरत नहीं है। इस बार अरविंद त्रिपाठी बोले।
हम समझ गए श्रीमान कि हमें क्या करना है, त्रिपाठी साहब को प्रवीण ने जबाव दिया। फिर काफी देर तक वहां चुप्पी छाई रही।
                                          शाम होते-होते ठाकुर साहब का बिला दुल्हन की तरह सज संवर कर तैयार हो चुका था। आज सान्या की बर्थडे पार्टी थी और ठाकुर साहब ने खुद ही इसका आयोजन किया था। सभी भागदौड़ कर रहे थे, तैयारियों को लेकर। खुद राजीव का पैर एक जगह टीक नहीं पा रहा था। शहर से राजीव की बहन भावना भी आ गई थी। पूरी की पूरी ठाकुर हवेली उत्सव के रंग में रंग गयी थी। शाम का अंधेरा घिरते ही मेहमान भी आने लगे। मेहमानों को संभालने की जिम्मेदारी निखिल और सम्यक के माथे थी और वो दोनों इसको बखूबी निभा रहे थे। तभी वहां पर सान्या अपनी माँ के साथ आई। उसने गुलाबी रंग का जड़ी काम किया हुआ लहंगा पहना हुआ था। जिसमें वो गुलाब की कली सी लग रही थी।
                                                     आगे बढ कर भावना ने उनका स्वागत किया, राजीव की माँ तो सान्या की बला लेने लगी। फिर सभी ड्राईंग हाँल की ओर बढ चले। तभी कंपाउंण्ड के बाहर शोर उभड़ा और तेज होता चला गया। करीब थोरी ही देर बाद बीसों कमाण्डर जिप्सी तेजी के साथ बंगले के कंपाउंण्ड में रुकी। जब तक ठाकुर साहब या अन्य कुछ समझ पाते। गाड़ी से उतरे सैकड़ों की भीड़ ने तोड़ फोड़ मचाना शुरु कर दिया। भीड़ उग्र हो चुकी थी, निखिल और सम्यक ने बाहर निकल कर प्रतिरोध करना भी चाहा। लेकिन ठाकुर साहब ने रोक लिया। बाहर इक ही नारा लग रहा था।
आरक्षण है अधिकार हमारा।
हम खून बहा देंगे।
जो छिनेगा अधिकार हमारा।
हस्ती उसकी मिटा देंगे।
                                 शोर का गुंज इतना बढ गया था कि धीरे-धीरे गाँव बाले भी आने लगे। फिर तो गाँव बाले ने विरोध करना शुरु किया, टकराव धीरे-धीरे मार पीट में बदल गई। गाँव बालो का संख्या धीरे-धीरे बढता ही जा रहा था। गाँव बालो को देख निखिल ,सम्यक और राजीव भी बाहर आ गए। दोनों पक्ष के अधिकांश लोगों को चोटें लगी। गाँव बालों का विशाल भीड़ देख उपद्रवियों ने भागने में ही भलाई समझी। तबतक न्यूज चैनल बाले भी आ चुके थे, इस घटना का लाइव प्रसारण होने लगा। घायल को गाड़ी में लाद-लाद कर अस्पताल पहुंचाया जा रहा था। पुलिस भी मौके पर आ गई थी, ठाकुर साहब ने अज्ञात  लोगों के विरुद्ध शिकायत लिखवाई।
                                                 हर्ष और उल्लास का माहौल गम में बदल चुका था, लेकिन ठाकुर साहब ने अनुरोध करके सान्या का बर्थडे सेलीव्रेट किया। माहौल बोझिल हो चुका था, सान्या भी परिस्थिति को भांप चुकी थी। आशंका से उसका गला सुखा जा रहा था। वो समझ नहीं पा रही थी कि इस समय वो खुशी मनाए, अथवा गम का मातम। घायल को अस्पताल ले जाया गया था, देर रात निखिल ,सम्यक और राजीव लौटे, उन्हें देखते हीं ठाकुर साहब व्याकुल होकर बोले।
क्या हुआ बेटा?
चिन्ता की कोई बात नहीं है पिताजी, गांव बाले साधारण घायल है। कल सुबह सब को हाँश्पीटल से छुट्टी मिल जाएगी। राजीव आश्वस्त होकर बोला।
चिन्ता की तो बात है हीं बेटा, गांव बालो ने हमारे लिए अपनी जान जोखिम में डाली है। पैसे की चिन्ता मत करना राजीव, बस वो लोग स-कुशल वापस आ जाए। बोलते वक्त ठाकुर साहब की आवाज कांप गई।
जी पिताजी।
और हां, उन उपद्रवियों का पता चला, कहा से आए थे?
नहीं पिताजी, पर डी एस पी साहब ने बोला है कि वे जल्द हीं पता लगा लेंगे और उन लोगों के खिलाफ ठोस कार्रवाई करेंगे। राजीव एक हीं सांस में बोल गया।
भइया ,मेरे विचार से हमें बरे वकील से संपर्क करना चाहिए। भावना आगे बढ कर बोली।
लेकिन क्यों?
इसलिए कि आपने जो क्रांति के बीज बोएं हैं। वो राजनीतिक हस्ती को चुभते होंगे, इसलिए आपके विचार को कानून का कवच जरूरी है। भावना बोली।
लेकिन इसके लिए हमें करना क्या होगा?
कुछ नहीं, बस हम लोग कल सुबह पटना के लिए निकलते हैं। वहां अधिवक्ता वैभव त्यागी से मिलेंगे, वो दूर के हमारे ताया श्री हैं, वो जरूर कोई ना कोई रास्ता निकालेंगे, सम्यक बोला।
ठीक है,तो कल सुबह चलते हैं!
                                         इसके बाद उन लोगों के बीच वार्ता पर विराम लग गया। वे सभी अपने-अपने गंतव्य की ओर चल दिए, दूसरे दिन ,सुबह के ग्यारह बज गए थे, अधिवक्ता वैभव त्यागी अपने आँफिस में बैठे फाइलों में खोए थे। उनका आँफिस गोलंबर के पास श्रधा अपार्ट मेंट में तीसरे मंजिल पर था। तभी उनके ऑफिस में राजीव, सम्यक ,निखिल और भावना ने प्रवेश किया। उन्हें देख कर वैभव साहब आश्चर्यचकित हो गए, उन्होंने उन लोगों का स्वागत किया, बिठाया और आने का कारण पुछा।
                                                       जबाव में सम्यक ने शुरु से लेकर अब तक सारा घटना क्रम सुना दिया। सुन कर थोरी देर तक तो त्यागी साहब सोच में डुबे रहे, फिर शांत स्वर में बोले।
मेरे बच्चों, आप लोगों के विचार सुन कर काफी हर्ष महसूस कर रहा हूं। पर यह कोई साधारण कार्य नहीं हैं। एक प्रकार से सिस्टम को चुनौती देना है, इस लिए सबसे पहले दो कार्य करने होंगे।
क्या अंकल? सम्यक गंभीर हो गया।
पहले तो आपको यूनिटी बनानी होगी, इसके लिए नये पार्टी का गठन अति आवश्यक है। दूसरा हमें कोर्ट में एफीडेविट फाइल करना होगा। त्यागी साहब बोलते वक्त गंभीर थे।
लेकिन इसके लिए हमें क्या करना होगा, राजीव कुतूहलता बस पुछा।
कुछ खास नहीं, वो काम मैं आज हीं किए देता हूं। आप लोग वेटिंग रूम में बैठो फिर हम लोग निकलेंगे।
                                             शाम तक राजीव ,निखिल, सम्यक, भावना और त्यागी साहब सरकारी कार्यालयों में भागदौड़ करते ही रहे।
हाइकोर्ट ने उनके लीगल नोट को स्वीकार कर लिया था और सुनवाई के लिए दस दिन बाद बुलाया था। नवीन मोर्चा के नाम से नया पार्टी का भी गठन हो गया था। जब यह बात मीडिया हाउस को मालूम चला, तो नए विवाद ने जन्म ले लिया। शाम का अंधेरा घिरते -घिरते यह समाचार पूरे देश में फैल गई। आरक्षण के पक्ष और विरोध में टीवी डिवेट होने लगे। देर रात गए राजीव, सम्यक, निखिल और भावना अपने गांव लौटे। राजीव ठाकुर साहब को नए हालात की जानकारी देने ठाकुर साहब के पास चला गया। बाकी सभी अपने- अपने रूम की ओर बढ चले।
                   थोरे दिनों के हलचल ने ही समाज में दो धुरी का विरोधाभास पैदा कर दिया था। हलचल इतनी बढ गयी थी कि देश के कोने- कोने से हिंसक घटनाओं के समाचार मीडिया पटल पर छा गए। वो मुख्यमंत्री का मूख्यालय था, इस वक्त मीटिंग रूम में उभड़े हुए नए हालात पर चर्चा हो रही थी। मुख्यमंत्री विलास बाबू ,गृहमंत्री रमण बाबू और शीर्ष अधिकारी इस समय मंथन कर रहे थे कि जो हालात बने है, उससे कैसे निपटा जाए।
कमिश्नर साहब ,अभी जो हालात बने है, वो काफी भयावह है। विलास बाबू बोले।
लेकिन सर, इसके जिम्मेदार भी तो हम ही लोग हैं। हम ने अपनी राजनीतिक रोटी सेंकने के लिए समाज को कितने ही भागों में विभक्त कर दिया। परिणाम हमारे सामने है, ऐसा तो इक दिन होना ही था। रमण बाबू गंभीर होकर बोले।
गृहमंत्री साहब, जो हो गया, उसके लिए अपराधी को ढूंढने का समय नहीं है यह। हमें यह सोचना होगा कि हालात कैसे काबू में आएंगे। अगले महीने से आम चुनाव है और मैं नहीं चाहता कि समाज में वैमनस्यता बढे। विलास बाबू गंभीर होकर बोले।
लेकिन इसके लिए तो राजनीतिक इच्छा शक्ति की जरूरत है, डी जी पी अभय मिश्रा बोले।
आपके कहने का तात्पर्य, किस तरफ इशारा है आपका। विलास बाबू विचलित होकर बोले।
कहा ना, कि मजबूत राजनीतिक शक्ति के अलावा अब इसका कोई हल नहीं है। आपको इस आरक्षण रूपी सुरसा को खत्म करना होगा। जो हमारे सामाजिक संरचना को निगल रहा है। मिश्रा साहब तीव्र स्वर में बोले।
नहीं-नहीं, मैं ऐसा नहीं कर सकता, ऐसा करके मैं अपना जनाधार खो दूंगा। आम चुनाव सिर पर है, इस वक्त मैं ऐसा नहीं कर सकता। बेचैनी में पहलू बदल कर विलास बाबू बोले और पानी का गिलास उठा कर होंठों से लगाया एवं एक ही सांस में खाली कर दिया।
तो आप क्या करेंगे? मिश्रा साहब का स्वर गंभीर था।
मैं इस पीटीसन के विरुद्ध लड़ूंगा, रमण बाबू आप एक काम करें, राज्य के सबसे श्रेष्ठ वकील को हायर कीजिए। मैं इस मामले में कतई कोताही नहीं बर्दाश्त कर सकता। हाँ और मिश्रा साहब आप लाँयन और्डर को कंट्रोल कीजिए। बोलने के बाद विलास बाबू शांत हुए, फिर वहां शांति छा गई।
                        ठाकुर साहब के बंगले का लाँन, इस वक्त वकील वैभव त्यागी, राजीव, सम्यक और ठाकुर साहब बैठे थे। सुबह का समय, वायुमंडल में शांति बिखरा हुआ था, लेकिन उन लोगों का हृदय विचलित था।
आखिर ठाकुर साहब से नहीं रहा गया, वे बोले, अब क्या होगा त्यागी साहब?
होना क्या है, हम पुरी मुस्तैदी से केस लड़ेंगे ।
लेकिन सरकार ने तो जाने माने अधिवक्ता मधुर सहाय को चुना है। राजीव विचलित होकर बोला।
तो इसमें चिन्ता की कोई बात नहीं है, सरकार का नैतिक दायित्व है कि वो अपना पक्ष दावे के साथ रक्खे। फिर तो यह पहला कदम है, अभी तो हमें बहुत से रुकावटों को झेलना है। त्यागी साहब गंभीर होकर बोले।
यश अंकल, आपका कहना बिल्कुल ठीक है, अभी ही हमने हार मान लिया, तो आगे का डगर काफी मुश्किल होगा। सम्यक ढृढता से बोला।
हां मैं यही बोल रहा हूं, आप लोग निश्चिंत होकर आम चुनाव की तैयारी करें। मैं कोर्ट की प्रक्रियाओं को हैंडल कर लूंगा। त्यागी साहब गंभीर होकर बोले। फिर उन लोगों के बीच चुप्पी छा गई, तभी भावना नाश्ता और काँफी प्लेट में सजा कर आ गई। वे लोग नाश्ता करने में व्यस्त हो गए।
                  भारतीय संविधान के अनुसार चुनाव प्रक्रिया और तिथि की घोषणा हो गयी थी। सभी राजनीतिक दल अपने-अपने अभियान में लग गए। राजीव ने भी कमर कस लिया था, साथ ही ऐसी हस्तियां भी थी, जो कि राजीव को पर्दे के पीछे से सपोट कर रही थी। हलचल ऐसा हुआ कि भारत के बरे भू-भाग में राजीव के समर्थकों का विशाल झुंड बन गया।
                   राजीव, सम्यक, निखिल और भावना भारत के अलग- अलग क्षेत्र में जाकर चुनावी सभा करने लगे। राजीव ने अपने पार्टी के तरफ से दो सौ उम्मीदवार को मैदान में उतारा था। उसके वाक्पटुता के कारण न्यूज चैनल बाले उसे ज्यादा कवर कर रहे थे। चुनाव का दिन ज्यों-ज्यों नजदीक आता जा रहा था, राजनीतिक दलो की बेचैनी भी बढती जा रही थी।
                                दिन भर की भागदौड़ से जब राजीव देर रात होटल में लौटता था। तो दो काम जरूर करता था, एक तो वो मम्मी पापा का हाल चाल जान लेता था। फिर वो सान्या के साथ बातें करने में लग जाता था। दिन भर उसने जो किया, उसे बतलाता था, फिर प्यार की पेंग बढने लगती थी। लेकिन मिलन की प्यास फोन काँल से कैसे बुझे, फिर रह जाते थे दोनों तड़पते हुए। रात का आलम यूं ही गुजर जाता था।
                       भारतीय जनतांत्रिक गठबंधन का मूख्यालय, सुबह से ही वहां हलचल थी। मीटिंग हाँल में पत्रकारों की पूरी फौज तैयार थी। पार्टी ने अपना घोषणापत्र निकालने के लिए प्रेस कान्फ्रेंस बुलाया था। दस बजते ही शीर्ष नेतृत्व द्वारा पत्रकारों को संबोधित किया गया। साथ ही घोषणा पत्र निकाला गया। घोषणा पत्र का मुख्य बिंदु सामाजिक समरसता , कानूनी न्याय, गरीब के लिए योजना और नौजवानों के लिए फिर से ढेर सारे वादों का भंडार। पत्रकारों के प्रश्नों को नेतृत्व ने व्याख्या गत बतलाया।
                                        दोपहर होते-होते मेरा फलक नाम से मीडिया में घोषणा पत्र छा गया, चारों ओर यही चर्चा होने लगी। राजनीतिक पंडित विश्लेषण भी करने लगे कि भारतीय जनतांत्रिक गठबंधन को जबरदस्त फायदा होगा। इसके साथ ही सता पक्ष की ओर से शाम तक घोषणा पत्र निकाल दिया गया।
                                         बदलते पर दृश्य को ध्यान में रख कर राजीव ,भावना, निखिल, सम्यक और त्यागी साहब पार्टी कार्यालय में नव निर्वाचित पदाधिकारी के साथ पार्टी मूख्यालय में देर रात तक माथापच्ची करते रहे कि उनका घोषणा पत्र कैसा हो। देर रात गए आम सहमति बनी, रात के दो बजे पत्रकार वार्ता कर उन्होंने अपना घोषणा पत्र निकाला। टाइटल था, जन-जन की आवाज।
                                       सुबह के सात बजते- बजते ढाई करोड़ प्रति पार्टी साइट से डाउनलोड हो गए। राजीव एण्ड पार्टी अपने पहले कामयाबी से काफी खुश थे। वैसे आज का दिन काफी शुभ था, आरक्षण के पीटीसन पर कोर्ट में सुनवाई थी। वैभव त्यागी तय समय पर कोर्ट पहुंच गए। बाहर न्यूज तक की रिपोर्टर सुचिता अग्रवाल ने उन्हें घेर लिया।
सर आप हमें बता सकते है कि आज हाइकोर्ट में क्या होगा? और समाज पर इसका क्या असर परेगा।
सुचिता जी, जो भी होगा, आप लोगों के सामने आ ही जाएगा। थोरा सा धैर्य रखिए, बोलने के साथ ही वैभव त्यागी कोर्ट रूम में प्रवेश कर गए। तभी सुचिता की नजर मधुर सहाय पर परी, वो उनके तरफ लपकी, लेकिन मधुर सहाय कोर्ट रूम में प्रवेश कर चुके थे। सुचिता कैमरे के सामने आकर बोली।
आपने सुना कि आज आरक्षण पर महत्वपूर्ण सुनवाई है और मैं कोर्ट के बाहर खड़ी रह कर हालात पर नजर बनाए रखूंगी और आप तक अप डेट पहुंचाती रहूंगी। न्यूज तक ब्युरो रिपोर्ट पटना से सुचिता जैन।
                  लगातार तीन घंटे के लंबे इंतजार के बाद कोर्ट रूम से वैभव त्यागी निकले। उनके चेहरे पर विजयी मुस्कान थी,सुचिता उनकी ओर लपकी।
सर कोर्ट रूम में क्या हुआ?
होना क्या था, केस फाइल कर ली गई है।
तो फिर आगे?
आगे हम दोनों पक्ष प्रति-पक्ष कोर्ट रूम में आरक्षण के विभिन्न पहलुओं को रखेंगे।
तो आपको लगता है कि आप विजयी होंगे?
हां जरूर ,क्योंकि आज करोड़ों भारतीय आशा से मेरी तरफ देख रहे हैं, उनका विश्वास ही हमें विजयी बनाएगा। वैभव त्यागी ढृढता से बोले और आगे बढ गए। जबकि सुचिता मधुर सहाय की ओर लपकी।
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शाम होते-होते पुरा प्रकरण पुरे भारत में फैल गया!
                                दिन पर दिन बीतता जा रहा था,सभी राजनीतिक पार्टियों ने अपनी पुरी ताकत चुनाव में लगा दी थी। राजनेताओं ने भाषा की सारी सीमाओं को तोरते हुए जी भर कर एक दूसरे पर कीचड़ उछाला। खैर फैसला तो जनता को करना था, पाँच चरणों में चुनाव संपन्न हो गए, सभी उम्मीदवार की किस्मत इवीएम में कैद हो गई।
                        रात के दस बज चुके थे, भारतीय जनतांत्रिक गठबंधन का आँफिस खुला था। वहां सभी पदाधिकारी चिंतित बैठे थे,
तभी सोहन कांडी ने वहां छाई चुप्पी को भंग किया।
आप लोगों ने क्या सोचा है?
संचना क्या है श्रीमान, कल मत गिनती होगी, लेकिन एक्जिट पोल और हमारी गनना बता रही है कि हम लोग बुरी तरह हार रहे हैं। सुधांशु सरकार गंभीर होकर बोले।
तो फिर क्या करें? सोहन कांडी ने गुस्से में बोला।
मैं कहता था ना, वो लड़का बहुत ही खतरनाक इरादे रखता है। साथ ही पर्दे के पीछे से बहुत से हस्ती ने मदद किया,प्रवीण लपक कर बोला।
अब ज्यादा जबान नहीं चलाइए, उस समय करना था, तो कर नहीं पाए। अब पानी बहने के बाद पाल पीट रहें है। कांडी साहब तीव्र गुस्से में बोले।
लेकिन अभी भी बदला तो जरूर लिया जा सकता है। सुधांशु सरकार कुटिलता से बोले।
लेकिन आप करना क्या चाहते हैं, सशंकित होकर कांडी साहब बोले।
वो आप मुझ पर छोर दीजिए, प्रवीण ने सुधांशु सरकार के स्वर में स्वर मिलाया।
                 समय अपनी गति से आगे बढता रहा, मुख्यमंत्री आवास, विलास साहब डी आई जी साहब और गृहमंत्री रमण बाबू हाँल में बैठे थे, सभी के चेहरे पर गंभीरता थी।
डी आई जी साहब आप राजीव को जेड प्लस की सुरक्षा तत्काल में मुहैया करवाएं। हार जीत तो चलता ही रहेगा, लेकिन मैं नहीं चाहता कि कुछ अघटित हो। विलास बाबू व्यग्र होकर बोले।
चिन्ता का विषय तो हैं ही, गृह मंत्रालय के खुफिया जानकारी से मालूम होता है कि राजीव की जान खतरे में है। रमण बाबू ने विलास बाबू के स्वर में स्वर मिलाया। 
बात खतरे तक सीमित होता तो बात अलग थी, लेकिन उसको अगर खरोंच भी आई, तो जनता चुप नहीं बैठेगी। समाज में जलजला आ जाएगा। देश में लाँयन आँर्डर इस कदर बिगड़ेगा कि संभालना मुश्किल होगा। विलास बाबू झुरझुरी सी लेकर बोले, संभावित भयावह दृश्य की परिकल्पना करके ही वो पसीने से तरबतर हो गए थे।
सर आप निश्चिंत रहे, हम ऐसी कोई अप्रिय घटना नहीं घटने देंगे। डी आई जी साहब ढृढता से बोले।
                                       फिर वो लोग योजना बनाने लगे कि पार्टी की अगर हार होती है,तो मीडिया को क्या बोलना है। अगले दिन सुबह के छ: बजे ही ठाकुर साहब के बंगले पर भीड़ लग गई थी। आज चुनाव का रिजल्ट आना था, राजीव तैयार हो चुका था। तभी सान्या भी तैयार होकर आ गई। दोनों ने ठाकुर साहब के चरण छूए और जीप पर बैठ कर पार्टी मूख्यालय के लिए चल दिए। पीछे से समर्थकों का झुंड चला, काफिला मुजफ्फरपुर मेन हाईवे से गुजर रहा था। जीप की स्पीड ज्यादा नहीं थी, तभी दूर से लहराता हुआ ट्रक चमका। राजीव कुछ समझता, इससे पहले ट्रक ने जीप को जोरदार टक्कर मारी और तेज गति से आगे बढ गई।
                                               जीप हवा में उछली और पलटी खाती हुई डिवाईडर से जा टकराई। तभी वहां निखिल और सम्यक भी इनोवा कार में आ चुके थे। समर्थकों की भीड़ एक पल को फ्रीज बन गई, तभी जीप से राजीव चीखता हुआ निकला। वो अपने ही खून से भीग चुका था। उसे देखते हीं सभी की तंद्रा मानो टूटी, सभी जीप की ओर लपके। आनन फानन में सान्या को निकाला गया, वो मूर्छित हो चुकी थी, सम्यक ने दोनों को इनोवा में डाला, फिर इनोवा रोड पर फिसलती चली गई!
                              घटना केंद्र पर पुलिस और मीडिया हाउस आ चुकी थी, भीड़ उग्र होकर पुलिस के विरुद्ध नारे बाजी करने लगी। न्यूज तक की रिपोर्टर ने घटना का लाइव प्रसारण कर दिया। परिणाम घंटे भर में ही देश में आग लग गई। जगह-जगह तोड़-फोड़ और आगजनी होने लगा। हार कर प्रशासन ने तुरंत प्रभाव से देश में कार्फ्यू लगा दिया, इधर वोटों की गिनती चालू हो गई थी। नवीन मोर्चा के सभी प्रत्याशी काफी मत से आगे चल रहे थे।
                                                   अपोलो हाँश्पीटल पटना,अंदर काफी हलचल था, हाँश्पीटल के बाहर नवीन मोर्चा के कार्यकर्ता प्रशासन के विरुद्ध जम कर नारे बाजी कर रहे थे। अंदर हाँल में ठाकुर साहब, निखिल, सम्यक और त्यागी साहब थे। सभी के चेहरे को घोर उदासी ने घेर रक्खा था। डाक्टरों की टीम भागदौड़ कर रही थी!अंदर आपरेशन थियेटर में राजीव और सान्या थे, समय बीतता जा रहा था। इसके साथ ही सब की बेचैनी भी बढती जा रही थी। हाँश्पीटल को पुलिस छावनी में परिवर्तित कर दिया गया था।
                                                दिन के चार बज चुके थे,नवीन मोर्चा के डेढ सौ प्रत्याशी ने भारी वोटों से विजय प्राप्त की थी। लेकिन उन सब का अध्यक्ष जीवन और मौत से जूझ रहा था। पाँच बजते ही आपरेशन थियेटर की लाइट बुझी, डाक्टर भदोरिया बाहर निकले, तो ठाकुर साहब उनकी ओर लपके।
डाक्टर साहब मेरे बच्चे कैसे है?
चिन्ता की बात नहीं है, राजीव खतरे से बाहर है और वो होश में आ चुका है, आप लोग मील सकते है।
और सान्या कैसी है? ठाकुर साहब कांपते हुए बोले।
कह नहीं सकते, हम लोग प्रयास कर रहे हैं, बाकी उपर बाले की मर्जी। डाक्टर भदोरिया गंभीर होकर बोले।
सुन कर ठाकुर साहब के दोनों हाथ जुड़ गए,वो रुंआसे होकर बोले। डाक्टर साहब जान लेनी है,तो मेरी ले लीजिए, पर प्लीज उसे बचा लीजिए। उसके बीना तो राजीव टूट कर रह जाएगा। बोलने के साथ ही घुटनों के बल पर ठाकुर साहब बैठ गए और बच्चे की मानिंद रोने लगे। डाक्टर भदोरिया के समझ में नहीं आया कि वो क्या बोले। उन्होंने लंबी सांस ली और आगे बढ गए।
                                            तब त्यागी साहब ने आगे बढ कर ठाकुर साहब को उठाया,फिर वे लोग उस वार्ड की ओर बढ चले। जहां राजीव को रखा गया था, राजीव के पुरे शरीर पर पट्टी बंधा था। वो शून्य में देख रहा था,ठाकुर साहब तो एक पल को होश ही खो बैठे। लेकिन त्यागी साहब ने उन्हें संभाला।
राजीव बधाई हो,अपनी पार्टी के डेढ सौ उम्मीदवार ने जीत दर्ज की है। सम्यक अपने आप को संभालता हुआ बोला।
सान्या कैसी है? छीन आवाज में राजीव बोला।
ठीक है, इलाज चल रहा है,निखिल ने झूठ बोला।
आप लोग झूठ मत बोलो, सान्या कैसी है? राजीव ने प्रतिकार किया।
                                सुन कर ठाकुर साहब राजीव के पास बैठ गए और रुंधे गले से बोले। बेटा डाक्टर सब प्रयास में लगे हैं,लेकिन कह नहीं सकते कि क्या होगा। अब भगवान का ही भरोसा है, ठाकुर साहब अपनी ही रौ में बोलते जा रहे थे। लेकिन राजीव के आँखों के आगे अंधेरा खींचता जा रहा था। उसने जो सपना देखा था,वो भयावह रुप में उसके आँखों के आगे चरितार्थ हो गया था। उसके महत्वाकांक्षा रूपी दानव ने उसके सपनों की दुनिया को रौंद दिया था। वो रोना चाहता था, लेकिन आंसू साथ नहीं दे रहे थे, वेदना की बरछी ने उसके हृदय को तार-तार कर दिया।
                             तभी वहां पर डाक्टर भदोरिया आए और मुसकुरा कर बोले। बधाई हो ठाकुर साहब, सान्या भी खतरे से बाहर है और पुर्ण सुरक्षित है। इतना सुनना था कि वहां हर्ष के माहौल ने दस्तक दिया। निखिल और सम्यक ने ठाकुर साहब को उठा लिया और खुशी के मारे किलकारी मारने लगे। त्यागी साहब भी आँखों में छलक आए अश्रु बिंदु को साफ कर मुसकुराने लगे। जबकि राजीव ने अपनी पलकें मुंद ली,वो अजीव से हर्ष की अनुभूति कर रहा था!


एक भाग पुर्ण
  
                                           
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बबंडर
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यह कहानी आज के शिक्षित युवाओं की मनो व्यथा को दर्शाता है। वैसे तो यह कहानी लंबी नहीं है, परन्तु.....इसमें समाज में फैले हुए वैमनस्यता एवं उसके कारणों को समाहित किया गया है। साथ ही यह भी दिखाने की कोशिश की गई है, कि आज का युवा चाहे, तो कुछ भी कर सकता है। मदन मोहन"मैत्रेय

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