यह एक आलोचनात्मक एवं व्यंगात्मक लेखन है। जिसमें क्रमानुसार विषयों को सहेजा गया है। इस पुस्तक में कोशिश की गई है कि यथार्त की जितनी ज्यादा समावेश हो सके, किया जाए। जिससे विषय वस्तु की उपयोगिता भी बनी रहे और पढने में रोचकता की भी उपलब्धि हो। मदन मोहन" मैत्रेय
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