shabd-logo

बचपन क्यों चला गया.....

5 दिसम्बर 2016

173 बार देखा गया 173

जब छोटे थे तो बड़े होने की ललक थी

अब बड़े हुए तो बचपन के दिन याद आते है

वो मम्मी के साथ रूठना

पापा का मनाना

दादी से शिकायत करना

दादा से दुलार पाना

कितने खूबसूरत थे वो दिन

न जाने कहा गए वो दिन

अब उन दिनों की सिर्फ याद है

सौगात है उस प्यार की जो जिए थे

परिवार तो साथ है

पर उस साथ मैं वो बात कहा

या तो हम वो नहीं

या समय वो नही

फिर आ जय वो बचपन के दिन

जी लू उन्हें उतनी ही ख़ुशी से फिर

Jyoti की अन्य किताबें

बाबर खान मोबारक खान

बाबर खान मोबारक खान

aur ek din wapas isi mitti mein phir smma jana hai sb ko ek tarh se dekha jaye to ye duniya sirf ek dhokhe ka ghr hai...?

1 जुलाई 2017

1 जुलाई 2017

1

बचपन क्यों चला गया.....

5 दिसम्बर 2016
0
5
2

जब छोटे थे तो बड़े होने की ललक थी अब बड़े हुए तो बचपन के दिन याद आते है वो मम्मी के साथ रूठना पापा का मनाना दादी से शिकायत करना दादा से दुलार पाना कितने खूबसूरत थे वो दिन न जाने कहा गए वो दिन अब उन दिनों की सिर्फ याद है सौगात है उस प्यार की जो जिए थे परिवार तो साथ है पर उस साथ मैं वो बात कहा या तो ह

2

काश ऐसा होता

15 दिसम्बर 2016
0
1
0

ये काश शब्द आज नहीं तो कल या बीते हुए दिनों में सब के मन मैं कभी न कभी उठा होगामगर इस शब्द से हर किसी मनुष्य को कोई न कोई उम्मीद होती ही है की अगर मैं ये करे देता तो काश ऐसा होता मगर ऐसा मेरे मन मैं एक ऐसा सवाल है जिसका जवाब मुझे कभी नहीं मिला क्यों मनुष्य का मन इतना विचलित होता है क्यों उसे जो कर

3

आत्म कथा एक लड़की की l

15 दिसम्बर 2016
0
4
1

पैदा हुई जो बाबुल के घरखेली कुदी जिस आंगन में समझा, उससे ही अपना घर फिर वो दिनों दिनों बढ़ने लगी बाहर जा कर पढ़ने लगी सजा लिये उसने भी ख्वाब कई केरुगी ऐसा काम जो दे उसे नई पहचान फिर वो एक दिन आया जब उसे बतलाया की ये नही है तेरा घर जाना है तुझे उस घर जिस घर के लोग पराये ना तू उन्हें जाने ना वो तुझे पहच

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए