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आत्म कथा एक लड़की की l

15 दिसम्बर 2016
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पैदा हुई जो बाबुल के घरखेली कुदी जिस आंगन में समझा, उससे ही अपना घर फिर वो दिनों दिनों बढ़ने लगी बाहर जा कर पढ़ने लगी सजा लिये उसने भी ख्वाब कई केरुगी ऐसा काम जो दे उसे नई पहचान फिर वो एक दिन आया जब उसे बतलाया की ये नही है तेरा घर जाना है तुझे उस घर जिस घर के लोग पराये ना तू उन्हें जाने ना वो तुझे पहच

काश ऐसा होता

15 दिसम्बर 2016
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ये काश शब्द आज नहीं तो कल या बीते हुए दिनों में सब के मन मैं कभी न कभी उठा होगामगर इस शब्द से हर किसी मनुष्य को कोई न कोई उम्मीद होती ही है की अगर मैं ये करे देता तो काश ऐसा होता मगर ऐसा मेरे मन मैं एक ऐसा सवाल है जिसका जवाब मुझे कभी नहीं मिला क्यों मनुष्य का मन इतना विचलित होता है क्यों उसे जो कर

बचपन क्यों चला गया.....

5 दिसम्बर 2016
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जब छोटे थे तो बड़े होने की ललक थी अब बड़े हुए तो बचपन के दिन याद आते है वो मम्मी के साथ रूठना पापा का मनाना दादी से शिकायत करना दादा से दुलार पाना कितने खूबसूरत थे वो दिन न जाने कहा गए वो दिन अब उन दिनों की सिर्फ याद है सौगात है उस प्यार की जो जिए थे परिवार तो साथ है पर उस साथ मैं वो बात कहा या तो ह

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