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आत्म कथा एक लड़की की l

15 दिसम्बर 2016

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पैदा हुई जो बाबुल के घर

खेल ी कुदी जिस आंगन में समझा, उससे ही अपना घर

फिर वो दिनों दिनों बढ़ने लगी

बाहर जा कर पढ़ने लगी

सजा लिये उसने भी ख्वाब कई

केरुगी ऐसा काम जो दे उसे नई पहचान

फिर वो एक दिन आया

जब उसे बतलाया की ये नही है तेरा घर

जाना है तुझे उस घर जिस घर के लोग पराये

ना तू उन्हें जाने ना वो तुझे पहचाने

वो ही आंगन है अब तेरा घर

छोड़ तुझे बाबुल का घर बसाना होगा पिया का घर

छोड़ सारे सपने अधूरे चली गई वो उस घर

ना सोचा पीछे का न आने वाले कल का

चली गई वो जोड़ कर एक डोर नई

वहाँ भी निभाई सारी जिम्मेवारी

कुछ समय बिता वो लड़की बीवी से माँ बानी

अब आ गयी जिम्मेवारी कई

फिर भी वो हँसते हँसते सब सह गई

अब सब सपने उसके परिवार पर शुरू हुए और परिवार पैर ख़त्म

बेटा बच्चे से हुआ जवान ले आया अपनी नई पहचान

बहु आयी सोचा उसने वो तो उसे जानेगी पहचानेगी

बहु ने भी उसे न समझा अपना

और करने लगी व्यवहार गन्दा

ना जाने कब उसे भगवान ने ऐसी बीमारी लगाई

चल बसी अपने सजे हुए आंगन को छोड़कर कही

चली गयी वो इस जहा से निभा कर अपना किरदार

ना जाने कब तक होती रहेगी उसकी ऐसी दशा



ये कहानी सिर्फ मेरी कल्पना का पात्र है इस कहानी से किसी भी मनुष्य से कोई सम्बन्ध नही है

धन्यवाद


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