(बरगद ) *कहानी अंतिम क़िश्त *
(अब तक- मुलायम सिंग जी पत्नी से कहते हैं ।संजय और नेहा यहां ऐशो आराम की ज़िन्दगी छोड़ कर वहां पूना – मुंबई में भटक रहे हैं, वहां भटकने से उन्हें क्या मिलेगा ।)
कुछ सालों बाद मुलायम सिंग जी छतीसगढ राज्य के डीज़ीपी बन गये । उन्होंने इस बीच अपना एक व्यक्तिगत बड़ा सा बंगला भी शंकर नगर में बनवा लिया । उस बंगले की देखभाल के लिए उन्होंने एक माली भी नियुक्त कर लिए व ख़ुद सरकारी बंगले में रहते थे । अभी कुछ साल बाक़ी थे रिटायरमेंट के लिए । वे बीच बीच में अपने व्यक्तिगत बंगले में जाते भी थे और माली को सलाह भी देते थे । वे हर बार कुछ पौधे भी लेकर वहां जाते थे और अपने सामने ही उन्हें लगवाते थे । धीरे धीरे उनके घर का बगीचा समृध होने लगा । कुछ पौधे तो ज़मीन से 2/2 फ़ीट उपर आ चुके थे । कुछ फूलों की क्यारियां भी अपनी छटा बिखेरने लगी थी । बगीचे एक तरफ़ कई बड़े पेड़ों के पौधे लगाये गये थे । उन पौधों में से एक पौधा बहुत तेज़ी से बढ रहा था , जबकि उसके अगल बगल के पौधे ज़मीन से थोड़ा उपर आकर स्थिर हो गये थे । उनकी बाढ धीमी पड़ चुकी थी ।
इस बीच रायपुर से कुछ किमी उत्तर में बसे एक गांव धर्मपुरा में दो गुटों के बीच तालाब के पानी को लेकर विवाद हो गया । विवाद बढता गया तो मारपीट की नौबत आ गई । वहां के माहौल को द्खकर एस एच ओ कुछ डर गये और एस एच ओ ने वहां की सारी बातें एस पी साहब को बताया । एस पी साहब ने उन्हें सलाह दी कि अभी वेट अन्ड वाच पालिसी अपनाइये । धर्मपुरा का झगड़ा बढता गया । और दोनों गुटों की तरफ़ के एक एक आदमी इस झगड़े के कारण मारे गये । उसके बाद तो वहां का झगड़ा दंगे में तब्दील हो गया। तीन दिनों में तीस आदमी मारे गये । तब एस पी गुप्ता साहब ने डीजीपी मुलायम सिंग जी से सम्पर्क किया । डीजीपी साहब ने बिना समय गवांये सिपाहियों की बड़ी सी टुकड़ी और कुछ अधिकारियों के साथ दंगे वाली जगह में कैंप डालकर बैठ गये । डीज़ीपी साहब बेहद ही शख़्त मिज़ाज़ के थे । उन्होंने आस पास के अधिकान्श गांवों में कर्फ़्यू लगा दिया और पोलिस बल की समुचित तैनाती हर गांव में कर दी गई । इसके बावजूद तीन गांवों में डीज़ीपी साहब के आदेश से गोलियां चलानी पड़ी । जिससे चार ग्रामिणों की मौत हो गई । । डीज़ीपी साहब ने इस स्थिति को भी बड़ी ही दमदारी से निपटाया । मिडिया वाले और नेता गण डीजीपी साहब के तर्क से सहमत दिखे । पोलिस वालों के विरुद्ध कहीं भी तीखी टिप्पणी नही हुई।
मुलायम सिंग जी डीजीपी के पद से कुछ महीनों में रिटायर होने वाले थे । उनकी पत्नी सुशीला जी अक्सर कहती थी कि अपने बे्टी- दामाद को अपना लो । और हमारा बेटा मुंबई में है और वहां के रणजी टीम का सदस्य बन चुका है । उसे भी कहो कि जो हुआ सो हुआ अब अपने घर वालों से नाराज़ मत रहो। फिर उसने क्रिकेट में अपना एक मुकाम भी बना लिया है । वह भविष्य में और उपर जायेगा ऐसा मेरा विश्वास है । पर डीजीपी साहब टस से मस नहीं हुए और कहने लगे कि उसने मेरे कहने के बावजूद पढाई लिखाई छोड़ कर के क्रिकेट खेलने हमको बिना बताये मुंबई चला गया । साथ ही बेटी नेहा ने भी अपने डांस के शौक छोड़ा नहीं है और एक विजातीय नर्तक लड़के से विवाह कर लिया । अब तो मैं उनका चेहरा भी नहीं देखना चाहता । ये सब सुनकर सुशीला देवी रो पड़ी और फिर कुछ दिनों बाद ऐसी बीमार पड़ी कि बिस्तर से उठ भी न पायी और महीने भर के अंदर उनकी मौत हो गई ।
थोड़े दिनों बाद मुलायम जी रिटायर हो गये और सरकारी घर को छोड़कर अपने घर में आकर रहने लगे । वे अपने बंगले में दो कर्मचारियों के साथ तो रहते थे पर पारिवारिक रूप से अकेले रहने लगे । लेकिन उनके चेहरे पर निराशा या दुख दर्द का कोई भाव नहीं था । वे उसी तरह कड़क मिज़ाज़ी में जीवन व्यतीत करते रहे । वे रोज़ सुबह उठकर बागवानी के काम में वयस्त रहते थे । उनके इस घर में साग , सब्जी व फूल वाले एरिये में फ़स्ल अच्छी खासी होती थी । वहीं बगीचे के जिस हिस्से पर पेड़ लगे थे वहां सिर्फ़ एक पौधा तेज़ी से बढ रहा था बाक़ी पौधों का दिखना बंद होने लगा ।
उधर मुलायम का बेटा संजय सिंग नित अपने खेल को निखारते हुए राष्ट्रीय टीम का सदस्य बन गया । अगले साल संजय सिंग को भारतीय क्रिकेट टीम का कैप्टन बनाया जायेगा ऐसी खबर भी इधर उधर से आने लगी ।
पूना में नेहा और मनीष ने अपनी एक नृत्य अकादमी प्रारंभ कर दी थी । उनकी नृत्य एकादमी भी अच्छे से चलने लगी । सैकड़ों की संख्या में बच्चे व बच्चियां उनकी एकादमी में प्रवेश लेकर , नृत्य कला में अपना मुकाम बनाने लगे । इस तरह नेहा और संजय दोनों अपनी व्यक्तिगत ज़िन्दगी और अपने द्वारा खड़े किये गये साम्राज्य , मान , प्रतिष्ठा हासिल करके बेहद खुश हैं ।
उन्हें इस बात का ज़रा भी मलाल नहीं था कि वे पिता के आदेश के विरुद्ध जाकर अपने भविष्य का रास्ता चुना और अपने माता पिता से कट गये । इसके उलट वे तो सोचते थे कि घर से भाग जाने के कारण ही उन्हें सफ़ल होने का मौक़ा मिला वरना अभी रायपुर में ही रहते तो पता नहीं उनका क्या हश्र होता । अगर वे मुंबई या पूना नहीं जाते तो उन्हें रायपुर में कुछ भी हासिल होने की संभावना न्यूनतम थी ।
दो साल और गुज़र गये । एक दिन नेहा और संजय को रायपुर से खबर प्राप्त हुई कि आपके पिता श्री मुलायम सिंग जी का स्वर्गवास हो गया है । तुरंत रायपुर पहुंचो । वे दोनों अगली ही फ़्लाईट से रायपुर पहुंच गये । मुलायम सिंग जी ने अपनी अंतिम इच्छा व्यक्त की थी कि मेरा अंतिम संस्कार इसी घर के किसी किनारे किया जाय ।
उस घर के एक तरफ़ तो बहुत ही खूबसूरत फूल पौधे लगे थे , वहीं दूसरी तरफ़ सिर्फ़ एक बरगद का पेड़ था जो अभी उम्र और उंचाई में बहुत ही छोटा था । पता नहीं इस बरगद के पौधे को पिताजी ने लगाया था या वह बिना लगाये यूं ही उग आया था । फिर जब वह पौधा बड़ा होने लगा तो पिताजी ने उसे कटवाया नहीं ।
डीजीपी मुलायम सिंग जी यानी अपने पिता को मुखाग्नि उसके पुत्र संजय सिंग ने उसी बरगद पेड़ के नीचे दिया । मुलायम सिंग जी का अंतिम संस्कार का कार्यक्रम करने के दो दिनों के बाद संजय और नेहा मुंबई और पूना चले गये । पिताजी के मकान की देखभाल के लिए एक बुजुर्ग माली को रख लिया गया । उसे यह कह दिया गया कि जो भी स्थान खाली हो वहां अच्छी प्रजातियों के फूल लगाना ।
1 साल बाद नेहा और संजय फिर अपने परिवारों के साथ रायपुर अपने घर कुछ दिनों के लिए प्लान करके आये । वे सब घर की कैम्पस को देखकर के बहुत ख़ुश हुए । कैमप्स में हर तरफ़ हरियाली थी । एक से एक फ़ूलों की क्यारियां बड़ी ही तरतीब से चारों तरफ़ नज़र आ रहींथी । बगीचे के अलग अलग कोने में गुलाब , गेंदा , चमेली ,केवड़ा, रात रानी, मोंगरा, सदा सुहागी के फूल अपनी अपनी छटा बिखेरते नज़र आ रहे थे । लेकिन कैंपस के उत्तर दिशा में अब भी एक विशाल बरगद का पेड़ बेढंगे से खड़ा था । उसी हिस्से में उनके पिता का अंतिम संस्कार किया गया था । उस पेड़ के 50 फ़ीट के दायरे की ज़मीन पूरी तरह से सूखी और बंज़र नज़र आ रही थी । वहां एक छोटा सा पौधा भी नहीं उग पाया था । रायपुर से वापस जाते जाते नेहा और संजय सिंग ने निर्णय लिया कि इस बरगद के पेड़ को काट दिया जाये , ताकि वहां फूलों की क्यारियां गुलज़ार की जा सके । तब उनके बूढे माली ने कहा कि हिन्दू धर्म और संस्क्रिति के अनुसार बरगद के पेड़ को कभी भी नहीं काटा जाता , बल्कि उसकी पूजा की जाती है । तब संजय सिंग ने कहा कि हमने भी बरगद जैसे एक पेड़ की 20 से 25 साल पूजा की थी , बदले में हमें दर दर की ठोकरें खानी पड़ी थी । हम उसके साये तले मुरझाने लगे थे । जिसके बाद ही हमने फ़ैसला लिया था कि किसी बरगद की छांव के तले बैठने से तो अच्छा होगा कि आसमां को ही अपना छत बना लिया जाय । और जब हमने दिल की बात को अन्जाम दिया और बरगद से मुक्ति पाई तभी हमे अपने अपने कर्म क्षेत्रों में सफ़लता प्राप्त हुई । अब तो हमने मन बना लिया है कि अपने आंगन में चाहे तो कैक्टस के पौधे लगा लो पर बरगद को घर आंगन में पनाह मत दो वरना भारी नुकसान उठाना पड़ेगा ।
इतना सुनने के बाद वह बूढा माली कुछ न कह पाया और जो आज्ञा कहते हुए अपनी कुल्हाड़ी लाने अंदर चला गया ।
( समाप्त )