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बस इसी की तलाश थी

18 नवम्बर 2023

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प्रारम्भ 

 हसरत जयपुरी ने कहा था कि ,’खुशी फुलझड़ी की तरह होती है थोड़ी देर के लिए चमक बिखेरती है फिर बुझ जाती है और उदासी अगरबत्ती की तरह होती है देर तक जलती है और बुझने के बाद भी कमरे में महक बिखरी रहती है।‘

इस कहानी की नायिका श्रेया का जीवन भी कुछ ऐसा ही था।सब कुछ था उसके पास,अच्छा वकालत का कैरियर,उच्च मध्यम वर्गीय परिवार,दोस्त जो अब थोड़े दूर चले गए थे काम की वजह से पर फोन पे अक्सर बात होती और वीडियो कॉल भी आते अक्सर,फिर भी वो  उदास रहती थी।वो अपने आपको इस चकाचौंध में अकेला पाती थी। जैसे- जैसे  वो जीवन की सीढ़ियां चढ़ रही थी , उसका अकेलापन और उसकी उदासी और बढ़ रही थी। पर हमेशा से ऐसा नहीं था, श्रेया बचपन में ऐसी नही थी,कम बोलती थी , पर अपने भाई बहनों से खूब बात करती थी I मिलनसार और खुश रहने वाली लड़कियों  थी।पर धीरे-धीरे उदासी उसे अपने शिकंजे में लेती गई ।वो दोस्तों के साथ रहती तो हंसती -बोलती पर अंदर ही अकेलापन उसे घेरे रहता।काम के वक्त भी,वह पूरा डूब के काम करती तो थी,पर जैसे ही वो खाली होती वो उदास रहती। 

उसे किसी सहेली ने थेरेपी की सलाह भी दी थी।

 थेरेपी!!! क्यों , किसे , किसलिए जरूरत है थेरेपी की!!  ऐसा ही बोल कर चिल्ला पड़ी थी अम्मा उस दिन। अम्मा यानि दादी, जो कि बड़ी थी घर की और सब उनकी बात सुनते थे। फिर माँ भी तो घबरा गई थी। समाज क्या सोचेगा, बिटिया पागल हो गई है इनकी तभी पागलो के डॉक्टर  के पास ले गए है। माँ कभी श्रेया का सर छूती ,तो कभी मुँह ताकती। जिज्जी को भेज लाल मिर्च मांग कर फुक दिया और पापा को सब बता कर उस सहेली का आना भी बंद कर दिया था घर। बेचारी कॉलेज मे भी डर के मिलती। भारत मे आज भी मेंटल हेल्थ एक टैबू है I यही बोलती वो मुँह  बिचका कर। इन सब मे बेचारी श्रेया समझ नही  पाती की कौन सही !!कौन गलत!! इस तरह ही दिन कट रहे थे। उसी पर किसी ने रिश्तेदार ने सलाह दे दी की शादी कर दो। बिटिया एकदुम  फराटा हो जायेगी। ‘हमारी रूपा को देखो एक न बोल फूटता था अभी तो एकदम तेज हो गई है। ‘बता कर हंसती हुई चली गई। वो क्या गई घर में लड़को की लाइन लगा गई I श्रेया के घरवाले उसकी शादी के लिए परेशान हो रहे थे।वो लगभग हर दिन किसी न किसी लड़के से मिल रही थी  , पर किसी न किसी वजह से कहीं बात पक्की नहीं हो पा रही थी।

 श्रेया अपने स्कूल कालेज में उन लड़कियों में से नहीं थी जो लड़कों के बीच फेमस होती है। श्रेया को बहुत सुंदर और आकर्षक नहीं कहा जा सकता और न ही वो बहुत बात करने वाली लड़कियों में थी।उसका कभी अफेयर भी नहीं रहा, हालांकि कालेज में उसके लड़के दोस्त बने पर उसने कभी उस तरह का आकर्षण किसी के प्रति महसूस नहीं किया।

 उसे आज फिर एक लड़के से मिलना था,जिसकी वजह से उसे थोड़ी एन्जाइटी हो रही थी।वो मिलने की जगह पर पहुंचकर लड़के का इंतजार कर रही थी।लड़के का नाम रोहन था और वो साफ्टवेयर इंजीनियर था।उनका अपना फैमिली बिजनेस भी था। एक भाई और एक बहन की छोटी सी फैमिली थी। वो कहते है न हैप्पी फैमिली वाली फैमिली। श्रेया अब कैसे रियक्ट करेगी ये तो मुलाकात पे ही पता चलना था। श्रेया को कैफेटेरिया मे बैठे करीब पौना घंटा हो गया था। पर उन इंजीनियर बाबू का कँही आता पता न था। श्रेया अपनी कॉफी लगभग खतम कर चुकी थी और पास बैठे प्रेमी जोड़ो को देख कर सोच रही थी ये क्या ही बात करते है यँहा घंटो बैठ कर। मेरा तो जी डूबा ही जा रहा है। लगता है ये भी बन्दा गया , तभी गाने की धुन  के बोल को सुन थोड़ा परेशान हुई की क्या ही गाना बजा रखा है और ही सर दर्द कर दे  ये लोग। अब कॉफी खतम हो चुकी थी और श्रेया बिल पैमेंट के लिए अपना कार्ड भेज रही थी। की तभी....

 एक आवाज कान मे पड़ी...रुकिए जरा!!

‘प्रिय प्यारे तिहारे निहारे बिना अंखियां दुखियां नहीं मानती हैं।‘

प्रेम एक अजीब भावना है दुनिया में जितने भी रिश्ते हैं वे सब प्रेम के अनुवाद, पर्यायवाची हैं।आपको प्रेम महसूस करने के लिए कभी-२ पूरी जिंदगी लग जाती है और कभी वो प्रेम आप एक पल में ही अपनी आत्मा के गहनतम पोर से महसूस कर सकते हैं। श्रेया भी वो प्रेम इसी पल में महसूस करने वाली थी।


 "सारी, मैं लेट हो गया।"रोहन ने आकर कहा, जहां श्रेया जो कार्ड भेज कर  किन्ही और ही ख्यालों में खोई हुई थी। श्रेया ने बड़े बेमन से हाई(Hi)  बोला  I 

रोहान श्रेया से बिल्कुल ही विपरीत था। आकर्षक और खुशमिजाज।वे लोग जो महफिलों की जान होते हैं।सबको अपने व्यवहार और व्यक्तित्व से अपना लेने वाले लोगों में था।रोहन ने अपने पापा - मम्मी से लेकर बहन दादू , सुधा दीदी सबके बारे में बता डाला। भविष्य के अपने प्लान, पापा की रजामंदी सब कुछ। ऐसा पहली बार था की कोई बिल्कुल पारदर्शी छवि वाला इंसान मिला हो Iवरना अब तक तो सब सो ऑफ ही करने वाले मिले थे I

  श्रेया को भी रोहन ने कुछ ही देर में अपना बना लिया था।जैसा सुना था वैसा ही था रोहन।श्रेया ने भी अपने परिवार के बारे मे बताया, दादी - दादा, मम्मी -पापा, जिज्जी  - जीजू, बड़े भैया शिनु और छोटू इतने सदस्य है घर पर  और संक्षिप्त मे अपने बारे मे बताया Iदोनों ने दुबारा मिलने का वादा किया और चल पड़े अपनी डगर पे। पर दोनों की आंखों ने साथ रहने का फैसला कर लिया था अब आगे दोनों को अपना निरण्या घर वालो को बताना था। श्रेया कोई पसंद आ गया घरवाले तो इसी से खुश थे।अब उन्हे उम्मीद जगी की उनकी बेटी अपनी निरस सी जिंदगी मे कुछ रंग घोलेगी। 

“ पिया ऐसे जिया में समाये गयो रे, मैं तन मन की सुध बुध गवां बैठी। “

गाने के बोल की तरह ही श्रेया का मन रोहन को लेकर हुआ रहता था आज -कल। कँहा खड़ी है ?क्या बात कर रही है ? कुछ होश नही, माँ के पुछ्ने पे हड़बड जाती, श्रेया किससे बात हो रही है इतनी रात में, बदले मे श्रेया माँ के गाल को पकड़ते हुए बोलती आपके दमाद जी से और किससे। सुनके माँ को थोड़ा खुशी भी होती की चलो, उदासी का वो दौर तो निकला इसके जीवन से, पर चली जायेगी वो अब कुछ दिन मे सोच कर रो पड़ती। चिनु भैया और छोटू उनको समझने लग जाते। उधर रोहन और श्रेया एक दूसरे के प्यार में सब को भूले बैठे थे। 


हर लड़की के जीवन में कुछ दिन होते हैं जब उसकी जिंदगी पूरी तरह बदलने वाली होती है। चाहे किसी  क्लास के रिजल्ट का दिन हो या नौकरी में जाने के डिसीजन का दिन हो।पर सबसे ज्यादा जिस डिसीजन से उसकी जिंदगी बदलती है वो शादी का डिसीजन है।एक ही पल में सारे अपने जिन्हें बचपन से अब तक अपना कहा,अपना माना वो पराये हो जाते हैं और सारे पराये अपने हो जाते है।ये हर लड़की के लिए बहुत खुशी का दिन तो होता है साथ में बहुत तनाव भरा भी होता है। बहुत कुछ चल रहा होता है दिमाग में समान की लिस्ट, पार्लर की टाइमिंग,कथा का समय, माँ की फिकर, रस्मे रिवाज,हर पल में कुछ नया हो रहा होता है।

                   श्रेया भी उसी फेज़ से गुजर रही थी।आज उसकी शादी है रोहन के साथ।वो बहुत सारे इमोशन से गुजर रही थी। रोहन, रोहन के मां-बाप और उसकी बहन के साथ में जीवन कैसा होगा?!क्या वो सब को समझ पायेगी, क्या सब उसे समझ पाएंगे!!ये विचार उसे बार- बार आ रहे थे।उधर रोहन को श्रेया की जिज्जी, कजिन्स और उसकी दोस्त सब छेड़ रही थी, रोहन पूरी तरह उनके साथ घुलमिल गया था और खुद भी आनंद ले रहा था।

 भारतीय संस्कृति में अग्नि का हर संस्कार हर पूजा में महत्वपूर्ण स्थान है Iअग्नि को एक देवता की तरह देखा जाता है। क्योंकि अग्नि सब जला देती है सारे दोष सारे पाप इसलिए वो खुद निष्कलंक और पवित्र है। विवाह में भी अग्नि को साक्षी मानकर सात वचन और सात फेरे लिए जाते हैं।हर फेरे में एक वचन को निभाने का प्रण लिया जाता है और जीवन भर अपने जीवनसाथी का साथ निभाने का प्रण लिया जाता है। पंडित जी अपनी ज्ञान भरी वाणी से बताये जा रहे थे I श्रेया पर मंत्रोच्चार का दिव्य प्रभाव पड़ रहा था,अग्नि की रोशनी में वो बहुत सुन्दर और प्यारी लग रही थी।वैसे तो हर लड़की अपनी शादी के दिन दुनिया की सबसे सुंदर लड़की लगती है।पर श्रेया की सादगी के साथ सुंदरता अलग ही दमक रही थी। श्रेया इस समय बस अपने आगे आने वाले जीवन और रोहन  बारे में सोच रही थी और चाह रही थी कि ये अग्नि उसकी उदासी को यही पर जलाकर राख कर दे।अब वो भी  अपनी सहेलियों की तरह समान्य जीवन जीने की प्राथना ईश्वर से किये जा रही थी I

तुम भी बहुत उदास हो,मेरी तरह उदास।जिंदगी वो होती है जो हमारे साथ घटित होती है न कि जो हम सोंचते हैं हमारे साथ घटित हो।हमारा तकदीर लिखने वाला हमारे साथ कभी-कभी बहुत अजीब संयोग लिखता है।कभी-कभी जिंदगी की गति इतनी विपरीत होती है हमारे कुछ भी कर लेने से भी सीधी नहीं हो पाती।हम बिल्कुल असहाय खड़े दिखाई पड़ते हैं।हम अभिधा में सोचते हैं जीवन लक्षणा में समझता है और हमारे साथ घटित होने वाली घटनाएं व्यंजना में होती है।ऐसा ही कुछ इस समय श्रेया के साथ घटित हो रहा था।उसे लगा था शादी के बाद चीजें बदल जायेंगी,उसे इतना चाहने वाला और ख्याल रखने वाला पति मिला है उसके प्यार के आगे उसकी उदासी हार जायेगी।पर ऐसा हुआ नहीं।उदासी ने फिर उसे अपने आगोश मे भर लिया था। 

                 जैसे-जैसे शादी के दिन बीतते गये।उसकी उदासी उसी अनुपात में बढ़ती गयी। रोहन ने भी बहुत कुछ किया उसकी उदासी दूर करने के लिए।उसे आस -पास घुमाने ले जाता उसे हर तरह से खुश करने की कोशिश करता पर उसके प्रयास ज्यादा असर नहीं डाल पाते श्रेया की मनःस्थिति पर।कुछ दिन तो वो खुश रहती बाकी दिन वो गुमसुम सी रहती।श्रेयाका जीवन बाहर से शांत दिखता था, पर अंदर से कोलाहल से भरपूर था।उस ने अपने काम से और व्यवहार से सब का मन जीत लिया था पर उदासी उसे घेर ही लेती थी। वो खुद भी खुश रहना चाहती थी पर बहुत चाहकर भी वह परिस्थितियों को बदल नहीं पा रही थी।उसे पहले की तरह ही निराश घेर ले रही थी। शादी के समय वकालत से ब्रेक लिया था, वो अभी होल्ड पे ही था। पर उस बात का इस उदासी से सीधे तौर की लेना देना नही था। रोहन के प्रयास मे भी कोई कमी नही थी। पर ये मन ही अजीब स बुझा रहता था।कुछ दिन तो वो खुश रहती बाकी दिन वो गुमसुम सी रहती।

श्रेया की शादी के बाद आज पहली बार उसे अपने पुस्तैनी घर जाना था, श्रेया पिछले कुछ दिनों से वैसी ही निरस बेमन सी थी, घंटो गार्डेन मे बैठे कर गिलहरी को देखती रहती और अपनी ही उलझन मे रहती। वैसे तो उसकी सास को वो पसंद थी पर उसका बस हाँ ,नही और सीमित शब्दों में बात करना और उदास रहना बिल्कुल नही भाता। एक दिन उन्होंने श्रेया के ससुर से ये बात कही तो उन्होंने सबको गाँव जाने को कहा। उनके पिता जी यानी की श्रेया के बाबा ससुर भी काफी समय से जाना चाह रहे थे ऐसे दोनों ही लोग हो आयेंगे। रोहन का गाँव दिल्ली से ४००किमी दूर राजस्थान मे था। राजस्थान अपने रंग बिरंगे परिवेश के लिए जितना ही प्रसिद्ध था उतना ही अपने रीवाज़ों के लिए भी। नई बहू के स्वागत मे कोई कसर नही छोड़ी सबने सारे रस्म रिवाज बखूबी निभाए। बहू के स्वागत मे केसरिया बलम पधारों मारे देश.... गाने का गायन करने बहुत दूर से कलाकार आये तो कलिबेलीया नाच भी प्रस्तुत किया गया। पहली बार राजस्थानी परिधान में श्रेया एकदम रानी सा लग रही थी।रोहन की बिंदनी तो घणी चोखी है, जब गाँव की औरतो ने बोला तो रोहन तो खुशी से झूम गया।रात भर  कठपुतली डांस और खाने खिलाने में व्यतीत होने के बाद सब कुलदेवी की पूजा के लिए गाँव से थोड़ी दूर सब गए। अरावली पहड़ी पे बना माँ का मन्दिर बहुत ही अद्भुत ही जान पड़ता था, पूजा के बाद शाम तक वँहा ही रुकना हुआ। श्रेया को रोहन पास ही झील के किनारे ले गया। झील के साफ पानी में पैर डाल कर श्रेया घंटों तक चुप बैठी रही रोहन ने एक दो बार कुछ बोलने की छोटी सी कौशिश की पर श्रेया ने हाँ ,हूँ मे बात खतम कर दी।रोहन को काफी अजीब लगा, पर शायद थकान हो सोच कर उसने टाल दिया। गाँव से लौटते समय सब ने खूब आशीर्वाद दिया , साथ ही बोला बहुरानी अगली बार आना तो खूब बात करेंगे इस बार तो बस हाँ हूँ से ज्यादा न सुनी तुम्हारी, लगे हाथ कुछ ने रोहन को बहुत को खुश रखने की सलाह भी दे डाली।

                    श्रेया के जीवन की डोर यूँही खीचती जा रही थी। कभी कभी मायके जाना होता तो भी उसे कोई रोमांच नही होता। रोहन को ये बात अक्सर चुभती। वो श्रेया को खिलखिला के हँसते देखना चाहता था। उसने हनीमून का प्लान बनाया और एक दिन सुबह के समय जब सब नाश्ते की टेबल पर एक्कहटा  हुए ,तभी घर का काल बेल बजा और एक बड़ा - सा बुके सुधा दीदी ने लाकर श्रेया के सामने रख दिया। श्रेया जो सबकी प्लेट लगा रही थी वो इतना बड़ा  बुके देख के थोड़ा आश्चर्यचकित हुई पर फिर सामन्य होते हुए बोली ,’ये किसका है सुधा दी।‘सुधा दी ,दादा जी के कमरे की तरफ नाश्ते की ट्रे ले जाते हैं बोली भाभी इसमें आपका नाम था तो आपको दे दिया I आप खुद देख लीजिये। श्रेया ने बड़े बेमन से कार्ड और लिफाफा हाथ मे लिए और खोल के देखा। वो एयर टिकट थे पेरिस के। पेरिस जो शहर नवविवाहितो और प्रेमियों के लिए स्वर्ग सा जन पड़ता है। पर श्रेया को विशेष अनुभूति नही हुई। उसने जाने की डेट को एक सरसरी नज़र से देखा और कार्ड पे नाम देखा। नाम किसी और का नही उसके पति रोहन का ही था जो दूर खड़े देख रहा था की श्रेया का क्या रेस्पोंस आता है। तभी रोहन की छोटी बहन जो अब तक खाने मे व्यस्त थी दौड़ कर आई और बोली, " ओ माय गॉड!! भाभी इतना बड़ा बुके और ये क्या है? देखूं तो! , कहते हुए ,उस से लिफाफा हाथ मे ले लिया और झूमते हुए बोली ,’ओ हो ये तो भैया ने भेजा है आप दोनों पेरिस जाने वाले हैI’ वॉओ!! आप कितने लकी हो। और कोहनी से उसे मारते हुए सबको बताने के लिए अंदर की तरफ भागी। बदले मे श्रेया जो अभी खाना ही शुरू की थी बोली अरे कनिका दी सुनिये तो। पर कनिका तो हवा की तरह वंहा से जा चुकी थी। भाभी और ननंद की इस चुहल ने माहौल को थोड़ा खुशनूमा कर दिया था। पर उस के जाते ही फिर वही शांति बस कांटे - चमच के चलने की आवाज़ आ रही थी। रोहन भी ऑफिस जा चुका था आज थाईलैंड से कुछ इंवेस्टर आनेवाले थे। 

श्रेया ने तय समय तक अपना सारा समान पैक कर लिया था और रोहन की भी पैकिंग कर ली थी। आज दोनों को पहली बार कंही अकेले जाना था अभी तक पूरा परिवार ही जाता था। सबसे आशीष लेकर वो दोनों कार मे बैठे गए। आज दिल्ली में मौसम खुशनूमा था हल्की बारिश और कार मे गाना भी क्या खूब ही बजा रहा था, 

“ये मोह मोह के धागे…… तु होगा जरा पागल जो तूने मुझे चुन लिया... ये मोह मोह के धागे तेरी उँगलियों से जा उलझे……।“

श्रेया अपनी ही दुनिया मे गुम एयरपोर्ट को जाती हुई गाड़ी से बाहर  पीछे भागती हुई बिल्डिंगो को देखती जा रही थी। रोहन उसे दुनिया  भर की बाते बता रहा था और वो हाँ - हूँ कर रही थी। तभी रोहन ने उसके हाथ को अपने हाथ मे भर कर कहा, ‘थैंक्स टू दादू की आज हमे मी - टाइम मिला। श्रेया ने आश्चर्य से देख तो रोहन बोलने लगा ,’दादू ने बोला की तुम बहुत उदास रहती हो ,तुम्हे कँही बाहर घुमा लाऊँ। जब मैंने बोल बाहर कँहा??तो वो बोले की.’ अरे जो तुम लोग जाते हो नवविवाहित लोग क्या बोलते है हनी..”. “हनीमून दादू।“ रोहन तपाक से बोला। और ये बता कर वो जोर- जोर से हँसने लगा और उधर श्रेया ने हल्की सी मुस्कान देकर बस इतना कहा तुम भी न रोहन और फिर बाहर देखने लगी। गाड़ी एयरपोर्ट पहुँच चुकी थी। रोहन ने खुद आगे बढ़ कर श्रेया के लिए दरवाज़ खोला और झुक कर बोला, पहले आप मेहरबा। श्रेया आगे बढ़ गई अपने बैग को संभालते। रोहन ने पूरा मन बना रखा था की इस ट्रिप मे वो श्रेया को खुश रखेगा और कोशिश करेगा की वो जान सके की इतने बुझे और ठंडे बरतवा के पीछे क्या कारण है। वो अपनी श्रेया को ऐसे नही देख सकता। यूँही ख्यालो मे गुम दोनों चेक इन काउंटर पर पहुँचे वँहा से फॉर्मल्टी पूरी कर दोनों लौन्ज मे बैठे ,अभी थोड़ा समय था। रोहन ने घर पे सब को इंफोर्म किया की अब कुछ घंटे तो बात नही हो सकेगी वो ठीक से पहुँच गए है और अब फ्रांस पहुँच कर बात होगी। 

दोनों घंटो की यात्रा के बाद पेरिस मे थे। पेरिस जो की रुमानियत से भरा एक जीताजगता शहर है। श्रेया रोहन के साथ पूरे पेरिस में जगह -जगह गई। दोनों ने कैंडल लाईट डिनर किये, एफेल  टॉवर देखा और ढेरों फ़ोटो ली। रोहन को लगा की शायद अब उसकी हमसफर उसे समझने लगी है। श्रेया और सारी लड़कियों की तरह पेरिस को देख के बहुत खुश तो नही हुई। पर रोहन की खुशी के लिए खुश रहती। पर मन का वो सुनापन कँही न कँही उस पर हावी होने लगता। जिसे वो अपनी झूठी हँसी से छुपाने की कोशिश करती।

आज एक हफ्ता हो गया है दोनों को पेरिस से  आये, रोहन ऑफिस जा चुका था और श्रेया सब काम निपटा के अपने रूम में थी। मम्मी जी और सुधा दी बाकी के काम समेटाने मे लगी थी। श्रेया कमरे से लगी बालकनी मे बैठी एक मैगज़ीन के पन्ने पलट रही थी मन बोझिल सा हुआ पड़ा था। उसे उलझन भी होती जब वो कनिका, मम्मी जी और बाकी सब को दिन भर हँसते खिल -खिलाते देखती तो सोचती मै क्यु नही हूँ इन जैसी। रोहन की तो बात ही अलग ही थी वो तो गूंगे को भी बोलवा दे। इतना हँसमुख और प्यारा। 

दिन यूँही गुज़र रहे थे पिछले कुछ दिनों से श्रेया उल्टी और चक्कर से परेशान थी। शाम को जब रोहन आया तो मम्मी जी ने बोला, सुनो न बेटा कितना बिजी रहते  हो, कुछ बहू की भी खबर रखो। ये सुन के रोहन थोड़ा घबरा गया। क्या हुआ मम्मी?, पिछले कुछ हफ़्ते बाहर की मीटिंग्स और क्लाइंट से मिलने मे ही चले गए रोहन को होश ही नही था। वो जल्दी से रूम मे आया और श्रेया का टैंम्प्रेचर लेने लगा I श्रेया ने बोला ,” बुखार नही है बस मन खराब - सा हो रख है Iउल्टी और चक्कर आ रहे है। सुन कर रोहन खुद को बड़बड़ते हुए डॉक्टर से अपॉइंटमेंट लेने लगा, हूँ- हाँ ठीक है Iके दौर के बाद दोनों तैयार होके अपने डॉक्टर के चैंबर पहुँचे। डॉक्टर ने दोनों को देखा और सब सुनने के बाद मुस्कुरा के बोले गुल्लू ये कुछ टेस्ट लिखे है इनको कराकर डॉ मोहिनी शर्मा से मिलो। ये सब सुन के और प्यार का नाम बुलाये जाने पे , रोहन को आश्चर्य हुआ वो बोला क्या बात है शर्मा अंकल। डॉ शर्मा मुस्कुरा के बोले गुल्लू तुम पापा बनने वाले हो। ये सुनके तो रोहन  सातवे आसमान पे था। उसने श्रेया को जोर से गले लगा लिया। श्रेया ने भी  मुस्कुरा के  डॉक्टर को नमस्ते कियाI अब दोनों घर आ गए। रोहन और सभी फूले नही समा रहे थे। हो भी क्यों न सालों बाद घर मे बच्चों की किल्करिया गुजने वाली थी। सबने खूब बधाई दी और नज़र उतारी अपनी बहू की। कनिका ने भाभी को बोला.” भाभी अब कनिका का छोटी हो तुम वाला टाइटल  खतम हो जायेगा। मै बुआ बन जाऊंगी। श्रेया आज काफी दिन बाद खुश थी I उसे बच्चे से उम्मीद सी लगी, की मैं शायद अब खुश रहूँ। 

देखते – देखते  प्रेग्नेंसी के सात महीने हो गए। मूड स्विंग, उल्टी, लो बीपी और अल्ट्रासाउंड जैसी फॉर्मल्टी करते आज गोद भराई का दिन आ गया। पूरा घर सजा था,  सबने श्रेया को उपहार दिया और जच्चा -बच्चा को खूब आशीष दिया। रोहन तो खुशी और देख भाल मे खुद को ही भुला बैठ था। 

आज श्रेया हॉस्पिटल मे एडमिट हो गई थी रात से सब यंही थे। डॉक्टर ने ओपरेशन बोला था। कांपते हाथो से रोहन ने डेक्लरेशन साईन किया। सबने समझाया की सब ठीक है। ये बस एक फॉर्मलिटी है। डॉक्टर  ने दोपहर के एक बजे एक फूल सी बच्ची रोहन के हाथ मे दी और बोल, ‘ गुल्लू ये लो अपनी नन्ही परी। “ सब खुशी से भर गए। आज काफी ,काफी या नही कितने साल बाद श्रेया का मन खुशी से भर गया और आँख से आँसू आ गए। रोहन भी खुशी  से रोने लगा। दोनों ने बिटिया का नाम निहारिका रखा। ऐसे दिन बीतते गए। श्रेया निहु की परवरिश मे खुद को भूल चुकी थी और रोहन भी घर बाहर की जिमेदारियों मे व्यस्त रहने लगा। ये जीवन जिम्मेदारियों का ताना बना ही तो है I

कनिका की शादी तय हो गई थी। अपने उदासी के दिनों की सबसे सुंदर स्मृति को अब श्रेया विदा करने वाली थी। काफी दिन बाद आज फिर मन बेचैन था। बहुत बेचैन। निहु सो रही थी और शाम हो गई थी कल से बारिश ने रुकने का नाम न लिया था। निहु को हुए पूरे चार साल हो गए थे , वक्त का कुछ कम ही अहसास रहा है इन दिनों। रोहन  कमरे मे दाख़िल हुआ श्रेया को पता ही नही चला, रोहन सोती ही बिटिया को निहारने लगा, अचानक उसका ध्यान अपने ही में गुम श्रेया पर गया। आज बड़े दिन बाद श्रेया फिर वैसे ही उदास थी, रोहन डर सा गया ,की कँही ये फिर गुम न हो जाए। उस ने खुद को संभालते हुए बोला श्रेया... श्रेयू..,श्रेया हडबड़ कर उठी तो देख रोहन बालकनी के ग्लास के उस तरफ से बुला रहा था। श्रेया ने आने का इशारा किया और वँहा आ गई। दोनों चुप थे, रोहन ने थोड़ा सा हँसने की कोशिश करते हुए कहा , "अब छुटकी चली जायेगी ,तो कोई मेरी टांग नही खीचा करेगा बात-बात पर। है न! उसकी बात सुनकर श्रेया कुछ नही बोली और दूर देखने लगी। उसे पहले ही अच्छा नही लगा रहा था अब ये रोहन भी । 

कनिका की शादी तय होते ही घर अजीब सी बेचैनी से भर गया, सब अति व्यस्त हो गए। समय काफी कम था वो ऐसा था की चट मंगनी, पट व्याह जो था। नवरात्रि मे मंगनी थी और फलगुन में व्याह की तिथि रखी गई थी। कनिका के साथ श्रेया का सारा दिन भी खरीदारी मे ही बीत रहा था। कनिका जो लहंगो के रंग देखने मे व्यस्त थी उस ने ध्यान दिया की भाभी के चेहरे का रंग क्यों उड़ा है। भाभी को अचानक से पूछ दिया,” भाभी!! आप ने क्या सोचा क्या पहनेंगी!! क्या मेरी ही शॉपिंग मे बिजी रहेंगी।  खुद के लिए कुछ नही लेना। या भाई का इंतज़ार है की वो ही ले जाए?! “ बोल कर आँखों को मटका कर मुस्कुराने लगी। श्रेया जो की लहंगे का कैटलॉग देखने व्यस्त थी उस ने कनिका को जोर से घुरा। दूर खड़ा रोहन भाभी -ननंद की हंसी ठिठोली देखकर  हँस दिया। श्रेया को कनिका ही थोड़ा हंसाये रहती थी, और  उसके साथ ही वो सहज थी। श्रेया जो अभी तक चुप थी मुस्कुरा के बोली ,’वैसे अभी आप का समय है आप ले लीजिये, बाकी आपके प्यारे भैया जो वंहा खड़े सबकी शॉपिंग कर रहे है जब वो अपनी बीवी की सुध लेंगे?! ,और दोनों हँस रोहन को देख हँस पड़े। रोहन समझ गया अब दोनों मिलकर उसकी टांग खीचने वाली है। वो जल्दी से आया और बोल,’ श्रेया क्या बात है आज तुम भी इसी की टीम मे हो गई। “ …तीनो हँस पड़े। कनिका ने जिद करके श्रेया को दो लहंगे और साड़ी दिला दी । रोहन और पापा जी ने सबके लिए और अपने लिए सभी समान का बिल किया.. दिन यूँही उड़े जा रहे थे I

कनिका के ससुराल वाले अक्सर आते जाते थे किसी न किसी काम से एक दिन कनिका की सास ने श्रेया से अचानक से पूछा दिया, बेटा आप तो वकालत करते थे, तो आगे शुरू क्यों न किया! श्रेया ऐसे किसी प्रश्न के लिए तैयार नही थी । वो घबरा गई और घबराहट में कुछ भी बता कर वँहा से किचन मे आ गई। शोभा जी (कनिका की सास)  भी हतप्रभ रह गई उन्होंने धीरे से टॉपिक चेंज कर दिया। पर श्रेया के दिमाग मे बीती सारी बाते याद आने लगी और फिर सारी शाम एक अजीब सी चुप्पी छाई रही श्रेया के चेहरे पर। जब ये बात ही तब वंहा पर सिर्फ कनिका और श्रेया और शोभा जी थे। कनिका को भी श्रेया का जवाब थोड़ा अजीब लगा ऐसा  कुछ उसने कभी भाभी के मुँह से सुना नही था। देखते देखते शादी का दिन आ गया। श्रेया ने कनिका के कहे  अनुसार ही सब कुछ किया।

आज श्रेया की विदाई हो गई I चार दिन के फंक्शन मे कोई कमी नही की भाभी - भाई ने सब एक टांग पर खड़े रहे। पर आज सब बहुत दुखी थे। क्यों  न होते उनके आँखों का तारा अब किसी और के घर की रौनक होने गया था। श्रेया  कुछ चार दिन तक यूँही दुखी रही। बिटिया जब सो जाती तो वो दूर अस्तांचाल के सूर्य को निहारते उदास हो जाती। मम्मी ने पापा से बोल कर दोनों बच्चों का मालदीव का टिकट कर दिया था। क्योकि पिछले दिनों जिस तरह सबने मेहनत की थी और कनिका के जाने के बाद घर मे जो उदासी थी उन्हे भी पसंद नही आ रही थी। तो वो तो अभी कँही दूर जा नही सकते थे सोचा की बच्चों को भेज दे। 

शाम को चाय पे मम्मी पापा ने दोनों को टिकट देते हुए बोला, "टेक आ ब्रेक गाइस्"। सुनके सब हँसने लगे। श्रेया भी मुस्कुरा दी। 

निहु की पहली विदेश यात्रा थी रोहन निहु की कोई भी फोटो नही मिस करना चाहता था। दोनों बिजी थे तरह तरह के शंख लेने मे मछली देखने मे। उधर श्रेया एक जगह रेत पे बैठे क्षितिज को निहारने मे लगी थी। कितना कुछ बदल गया था जीवन में पर ये उदासी और मन की खटास कम ही नही होती। 

वापस आये करीब एक महिना हुआ होगा और सब आज बैठे के फोटो देख रहे थे। तभी सुधा बोली भाभी आप कितनी कम फोटो मे है तब रोहन ने भी गौर किया की वो तो निहु मे बिजी था। सच मे श्रेया तो काफी कम फोटो में है। श्रेया ने हल्की सी मुस्कान देते हुए बोला सुधा दी को बस श्रेया को ही देखना है, देखिये तो निहु कितनी खुश है। 

रोहन को सुधा दी की बात भूल ही नही रही है। अब रोहन ने ध्यान देना शुरू किया की श्रेया फिर उदास रहने लगी है। अब निहु भी स्कूल ,एक्विटी मे बिजी रहने लगी है। आज काफी दिन बाद रहा सुधा को कॉफी पे लाया था। बात बात में उसने सुधा से पूछ लिया। हिम्मत करके, सुधा क्या मैं तुम्हे पसंद नही था घरवालो ने  जबरदस्ती तुम्हारी शादी की थी मुझे से या क्या बात है तुम किन उदास हो। श्रेया ऐसे किसी प्रश्न के लिए तैयार नही थी, फिर भी उसने खुद को संभालते हुए कहा नही ऐसी की बात नही, मैं हमेशा से यूँही हूँ। शांत और अंतर्मुखी। रोहन को भी अब घुटन हो रही थी। उस लगा था की अब इतने साल बाद सायद वो खुल के के सकती थी। पर उस ने माहौल को थोड़ा समान्य करने के लिए बोल चलो डांस करते है साथ मे, सिंगर गिटार पे गा रहा था। ये धुँआ- धुँआ सा रहने दो मुझे दिल की बात कहने दो मैं पागल दीवाना तेरा..... जैसे गाने वाला रोहन के अल्फाज बोल रहा हो, हैं सच ही तो है श्रेया को खुश रखने के सारे उपाय करता है वो,। उस बस उसकी खुशी चाहिए। 

उसे बस उसकी खुशी चाहिए थी। 

आज रेवान का  पहला जन्मदिन है। कनिका, विशाल जी, रोहन, मम्मी पापा, निहु सब रेडी होके बाहर खड़े है एक रिज़ॉर्ट में शानदार पार्टी है, बिल्कुल निहु के पहले जन्मदिन की तरह। श्रेया अपने कमरे मे रेवान को तैयार कर के बस निकालने वाली है तभी उसकी मम्मी का फोन आया उन्होंने कुछ ऐसा बताया जिसको सुन के श्रेया खुह हो गई। वो लगभग दौड़ती हुई गाड़ी मे बैठ गई। रोहन थोड़ा आश्चर्य मे हुआ फिर उसे निहुँ के जन्मदिन की श्रेया और ये श्रेया एक ही लगी। उसे लगा की ये अपने बच्चों मे तो खुश ही रहती है। श्रेया वेन्यू मे पहुँच कर रेवान को रोहन को देकर किसी को ढूंढ ने लगी। तभो सामने से उनके दोस्त आते दिखे जो निहुँ के जन्मदिन पर नही आ पाए थे। उनसे मिलकर वो बहुत खुश हुई। आज रोहन को लगा की चलो कंही तो खुश है। आज भी दो दोस्त नही आ पाए थे। रेवान की जन्मदिन के अवसर पर आये सभी लोग रोहन से मिले थे। रोहान को श्रेया के सभी दोस्त अच्छे  लगे, शिवाये शिवांश के जो की कुछ ज्यादा ही चिपक रहा था श्रेया से। आते ही बोला, ओह मै गॉड!! तुम क्या लग रही हो श्रेया। मुझे कभी नही लगा था ,की तुम इतनी सुंदर लगोगी, वरना मै तुम्हे जाने नही देता …..ऐसे ही बाते करते हुए शाम गुज़र गई, सारे दोस्त जा चुके थे। बात आई- गई हुई पर रोहन को रह -रह के शिवांश की बाते याद आ जाती  I

रेवान  के जन्मदिन को एक महिना हो गया था Iश्रेया वैसी ही थी ,वो खुशी भी कुछ दिन की थी, पर आज अचानक एक फोन आया, वो उठा कर बाहर लॉन मे चली गई और बात करके वापस आई। 

 दूसरे दिन शाम को उसनें बोला की मै कुछ दिन के लिए बाहर जाना चाहती हूँ पहले तो सब सन रह गए बच्चों को छोड़ कर कंहा जाओगी। पर रोहन ने उसकी बात समझी बोला, “जा सकती हो पर सिर्फ एक  मंथ के लिए!!

 श्रेया ने हाँ  मे सर हिला दिया। रेवान और निहुँ अपने दादा दादी से भी काफी घुले मिले थे और सुधा  दीदी दिन भर रहती थी घर पे तो वो भी मदद कर देगी, शाम को मैं भी आ जाता हूँ, इतने साल मे पहली बार उसने खुद से कंही जाने की इच्छा की है वरना माँ के घर भी वो सबके कहने पे ही जाती थी I सुबह सुबह श्रेया निकल गई थी ड्राईवर ने उसे एयरपोर्ट छोड़ वो कँहा गई ये न रोहन ने पूछा था और न उस ने बोला। थोड़ा परेशान था, पर श्रेया ने जाने से पहले बोला था, “ मैं दिन मे दो बार फोन करूँगी। “तो उसने अपनी तरफ से इमर्जेंसी मिसकाल भी बता दी थी। बन तो वो बहुत बहादुर रहा था श्रेया के सामने पर उसे उसकी बहुत फिकर थी। एक महीने तक के लोकेशन और टीम पे कॉल आते रहे और तीसवे दिन श्रेया घर के गेट पर थी। बहुत ही ख़ुशी से सबसे मिलती हुई अपने बच्चों को भी भीच के अपने गले लगा लिया। सबके गिफ्ट उन्हे दिये और मम्मी - पापा को अपनी फोटो दिखाई। सुधा दी को एक सुंदर सा कारडीगन दिया। सुधा श्रेया को खुश देख खुद भी खुश हो गई। रोहन किनारे खड़ा बस अपनी पत्नी को निहार रहा था, इतना परिवर्तन कैसे? जैसे उत्तरांचल और हिमांचल के वादियों मे कोई खजाना मिल गया हो। जैसे ही कमरे मे रोहन आया वो खुद आगे आकर गले से लग गई । रोहन के आश्चर्य का ठेकना नही था। अब हर सुबह श्रेया मंदिर ir मे आरती गाती और सबको बड़े प्यार से उठती। सबको गुनगुनाते हुए खाना देना और सब की हर बात पे बिना बात खुश रहना उसकी आदत हो गई थी। सब तो खुश थे पर रोहन को ये बात खटक गई। रोहन को लगा की मैंने देश विदेश घुमाया, तरह तरह के जुगत लगाए पर श्रेया कभी खुश तो क्या कभी मुश्कुराई भी नही  उन एक महीने मे ऐसा क्या हुआ ?? जो ये इतना चाहकने लगी!! उसे याद आया की श्रेया ने बोला था की वो नेक्स्ट ईयर भी वँहा जाना चाहेगी। 

जीवन अजीब कसमकाश मे था जब वो शांत और गुमसुम थी तब भागवान से कामना थी की वो नॉर्मल हो जाए अब जब वो अपने हालातो को जीत कर आगे बढ़ रही थी तो मन शंका के तूफानो से घिर गया था। मन अब इस मृगत्रिषण से निकलाना चाहता था। वो परेशान सा हो गया था। ऑफिस मे भी मन नही लग रहा था। कई बार सोचा की फोन चेक कर ले श्रेया का और देखे की कौन है ? जिसका फोन आते ही वो गार्डेन या टेरेस मे जाकर घंटो बात करती रहती और जिसके आने से उसकी पत्नी इतनी खुश है। वो बस अब जाने के लिए दिन गिन रहा था। अक्सर वो घंटो ऑफिस मे रह जाता। कुणाल जो उसका जिगरी दोस्त था एक दिन उस से पूछ बैठा की, क्या बात है! ये मेरा मज़नू आज कल कंहा गुम है। रोहन कुछ नही बोलता। कई बार की कोशिश के बाद एक दिन उसने, सब कुछ कुणाल को बता दिया। पहले तो वो नही- नही करता रहा ,पर पिछले दिनों घर जाने पर, भाभी ने जिस आत्मीयता से उसका स्वागत किया उसे भी अजीब लगा। वो स्नैक्स चाय के बाद अक्सर अंदर चली जाती थी और इस बार वो रुकी और उन्होंने विभा और गर्वांगी के बारे में भी पूछा और उन्हे जान कर आश्चर्य हुआ की विभू मेरा बेटा भी है। जब की पहले भी उन्हे बताया था। वो नेक्स्ट डे ऑफिस मे बोला "तु सही कह रहा है  यार भाभी जी टोटाल्ली चेंज हो गई है। "अब वो भी तरह के तरीके बताता रहता पर दोनों मे से किसी की हिम्मत सामने से  पूछने की नही हुई।रोहन ने किसी तरह कश्मकश मे वो बीते महीने काटे। 

आज श्रेया फिर जा रही है वो खुश तो बहुत है पर अपने बच्चों के गले लग के खूब रोई भी। ये वही श्रेया थी जो शून्य हो जाती थी। अब तो रोहन को लगाने लगा की ये फोन पे जिस लड़के से बात करती है उसके और इस बदलाव के बीच कोई संबंध है। श्रेया के निकालते ही रोहन भी निकल गया। मन ही मन अपने मन को समझता। क्योकि वो श्रेया को अपनी जान से भी ज्यादा प्यार करता था। मनाली पहुँचते ही श्रेया ने एक कैब ली और चल दी वादियों के घुमाओ दार मोड पर, रोहन ने भी एक कार की और जाती हुई  कार का पीछा करने को कहा। देवदारों  के पेड़ के बीच से रास्ते को चिरते श्रेया की कैब सुदूर पहाड़ों की तरफ बढ़ी जा रही थी, रोहन का दिल जोर से धड़क रहा था कँही श्रेया को पता चल गया की वो उसका पीछा कर रहा है तो वो क्या कहेगा। उसे कितना बुरा लगेगा की मैं उस पे विश्वास नही करता कँही वो फिर से  पहले जैसी न हो जाए। उसने मन मन ही मन पकडे जाने पर क्या बोलना है उसका प्लान बना लिया। अगर पकड़ा गया तो बोल दूंगा की मुझे तुम्हारी सुरक्षा की बहुत फिक्र थी सोचा की खुद चल कर देख लू, पर अगर उसने कहा वो तो की सेकुरिटी वाला भी कर सकता था तब!! मैं क्या करूँगा। अच्छा तब बोल दूंगा तुम्हारी बहुत या आती है तुम्हारे न रहने पर Iइसी उधेड़बुन में पहाड़ों के सकरे रास्तो पर उसकी गाड़ी दौड़ी जा रही थी Iश्रेया की कैब एक आश्रम के पास रूकी। रोहान ने कुछ दूर पर ही गाड़ी रुकवा ली। वो अब पहाड़ी पे छुपते छुपते वँहा आया। उसने देखा श्रेया किसी आदमी से बात कर रही थी वो ३० वर्ष का ओजश्वी संयासी जैसा था। तभी तभी कुछ और लोग आये। रोहन थोड़ी देर  बाद गेट पे पहुँचा , श्रेया अंदर जा चुका था। रोहन अंदर चला ही जा रहा था ,तब किसी ने बोल श्रीमान पहली बार आये है!! रोहन ने हाँ मे सर हिला दिया। आइये हम आपको प्रक्रिया समझ दे। रोहन उनके पीछे चल दिया। वो समझना चाहता था सब कुछ। इस लिए उसने वंही रुकने का मन बनाया। एक बड़े से हाल मे ढेर सारी कुर्शी मेज लगे थे Iठीक एक जगह एक  संत जैसे व्यक्ति कुछ लोग को कुछ समझा रहे  थे। साथ के व्यक्ति ने रोहन को भी वंहा बैठा दिया। उन्होंने रोहन को देख के बोला आप पहली बार आये है तो आपको कुछ बाते बतानी थी। आप एक सप्ताह के शिविर मे जायेंगे। अब रोहन थोड़ा परेशान हुआ की कंही श्रेया से अलग न ही जाए। पर अभी उसे आश्रम मे प्रवेश चाहिए था। प्रक्रिया के चरण थे दो दिन कॉउंसलिंग, दो दिन मेडिटेसन और दो दिन का गौ सेवा/कृषि कार्य/सेवा। 

रोहन फॉर्मलिटी पूरी कर आश्रम के अंदर चला गया। ।आश्रम बहुत सुंदर और सात्विक था, कँही वेद मंत्र तो कँही ध्यान कँही पे लफिंग सत्र चल रहे थे। तभी रोहन को एक कुटी मिली जंहा उसे रहना था। सभी इन कुटी नुमा घर मे ही रहते थे। अब वो अपनी पहली क्लास मे था, जँहा उसे श्रेया दिखी वँहा पुराने सत्र के लोग इसके फयादे  के बारे मे बताते है, और नये सत्र के लोग एक सुंदर से के लोग हाॅल  मे बारी-बारी से जा रहे थे। रोहन थोड़ा उत्सुक और थोड़ा डर -सा भी था, हाॅल मे कोई नही था Iसुंदर से कालीन मे आपको बैठना था आँख बंद करके थोड़ा ध्यान, ओम की ध्वनि पे और फिर निर्देश के अनुसार अपने बारे मे सब कुछ बताना था। कोई  ऐसी बात जो आप डर से किसी से भी न कह सके हो या भूतकाल मे घटित घटना जो आप भूल न पाए हो। फिर ओम के उच्चारण के साथ ये सत्र समाप्त हो गया। आज बहुत साल बाद रोहन को अपना सर काफी हल्का लगा और वो मुश्कुराते हुए बाहर आया। दो दिन का ये सत्र और अपनी पत्नी के पास हो के भी दूर से  देखना रोहन को अलग ही रोमांच जगा गया। और एक आत्मिक सुख था। रोहन श्रेया के फोन अपने कमरे मे आ के सुनता है तक उसे शक न हो। मेडिटेशन सत्र एक साथ होना था अब रोहान घबरा गया की कँही श्रेया को पता न चल जाये। लेकिन वो बहुत बड़ी जगह थी जंहा करीब पचास लोग अलग अलग ग्रुप मे बैठे थे और अपने गुरु के निर्देश का पालन कर रहे थे। उन्हे एक पुष्टि दी गई जिसे मंत्री का जाप करना था। सबने निर्देशनुसार उच्चारण किया। श्रेया आज बहुत ही प्यारी लग रही थी रोहन  ने क्लास के बाद उसे कुछ लोगो से बात करते हुये जाते हुए देखा। अब रोहन समझ पा रहा था। वो गांठ जो कोई न खोल सका यँहा आश्रम के सात्विक और सरल वातावरण ही तो था जो उस की प्यारी श्रेया को बदल रहा था। आज कुटी मे पहुँचते ही श्रेया का फोन आया। रोहन  एक बरगी डर गया की कँही श्रेया ने उसे देख तो नही लिया। बात हो गई और सब सामन्य ही रहा। बस श्रेया ने एक बार वीडियो काल करने को कहा जिसे रोहन  टाल गया। रोहन  सोच रहा था अब वो आगे कैसे सब संभाले गा। रोहान ने तय कर लिया की अब वो कृषि कार्यशाला मे श्रेया से मिलेगा पर वो डर रहा था की वो कहेगा क्या। 

आश्रम में सुबह से ही अमृतवाणी का जाप होता रहता है, मंत्रो का जाप एक अलग ही परिवेश बनता है। महामृत्युंजय मंत्र... 

ॐ त्रय॑म्बकं यजामहे सुगंधिं॑ पुष्टि॒वर्द्ध॑नम्। उ॒र्वा॒रु॒कमि॑व॒ बंध॑नां मृ॒त्योर्मु॑क्षीय॒ माऽमृता॑॑त्।।

. गायत्री मंत्र.. 

ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।

. और ओम की प्रतिध्वनि पहाड़ों से टकरा कर मन को दूसरे ही लोक में ले जाती है। जब से आया हूँ लगता है जैसे कब से यँहा आना चाहता हूँ। वैसे मैं ने कभी आश्रम और ऐसे परिवेश का समर्थन नही किया, क्योकि मुझे लगता था की ये सब ढोंग है जैसा रोज अखबार और न्यूज़ मे देखता था पर पिछले एक साल मे अपनी श्रेया को देख मुझे लगता है की मैं गलत था |

दूसरे दिन की ध्यान कार्यशाला अच्छे से हो गई। रोहन के मन का मैल भी दिल चुका था। और वो आज रोज से खुश था। भोजनायलय से खाना खाके अभी आया था की कुटी के दरवाजा पे खटखाटहट हुई रोहन हल्की नींद मे था वो उठा तो एक व्यक्ति बोला आपको योगी जी बुला रहे है। रोहन ने झट से चप्पल पहनी और निकल पड़ा अभी वो थोड़ी दूर गया उसे। योगी जी मिले योगी जी हल्के सांवले रंग के छः फुट लंबे, आधी काली आधी सफेद करीने से कटी दाड़ी वाले रोबिले चहरे के योगी थे। श्वेत परिधान मे वो अलौकिक ही जान पड़ते थे। योगी जी तक लानेवाले व्यक्ति ने शिष्टाचार के कुछ समान्य नियम बताये थे। उनका पूर्णतः अनुसरण करते हुए, रोहन ने पंडित जी  के चरण स्पर्श किये और उन्हें अपने बारे मे संक्षिप्त परिचय दिया। मेरा नाम रोहन है, मैं एक सॉफ्टवेयर डेवेलपर हूँ और यँहा शांति की खोज मे आया हूँ। जिसे सुनते समय जाने क्यों रोहन को लगा की योगी जी सब कुछ पहले से जानते थे। बदले में उन्होंने बस मुस्कुरा दिया था। रोहन को सामने के आसान मे बैठने को कहा और बोलना शुरू किया, घर परिवार के बारे मे बात करते हुए ही अचानक से वो बोले.... उन्होंने कह रोहन अब आपको अपनी पत्नी को बता देना चाहिए। अब रोहन सन रे गया यंहा अभी तक किसो को उसने अपनी पत्नी के बारे मे नही बोल था। योगी जी ने बोला आप जानते है सब हमे अपनी मन की बात बताते है पर हम उनके व्यवहार से भी बहुत कुछ जान जाते है Iआपको पता है आपकी पत्नी भी आपको बहुत प्रेम करती है और हमेशा खुश रखना चाहती है उनके यँहा आने की वजह भी आप है। वो आपको आप की हँस मुख छवि वापस देना चाहती है जो उनकी देख भल मे कँही खो गई है । आपको पता है की बाकी के दिन आपकी श्रेया कंहा थी। हम बाकी के दो हफ्ते हिमांचल और उत्तराखंड के गाँव मे जा कर सेवा और शिक्षा के कार्य करते है। आप भी चलियेगा इस बार। पर पहले आप श्रेया से मिलिए। कह कर योगी जी ने विदा ली। योगी जी को ये सब कैसे पता वंहा से निकाले  समय रोहन सोच ही रहा था तभी उस याद आया रोहन ने योगी जी से विदा लेते समय देख की योगी जी के पास ही एक लैपटॉप रख था और रोहन ने एंट्री फॉर्म मे श्रेया के डिटेल्स भरे थे। ऐसे ही श्रेया ने भी किया होगा।  उसे ऐसा लग रहा था की योगी जी के प्रबंधन ने उन्हे सब कुछ  बता दिया था   

अब तो रोहन योगी जी के व्यक्तित्व के बारे मे जानने के लिए बहुत उत्सुक हो गया था ,जब कुटी में योगी जी  से मिलने के बाद रोहन पहुँचा और उसने अपने मोबाइल पे योगी जी के बारे मे इंटरनेट पे ढूँढा I तो उसे पता चला की योगी जी बहुत ही पढ़े लिखे इंसान है उँगाने आई आई टी से अभियांत्रिकी का अध्ययन किया है और मनोचिकित्सा विज्ञान में पी.जी. कर रखा है। अपने गुरु की प्रेरणा से वो यँहा आकर बस गए। भारत में मनोचिकित्सा को आज भी टैबू मानते है और इसी टैबू को दूर करने के लिए अध्यतम् और मनोविज्ञान के संमिश्रण से उन्होंने ने अपने निदान का विकास किया था। जंहा एक तरफ महामृत्युंजय मंत्र 

ॐ त्रय॑म्बकं यजामहे सुगंधिं॑ पुष्टि॒वर्द्ध॑नम्। उ॒र्वा॒रु॒कमि॑व॒ बंध॑नां मृ॒त्योर्मु॑क्षीय॒ माऽमृता॑॑त्।।

का उपयोग मन के रहस्यो को समझाने के लिए और हेलिंग के लिए था वंही,आश्रम के वातावरण का निर्माण मनोविज्ञान के नियमो से था। अब तो रोहन योगी जी को और मनाने लगा।

 दूसरे दिन भोर मे ही दरवाजे पे दस्तक हुई। गुलाबी साड़ी में ब्राउन लोंग स्वेटर पहने और बिना किसी मेकअप के भी श्रेया बला की खुबसुरत लग रही थी। एक बाग मे कृषि के समान देकर बोली की मिस्टर जासूस अगर जासूसी हो गई हो तो थोड़ी खेती कर ले। रोहन जो की अपनी बीवी की खुबसुरती देख रहा था खिलखिला के हँस पड़। आज सालों बाद दोनों इतना खुलके हँसे। श्रेया ने आगे बढ़ के रोहन का स्वेटर उसे दिया और दोनों चल दिया कार्यशाला की तरफ। रास्ते रास्तेभर श्रेया उसे जासूस जग्गा कह कर चिढ़ती रही। और रोहन अभी तक समझ नही पाया की योगी जी और श्रेया को पता कैसे चला। आज श्रेया और रोहन को सेब और संतरे के कोई सौ पेड़ लगाने थे। पौधों को एक क्रम मे लगाने के बाद उनकी लबेलिंग भी करनी थी। रोहन ने एक बार स्कूल के वृक्षरोपण कार्यक्रम मे पौधे लगाए थे, उसने बड़ी जिज्ञासा से पूछा," श्रेया तुमने कब सीखा ये सब?"

इस पर श्रेया ने मुस्कुराते हुए दूर एक थोड़े बड़े पौधों की पौधशाला की तरफ दिखा कर कहा की ये सब हमने ही पिछले साल लगाए थे। रोहन ने कहा, तुमने लगाए थे इतने सारे पेड़!! श्रेया ने झूट मूठ की कॉलर को ऊपर उठाने की एक्टिंग की। तो रोहन मन ही मन बुदबुदया , "लो अब ये रामू काका की भी छुट्टी करा देगी। " श्रेया ने पूछा, क्या कहा!! हाँ कुछ तो बोला तुमने?! बोलो। इस पर रोहन बोला की ,अरे! मै तो ऐसे ही पौधों को बोल रहा था की अगली बार जब आऊंगा तो तुम उनसे बड़े रहना, समझे। और दोनों ठहका मारकर हँसने लगे। आस पास के लोग उन दोनों को घूर के देख रहे थे। की इन्हें इतना क्या मजा आ रही है इस कार्यशाला में। वो इस बात से अंजान थे की कब से ये दो हंसो का जोड़ा अपनी दुनिया में इन्ही पलों को तो ढूंढ रहा था।

दिनभर दोनों ने तरह तरह  के फूल और सब्जियाँ लगाई और शाम की निकल गए आश्रम के किनारे से निकलती छोटी पहाड़ी नदी के किनारे। हल्की ठंड गर्मी के दिनों मे भी सिहरन कर रही थी। दोनों टहलते टहलते आश्रम की रोशनी से थोड़ा दूर आ गए थे, दूर कोई पहाड़ी गाना गुनगुन रहा था, बोल तो डोगरी मे थे पर कानों को अच्छा लग रहा था।श्रेया ने चुप्पी तोड़ी और रोहन के कानों के पास आके बोला तो बोलो जग्गा जासूस क्या जानना है। आज रहा बहुत खुश और सुकून मे था, तो उसने बड़े प्यार से सर हिला दिया नही मे और धीरे से बोला बहुत जान लिया अब कुछ नही जानना और उसके हाथ को मजबूती से पकड़ आश्रम की तरफ चलने लगा। गाने की आवाज़ अभी भी उन के कानों मे आ रही थी। पर दोनों चुप थे और श्रेया अपना सर रोहन पर टिकाए बही जा रही थी उस समय की धुन मे। दोनों अपने अपनी कुटी मे जाने लगे तो रोहन ने बोला सुनो श्रेया, श्रेया बोली, हाँ बोलो न गुल्लू... रोहन ने नज़र भर उसे देखा और कुछ नही... कहके चला गया। श्रेया महिला विंग की अपनी कुटी मे वापस आ गई आज पहली बार    वो रोहन के साथ इतनी बेबक थी, और मैं एक भी बार खरब या बोझिल नही हुआ, जैसे पिछले साल से काफी कुछ सकरत्मक था उनके जीवन में। आज उसे पता नही क्यों रोहन को गले लगाने का रो लेने का मन था। पर रोहन के शांत मन मे वो अपनी बातो की हलचल नही डालना चाहती थी।

दूसरे दिन उन दोनों को गौशाला और बुजुर्गो के सेवा मे लगया गयाI आज उन्हे जिन बुजुर्ग दम्पति की सेवा करनी थी वो सेठी दम्पति थे। सेठी दम्पति पुणे के काफी प्रसिद्ध दम्पति थे। सेठी जी पुणे के प्रसिद्ध ड्राई फ्रूट विक्रेता थे। उनके कई प्लांट थे। मिसेज सेठी समाज सेविका थी जो की अपने सामजिक कार्यो के लिए महाराष्ट्र में काफी चर्चित व्यक्तित्व थी। उनकी बड़ी बेटी लॉस एंजेलिस मे रहती थी जो की अमेरिका मे है। वो एक बहुत प्रतिष्टित परिवार था और कई पीढ़ियों से वँहा बसा था। बेटा एक संगीतकार था जोकि देश विदेश की यात्रा मे रेट था हमेशा। और छोटी बेटी जोकि एक हादसे में गंभीर रूप से घायल हो गई थी अब ठीक हो कर उनका सारा करोबार देखती है। जब सब कुछ वअच्छा तो आश्रम क्यों ये श्रेया और रोहन दोनों नही समझ ओ रहे थे। सेठी दम्पति जो की सत्तर के आयु वर्ग मे थे। उनकी दुविधा को भाप चुके थे। जब श्रेया मिसेज सेठी को रेडी कर के डाइनिंग मे लेकर आई तो पहले से सज धज कर बैठे मिस्टर सेठी ने उन्हे देखकर कहा, "क्या बात है शुभा कितनी सुंदर लग रही हो", शुभा जी ने भी बोला डबू चुप करो तुम। तुम कभी अपनी बदमशियो से बाज़ नही आओगे। सोचो बच्चे क्या सोचेंगे!! उन्होंने रोहन और श्रेया की तरफ इशारा करते हुए कहा। जो की सच में आश्चर्य चकित थे दोनों का प्रेम देख कर श्रेया तो हँसते हुए बोली कुछ सीखों गुल्लू सेठी सर और मैम से। श्रेया के ऐसे बोलते ही सेठी दम्पति आश्चर्यचकित हो गया। और सेठी जी ने बोला आप दोनों भी पति - पत्नी हो। तो श्रेया और रोहन ने हाँ में सर हिला दिया। उनको देख कर दोनों सेठी दम्पति हसने लगे। और बोले लगा है ये भी हमारे जैसे है। इस बीच श्रेया और रोहन ने दोनों को खाना खिला दिया अब उन्हे आराम के लिए लिटने लगे तो वो बोले बैठो हमारे पास अभिव्ट काफी समय है। कुछ बात करते है, अब तो रोहन से रहा नही गया और उसने पूछ लिया। आप यँहा कैसे?! तो शुभ्रा जी ने बोला क्यों क्यों नही रे सकते। तब रोहन ने बात को संभालते हुए बोला, "आप तो ऐसे कितने आश्रम बना सकते है आप को यँहा किसी और के आश्रम मे रहने की क्या जरूरत है! तब सेठी जी बोले, शुभ्रा ये वही कॉमन कोवेश्चन है जो लगभग सभी ने गुमारे यँहा आने से पहले और आने के बाद पूछा है। तो बात यू है रोहन बाबू, मै और डब्बू दोनों कॉलेज फ्रेंड थे हमारी लव मैरिज हुई थी। डब्बू अक्का देवराज सेठी, श्री धर्मराज सेठी के पुत्र थे और मैं एक साधारण मराठी लड़की। पर हमारे ससुराल में हमें सर आँखों पे रख गया। क्योकि उन्हें अपनी बहू के रूप में की कोहिनूर नही चाहिए था। वो अपने विचारों की तरह ही सादगी वाली ही बहु चाहते थे। सेठी परिवार आज कल के नये नये धनियो जैसा नही। बल्कि बाद ही सरल परिवार था। आम मराठी परिवार की तरह सभी रस्म रिवाज निभाने वाला और उसमे भी सादगी। हम सब बहुत सुख पूर्वक रहते। सब कुछ अच्छा ही रहा । तीन स्वस्थ और सुशिक्षित बच्चे है हमारे। पर जीवन की आपधपी और कठीनाइयों मे हमने कभी अपनी आंतरिक शांति के बारे मे नही सोचा। हम भागते रहे जीवन की दौड़ मे। हमारी छोटी बिटिया शगुन के बीसवे जन्मदिन पर हमने पूजा पाठ और छोटी पार्टी का आयोजन रख। क्योकि शगुन छोटी थी और दुलारी भी तो उन्हे एक खास जगह जा के तैयार होना था। हमने बोला की हम उन्हे घर पर बुला देंगे पर वो राज़ी नही हुई और वँहा से आते समय वो दुर्घटना की  शिकार हो गई। उनकी गाड़ी लगभग दो घंटे तक वँहा पड़ी रही। आस पास के लोग हमे फोन कर रहे थे। हम दोनों बीच के समय मे अपनी मीटिंग करने लगे और फोन नही ले सके। वो तो उसके भाई ने हमें सिंगापुर से हमारे सेक्रेटरियों के जरिये हादसे के बारे मे बताया। हम जब तक वँहा पहुँचते लोगों ने शगुन को पास के हस्पिटल मे भर्ती कर दिया था। जँहा से दूसरी जगह शिफ्ट करते करते शगुन अधिक ब्लड निकल जाने और ट्रीटमेंट की देरी की वजह से शगुन कोमा मे चली गई। सेठी दम्पति की आँखों से झरझर आँसू गिर रहे थे। शुभ्रा जी ने जोर से बोला, देवा!! और एक लंबी सांस ली और बोली क्या बताऊ बच्चो बहुत ही मुश्किल समय था। तुम लोग से बस इतना कहूंगी की अपने अपनो का कभी कोई कॉल आये टी जितने भी बिजी रहना एक मिनट के लिए ही सही फोन जरास लेना।श्रेया और रोहन भी रोने लगे थे उनका दुःख सुनकर। श्रेया ने धीरे से कहा फिर.... शुभ्रा जी बोली फिर पूरे चार साल हमने बो सब कुछ कर डाला जिस से शगुन वापस आ सके। एक दिन दिल्ली जाते समय हम यूँही आँखों मे निराश लिए बैठे थे तभी योगी जी से मुलकात हुई। उन्होंने बैठो ही बातो मे पूछा क्या समस्या है। डब्बू ने सब कुछ बता दिया। तो योगी जी बोले आप की बेटी ठीक हो जायेगी जैसा की मेडिकल रिपोर्ट कह रही है पर आप और भी किसी कारण से दुखी है। तब हमने कहा नही नही हम बस  या दुख है और हम अपने घर चले आये। और कुछ छह महीने बाद शगुन को होश आ गया। शगुन ने हमसे मिलने से ही मान कर दिया तब हम बहुत दुख हुआ वो अपने दादा और दीदी से ही बात करती हमसे कभी नही  बोलती। हम जो पहले से इस अपराध बोध से दुःखी थे की हम समय पर न सुन सके अब शगुन ने उसे और बढ़ा दिया। एक दिन बेटे ने बताया आई जब सब आप दोनों को फोन कर रहे थे तब वो होश मे थी। अब हमे और बुरा लगा। हमने एक दिन योगी जी की बात या की जो उन्होंने बोली थी की आप और भी किसी कारण से दुखी हो। तब हमने यँहा से संपर्क किया। इस बीच श्रेया ने दोनों लोग को फल काट कर दिया। फल खाते-खाते उन्होंने बताया योगी जी ने हमें और हमारे बच्चों को विभिन्न कार्यो और योग से फिर से समान्य करने के अनेक प्रयास किये। उन्होंने हमे यँहा आने को बोला शगुन हमारे साथ नही आई ,उसे उसके भाई बहन लेकर आये और फिर हम भी आये। योगी जी ने समय परिस्थिति सभी को बहुत सरल तरीके से समझाया। मेरे बच्चे पहले बहुत हिचकिचाये पर धीरे-धीरे जब उन्हे उनकी सारी प्रक्रिया समझ मे आई तो उन्होंने इसे अपनाया और हम भी अपराधबोध से मुक्त किया। आप जानते हो मेरी वही बेटी अब हमारा सारा करोबार देखती है, मेरे एन .जी. यो संभलती है और अपने दादा भाभी के सारे संगीत समारोह भी देखती है। मेरी बहू भी गायिका है। अब बताओ क्यों न रहे हम यँही, योगी जी तो हमारे बच्चे की तरह है। और घर पर सबको भी संतोष रहता है की हम पूर्णतः स्वस्थ रहेंगे यँहा। 

श्रेया और रोहन दोनों को अपलक निहार रहे थे। आश्रम मे सब इन दोनों लोगो की हमेशा बड़ाई करते है पहले ये सेवा के लिए आते थे यँहा और सबका ध्यान रखते थे। जब श्रेया और रहा के चलने का समय हुआ तो सेठी दम्पति ने उन्हें एक भेंट दी ये एक शोपिस था जिसमें लिख था,

 "परिवार को समय दे और खुद को खुश रखे आप विशेष है।" 

बहुत ही भावनाओ से भरा दिन था, दोनों ने अपने काम ख़तम करके नीचे कॉफी हाउस जाने का प्लन किया था। आप हफ्ते मे एक दिन वँहा जा सकते है आज बड़े दिन बाद रोहन ने  टी शर्ट जीन्स पहने थे, आश्रम में कुर्ता पैजाम या लोवर  कुर्ते मे ही दिन का जाता था। आज लौट कर उसने खेतों से कुछ फूल चुन लिए थे जिन्हे उसने एक पतली रस्सी से बांध कर एक बुके बना लिया था। उधर श्रेया ने सुरख लाल अनारकली सूट पहना और अपने को थोड़ा सजा लिया। आश्रम की सादगी और आज के श्रृंगार ने उसे अलग ही छवि दे दी थी आज। वो मुस्कुराती हुई कॉर्रिडोर मे पहुची थी की उसे रोहान आता दिखा, रोहन वैसा ही आकर्षक और सुंदर लग रहा था जैसा की शादी के लिए मुलाकात के दिन पे। रोहन को देखने मे गुम श्रेया को पता ही नही चला की वो कब उसके करो आ गया। आते ही बोला को वाइफि का हुआ आज नजरो से मे ही डालोगी का। श्रेया ने उसको जोर से चुप का इशारा किया। और दोनों मुश्कुराते हुए चल पड़े। पहाड़ी रास्तो दोनों घर बाहर की जाने कितनी बात करते कब कॉफी हाउस पहुँचे पता नही चला। दूर से ही कॉफी हाउस की रंगीन बत्ती झिलमिला रही थी। दोनों ने कॉफी ऑर्डर की और गिटार पे   किसी इंग्लिश गाने की धुन को सुनके खुद भी गुनगुने लगे। पहाड़ी नदी से आती हल्की ठंडी बयार दोनों को अपने चहरे पे महसूस हो रही थी। दोनों चुप थे, फिर श्रेया ने चुप्पी तोड़ी। तुम्हे पता है हम चार भाई बहन थे, रोहन ने हाँ मे सर हिला दिया। बड़े भैया चिनु भैया का भी पता है न, रोहन बोला हाँ। मै कोई तेरह साल की थी जब चिनु भैया का एक्सीडेंट हुआ और घर पे सब कुछ बदल गया। चिनु भैया और मै बहुत क्लोज थे भैया मेरी हर बात सुनते जो माँ, छोटा भाई यंहा तक की जिज्जी भी न सुनती। मै सारा दिन चिड़िया की तरह चाह चाहती भैया के आसपास, जब भैया एक्सीडेंट के बाद रिकवर होके घर आये तो, डॉ ने बहुत सी हिदायत दी , उस मे ये भी की रहे कोई मेंटल प्रेशर न हो। और भैया धीरे धीरे थेंक् होने लगा। मैं कभी जाटी भी तो भैया को दवा खाना पानी ही देने। भैया दो तीन साल तक तो बहुत कम बोलता था और इन्ही तीन सालों मे मैंने जीवन के १०साल जी डाले, जिज्जी की शादी, छोटे को ट्यूशन, क्रिकेट प्रैक्टिस मे जाना और माँ पापा का ख्याल रखते मैं का चुप एडुम चुप और बोझिल हो गई किसी को न पता चला। और सच कहु तो किसी को समय ही नही रहा। सब प्यार तो करते है एक दूसरे से पर आज के समय मे कहने और जताने मे समय नही देते, बोलते भी नही। रोहन ने कॉफी जो की का की आ चुकी थी उस की शिप लेते हुए हैं मे सर हिला दिया और उसे भी याद आया की कनिका से बात हुए काफी दिन हो गए, उसने मैं ही मैं आज ही कॉल करने का निश्चय किया। तब तक श्रेया भी एक शिप लेकर आगे बोलने लगी। इधर चिनु भैया भी फिर से पढाई वगैरह खतम करके जॉब मे आ गए और घर की स्थिति सुधार गई, मैंने भी अपनी लॉ की पढाई ख़तम कर ली थी। पर जिम्मेदारियों के बोझ मे सारे दोस्त, शौक और खुशी कँही गुम हो गई। मुझे अलग सा ही भरीपन रहता बहुत बोझिल लगा। माँ की दोस्तो ने उन्हे कहा शादी कर दो इसकी खुश रहने लगेगी, चिनु भैया माँ, भाभी ने लड़के देखना शुरू कर दिया। मेरा मैं तो था UPSC क्लीयर लाईन का पर जिस बोझ मे थी और दुनिया मे की मैंनेकिसी को न कहा और फिर आगे आप आ गए जीवन में.... बाकी तो सब आप जानते हो.... इतना के कर श्रेया चुप हो गई। उसे अपने वो बोझिल और  अवसाद के दिन या आ गए। दोनों की आँखों मे आँसू थे। कहने को तो सब किसी न किसी दौर मे इस तरह के दौर से गुजरे होते है पर ये इतना खतरनाक हो सकता है की किसी का जीवन बदल दे ये आज जन रोहन ने और समझ सका की उष्णे का भुगता है। श्रेया को उठा के जोर से गले लगा लिया और प्रोमिस किया की वो कभी रहे अकेला नही होने देगा। 

दोनों अपने अपने कमरे मे वापस आ गए थे। रोहन ने तुरंत अपनी बहन कनिका को फोन किया और बोला की तुझे जब भी लगे मुझ से बात करनी हो काल कर लेना, कोई भी बात हो कैसी भी मैं सब सुनुगा मेरी बहन। तु मेरी लिए बहुत इंपोरटेंट है। I love u बेटू सदा खुश रहे तु। ।कनिका भाई के  इस तरह बात करने से हैरान थी, उसने कई बार पूछा की भाई आप ठीक हो। कोई बात है क्या?? रोहन बोला नही बहन कभी कभी हम पास होके भी बहुत दूर निकल जाते है और फकफका के रो पड़ा। कनिका भी रोने लगी फिर दोनों ने एक दूसरे को चुप करया और लौट के मिलने आने का वादा करके फोन रख दिया। रोहन की यूँ भावुक होने से कनिका काफी परेशान थी, शाम को राघव के घर आने पे उसने उसे सारी बात बताई, राघव ये जानता था की भाई - भाभी छुट्टियों के लिए बाहर गए है। उसने कहा हो सकता है किसी से मिलके उन्हे तुम्हारी याद आ गई हो मैं उनके आते ही तुम्हे उनसे मिलवा लाऊंगा। तुम परेशान मत हो। कनिका ने हाँ ठीक है मे सर हिला दिया और अपना काम करने लगी।

 रोहन कनिका से बात खतम करके ,माँ और बच्चों को वीडियो काल लगा देता है Iआज आँसू थे उस की आँख मे। माँ ने पूछा क्या हुआ गुल्लु!! वो बोला ,’मेरी मम्मा मैं हमेशा आपका ध्यान रखूँगा। माँ बोली -,’वो तो तु रखता ही है बेटा, हम भी तेरा हमेशा ध्यान रखेंगे कह के वो भी रोने लगी। बच्चों को गले लगा के बोली,’ अब तुम दोनों जल्दी घर आ जाओ। घर सुना है तुम दोनों के बिना " रोहन ने हाँ में सर हिला दिया। 

दूसरे दिन श्रेया और रोहन ने योगी जी से मिलके जाने की आज्ञा मांगी और वादा किया की अगली बार जब पूरे परिवार के साथ आयेंगे तो गाँव की सेवा और सभी कार्यशाला मे भाग लेंगे। योगी जी ने ' सदा खुश रहो' बोल कर उन्हे विदा किया। 

दोनों पति पत्नी हाथो मे हाथ लिए चल दिये घर की ओर एक नये जोश और उल्लास के साथ।श्रेया आश्रम से लौटते समय रोहन के कंधे पे सर रखे हुए दूर आसमान मे देखती रही और बचपन की बहुत सी बाते बताती रही। कैसे वो चारो भाई  बहन आम के पेड़  से आम तोड़ कर भागते थे। तो पड़ोस की अम्मा उन्हे लाठी लेकर दौड़ती थी। भाई कैसे उसे कंधे पे लेकर मेला दिखाने ले जाते थे। छोटू ने कैसे वो जगह छिन ली एक दिन। जामुन बेर और पीपल के किस्से। जीजा जी और जिज्जी की शादी में कैसे वर - वधु पक्ष पानी के लिए लड़ गए थे। जीजा जी के पिता जी की मुछे कितनी लंबी थी। जिज्जी की सास कितने बढ़िया अनरसे बनती थी। तो रोहन ने लगभग हकलाते हुए बोला अन्न ……अन्न ……क्या अनार सुना था पर अनरसा क्या होता है? तो लगभग मनुहार करते श्रेया ने बोला , हाँ मेरे अंग्रेज़ अनारसा  , चावल और गुड से बनी खस्ता मीठी पूरी। ऐसे ही अनेक किस्से निकल रहे थे श्रेया की पोटली से। और रोहन मुस्कुराता हुआ घडी देख रहा था। फ्लाईट के टाइम से पहले उन्हे एयरपोर्ट जो पहुँचना था कैब मे गाना बाज रहा था। 

“दो दिल मिल रहे है मगर चुपके - चुपके “

ये दिल सच में अब ही तो मिले है, काश मैं ने कभी आगे बढ़ के खुद उस से कहा होता की कुछ कहना है तुम्हे तो कर सकती हो विश्वास या मैं हूँ तुम्हारे साथ सिर्फ उपहार देना या कँही घूम देना ही काफी नही  है, कभी कभी कहना जरूरी है की हाँ बोलो!!सुनूँगा मैं सब I

समाप्त 

 


प्रभा मिश्रा 'नूतन'

प्रभा मिश्रा 'नूतन'

बहुत खूबसूरत लिखा है आपने बहन पढ़ें मेरी कहानी कचोटती तन्हाइयां और हर भाग पर अपना लाइक 👍 कर दें 🙏

19 नवम्बर 2023

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रचनाएँ
बस इसी की तलाश थी
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हसरत जयपुरी ने कहा था कि ,’खुशी फुलझड़ी की तरह होती है थोड़ी देर के लिए चमक बिखेरती है फिर बुझ जाती है और उदासी अगरबत्ती की तरह होती है देर तक जलती है और बुझने के बाद भी कमरे में महक बिखरी रहती है।‘ इस कहानी की नायिका श्रेया का जीवन भी कुछ ऐसा ही था।सब कुछ था उसके पास,अच्छा वकालत का कैरियर,उच्च मध्यम वर्गीय परिवार,दोस्त जो अब थोड़े दूर चले गए थे काम की वजह से पर फोन पे अक्सर बात होती और वीडियो कॉल भी आते अक्सर,फिर भी वो उदास रहती थी।वो अपने आपको इस चकाचौंध में अकेला पाती थी। जैसे- जैसे वो जीवन की सीढ़ियां चढ़ रही थी , उसका अकेलापन और उसकी उदासी और बढ़ रही थी। पर हमेशा से ऐसा नहीं था, श्रेया बचपन में ऐसी नही थी,कम बोलती थी , पर अपने भाई बहनों से खूब बात करती थी I मिलनसार और खुश रहने वाली लड़कियों थी।पर धीरे-धीरे उदासी उसे अपने शिकंजे में लेती गई ।वो दोस्तों के साथ रहती तो हंसती -बोलती पर अंदर ही अकेलापन उसे घेरे रहता।काम के वक्त भी,वह पूरा डूब के काम करती तो थी,पर जैसे ही वो खाली होती वो उदास रहती। उसे किसी सहेली ने थेरेपी की सलाह भी दी थी। फिर क्या होता है जानने के लिए कहानी अंत तक अवश्य पढ़ें |

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