कमला ने नाश्ता तैयार कर डाइनिंग टेबल पर सजाकर रख दिया था। वह जानती थी कि वे टाईम टेबल के पक्के हैं। कर्नल का समय पर नाश्ता करना उससे पहले कमला की डांट खाना, नाश्ता करने के बाद लॉन में बैठकर न्यूज पेपर पढ़ना चाय के साथ, फिर अपनी पत्नी सुधा देवी की डायरियों को उनके कमरे में जाकर सहेजना, उनके पन्नों को उलटना पलटना, उनपर लिखीं कविताओं का टुकड़ों टुकड़ों में पंक्ति दर पंक्ति पढ़ना। उसके बाद अपने बेटे से मोबाईल फोन पर अमेरिका में बात करना। इन्हीं सब कामों से कर्नल के दिन की खूबसूरत शुरुआत होती है। एक समय था कि जब कर्नल बेहद सख़्त मिजाज के थे, लेकिन पत्नी सुधा देवी जिनसे वे बेहद प्रेम करते थे, उनकी मृत्यु के बाद वह अंदर से टुट गए थे।
कर्नल तैयार होकर जैसे ही कमरे के बाहर निकला, उन्हें देखकर उनकी नौकरानी मुँहबोली बहन कमला देवी की हँसी छूट गई। कर्नल उसकी इस तरह बेबाक हँसी से थोड़े झेंप गए, फिर जैसे ही बोलने के लिए मुँह खोला याद आया, ओह.... मेरे दांत, कहते हुए वे वापस अपने कमरे की ओर चले गए। बिस्तर के पास लगी मेज पर रखी अपनी दांत की प्लेट को उठाकर मुँह में लगाते हुए कहते है, ‘कमबख्त ये भी अजब उलझन है, हर बार मेरी बेस्ती करवा देते है। सुधा तुम होती तो जरूर इस बात का ध्यान देती।’ वे एक नजर सुधा देवी की तस्वीर को देखते हुए कहते हैं।