आखिर कर्नल प्रियादर्शनी को घर ले ही आए।
विवाह के अगले दिन, कर्नल प्रियादर्शनी के साथ अपने हनीमून की तैयारी कर रहा था। बेटे-बहू के साथ वह भी प्रियादर्शनी को लेकर अमेरिका जा रहा था। तैयारी हो चुकी थी। गाड़ी में सामान रखा जा रहा था। तिकड़ी और जालिम सिंह भी आश्रम जाने के लिए तैयार थे। चारों कर्नल को प्रियादर्शनी व सबसे अलग एक कोने में ले गए और अपने उपहार कर्नल को देने लगे। ‘देख यारा अब तो तुम नई जिंदगी शुरू कर रहे हो और इस उम्र में बहुत चीजें आदमी के अंदर नहीं रही होती।’ सरदार कहते हुए कर्नल के हाथों एक पैकेट सा थमाता है। ‘इसमें क्या है?’ कर्नल पूछता है। ‘कुछ नहीं यार तेरे लिए खास सामान है, देख इसमें कुछ दवाएें है जो तेरी पावर बढ़ाऐंगी और कुछ निरोध के पैकेट हैं।’ रफीक कहता है। ‘तुम भी यारों क्या मजाक कर रहे हो।’ कर्नल शर्माता हुआ कहता है। ‘क्या बात कर रहा है यारा। हनीमून पर जा रहे है, उसे भी तुमसे कुछ उम्मीद होगी। वह मँुह से थोड़े ही बोलेगी और इस उम्र में तो बिलकुल भी नहीं बोलेगी। सब तुझे ही करना होगा।’ दयाशंकर कहता है। तभी बीच में कमला की आवाज आती है। ‘भाई साहब अब चलिए। सब इंतजार कर रहे हैं।’ सागर भी कमला के साथ तैयारी में लगा था। ‘हाँ हाँ आया मैं।’ कर्नल कहता है। ‘ठीक है कर्नल अब जाओ और मजे में जिंदगी बिताओ।’ वे भी वापस आश्रम चले जाते हैं।
अब कर्नल के बड़े घर में कमला अकेली रह गई थी। अपनी जिंदगी में वह बिलकुल अकेली थी। कमला को भी सहारे की जरूरत थी। कमला को सागर से उम्मीद थी कि वह उसे अपना लेगा और वह उसके साथ एक नई जिंदगी शुरू करेगी लेकिन उस रात दोनों के रास्ते जुदा हो गए और यह मिलन वियोग बदल गया। दोनों एक दूसरे की बाँहों में थे। ‘आज सारी सीमाएं तोड़कर मैं तुम्हारी बाँहों में हूं।’
‘आज शब्दों को भी हमारे दर्मियां नहीं आना चाहिए।’
‘मैं तुम्हें जी जान से चाहती हूं और चाहती हूं कि तुम्हारी बाँहों का यह सहारा कभी न छूटे।’ वह सागर की बाँहों में थी और पूरी तरह खुमार में थी। सागर भी खुमार में था। वह उसके मुँह को चुमते हुए उसके वस्त्र उतारने लगता है।
‘मैं भी तुम्हें जी जान से चाहता हूं जाने मन। अब कुछ मत बोलो आज हमें एक हो जाना है।’ कहते हुए सागर उसके निर्वस्त्र बदन को अपनी बाँहों में जकड़ लेता है। वह भी सागर के शरीर को टोहने लगती है। तभी ‘हटो... छोड़ो मुझे दूर हटो मुझसे।’ वह कहते हुए सागर की बाँहों के दायरे को तोड़ते हुए निर्वस्त्र ही बिस्तर से उतर जाती है। चादर से अपना नग्न बदन ढांपते हुए वह कहती है। ‘तुम मर्द नहीं हो, तुम़़़ ़ तुम तो हिजड़े हो। तुमने मेरे साथ धोखा किया, तुम तो।’ वह सहमी हुई कहती है। ‘तो़़़ ़ तो क्या हुआ, यह मेरा दोष नहीं है। मैं तुमसे प्यार करता हूँ कमला। फिर भी मैं तुम्हारे साथ वो सब कर सकता हूं जो ....।’ सागर की असलियत कमला के आगे खुल चुकी थी। वह अपने से लज्जित व पसीने से तरबतर था। कमला भी पसीने से तरबतर थी। ‘दूर हटो मुझे मत छूना, मैं यह रिश्ता नहीं निभा सकती। अगर तुममें जरा भी इन्सानियत बाकी है तो यहाँ से चले जाओ। मुझे तुमसे नफरत है। तुमने मुझसे धोखा किया है।’ कहते हुए कमला अपने आप को बाशरूम में बंद कर लेती है। सागर सारी रात हॉल में रखे सोफे पर काटता है और सुबह होते ही उस घर से सदा के लिए चला जाता है।