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भाग 2

27 अप्रैल 2022

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शाम के पांच बज चुके थे।  कर्नल रोज की तरह आज भी टहलने के लिए पार्क को निकल पड़ा था।  कर्नल को हमेशा एकांत में रहना पसंद था फिर भी शाम पार्क में इसलिए चला आता था, क्योंकि इस वक्त पार्क के हरे भरे खुले मंजर में कहीं बच्चों का खेलना, कहीं परिंदो का चहचहाना, कहीं प्रेम जोड़ों की गुपचुप सरगोशियां तो कई उम्रदराज बुढ़े जोड़े तो कहीं अकेले बुढ़े लोगों का मिलना, इन सबकी इक छोटी सी दुनिया देखने को मिल जाती थी। 

कर्नल पार्क के एक कोने में  लगे बेंच पर बैठा हुआ इस खूबसूरत शाम का मजा ले रहा था। तभी कर्नल के लिए हमेशा बेमजा-सी आवाज में ग़ज़ल को गुनगुनता हुआ उसका शायर दोस्त सागर उसके करीब आकर बैठ जाता है। 

 "इब्तिदा इश्क है, इंतहा इश्क है

जिंदगी का हसीं रास्ता इश्क है"

 

‘बंद करो.., बंद करो तुम ये अपनी बकवास सी शायरी, मेरे पल्ले कुछ नहीं पड़ती’- कर्नल उससे चिढ़ता हुआ कहता है। ‘कर्नल क्या तुमने कभी इश्क किया है’- वह पुछता है। ‘इश्क वो क्या होता है, ये सब पागलपन की बातें हैं। ’- कर्नल कहता है। ‘यही तो कर्नल यही..... यही फर्क रह गया है मेरे तुम्हारे बीच। तुम मुझे समझ नहीं पाते और तुम्हें मैं बकवास आदमी लगता हूँ’-  सागर कहता है। ‘तुम मुझे यहाँ दो घड़ी सकूँ  से बैठने दोगे या फिर मैं जाऊँ  यहाँ से’- कर्नल थोड़ा गुस्से में कहता है। ‘’अरे तुम कहाँ जाओगे हमसे रूठकर, हम भी साथ चले पड़ेंगे आपके होकर’- वह अपने शायराना अंदाज में कहता है।  आखिर कर्नल गुस्से में जैसे ही बेंच से उठकर दो कदम आगे बढ़ता है तभी दूसरी दिशा से आ रही एक हमउम्र औरत से टकरा जाता है। दोनों एक साथ नीचे गिर जाते हैं, वह कर्नल के ऊपर गिरी थी। यह सब देखकर सागर अपनी हँसी रोक नहीं पाया और अपने आप में बुदबुदाने लगा, ‘लो बुढ़ा इश्क बुढ़ी हुस्र से टकरा गया। अब क्या होगा हाले-दिल का अंजाम खुदा जाने।’ वह औरत देखने में इस उम्र में भी बेहद खूबसूरत थी।  इस उम्र में कर्नल से पहली बार ऐसी औरत का सामना हुआ था, जिसके चेहरे का नूर अब भी चमक रहा था।  

"देखकर रानाइयां हुस्न की आज फिर

लगता है इश्क में खो गया इश्क है।"

 

कर्नल की हालत को देखकर। उसका वह शायर दोस्त ग़ज़ल गुनगुनाने लगता है। ‘ये सब तुम्हारी ही शरारत थी, कमबख्त! मैं सब जानता हूँ, तुने ये सब जानबुझ कर किया।’ कर्नल उस पर बिगड़ते हुए कहता है। ‘अरे कर्नल क्यों परेशान होता है। हो जाता है यार ऐसा और यह सब मैंने थोड़े ही किया, तू खुद ही तो गिरा उसपर। तुझे तो खुश होना चाहिए।’ वह कहता है। ‘तू बता नहीं सकता था सामने से कौन आ रहा है।’ कर्नल कहता है।‘आ नहीं रहा था आ रही थी।’ वह कहता है, ‘हाँ..हाँ वही, अब बात मत बना।’ कर्नल कहता है। ‘अरे मुझे कब पता था कि सामने से वो आ रही थी।’ वह कहता है। ‘जाने क्या सोच रही होगी मेरे बारे में वो।’ कर्नल कहता है। ‘ठर्की और क्या, कहेगी।’ वह कहता है। ‘क्या कहा तुमने।’ कर्नल उसकी बात पर बिगड़ता है। ‘अरे कुछ नहीं गुस्सा क्यों करते हो।’ वह कहता है।

अगली सुबह जैसे ही कर्नल की आँखें खुली जिस्म अजब एहसास में महकने लगा। चेहरे पर नूर सा भर आया था। आँखें चमकने लगीं थी। अचानक कर्नल का बदला हुआ रंग-ढंग देखकर कमला को भी बहुत अजीब लग रहा था। रोज की तरह कर्नल फे्रश होकर अपने कमरे से बाहर निकले, लेकिन इस बार अपनी दांतों  की प्लेट भी बाकी चीजों की तरह मुँह में टिपटॉप लगाए हुए थे।  अपने सब काम खत्म कर सुबह-सुबह कर्नल घर से निकल गए थे। कमला के लिए यह सब अजीब था। ‘भाई साहब यूँ तो बिन बताए कहीं जाते नहीं। पार्क को निकलते हैं घूमने वो भी शाम को, आज कहाँ चले गए जाने? बड़े खुश लग रहे थे। चेहरे पर अकसर शिकन पड़ी रहती थी, आज जाने क्या बात थी? कमला मन ही मन में अपने-आप यह सब सवालात कर रही थी।’

 

 

 अचानक बाहर हार्न बजाती हुई गाड़ी घर के गेट के अंदर प्रवेश करती है। रामु गाड़ी का ड्राइवर गाड़ी को अंदर लाकर खड़ी कर देता है। गाड़ी के अंदर से साहब निकलते हैं। कमला देखकर हैरान थी। साहब अपने चेहरे को ताबदार कर, सर पर जो थोड़े बहुत बाल थे, उन्हें काले कर आए थे। वे एक दम नौजवानों की तरह लग रहे थे। 
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रचनाएँ
एक बार फिर ज़िंदगी
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एक रिटायर्ड कर्नल है जिसकी पत्नी का देहांत हो चुका है। इसकी एक बेटा है जो अमेरिका में रहता है। वहीं उसने एक अमेरिकन लड़की से शादी कर ली है। कर्नल तनहा रहता है। कमला जो कर्नल के घर में नौकरानी है। कर्नल इसे अपनी बहन मानता है। यही कर्नल का ध्यान रखती है। कर्नल को प्रियादर्शनी से प्रेम हो जाता है। प्रियादर्शनी अपने परिवार से अलग होकर वृद्धाआश्रम में रहती है।प्रियादर्शनी और कर्नल के प्रेम को कर्नल का शायर दोस्त अंजाम तक ले जाता है लेकिन सागर का अपना प्रेम अधूरा रह जाता है क्योंकि कुदरत ने उसे ऐसा बनाया है। सागर कौन है कैसे कर्नल के प्र्म के वह कीमयाब करती है । जीनने के लिये पढे़ यह किताब।
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भाग. 1

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लो आज भी कर्नल ध्यान चंद सुबह-सुबह उठे तो अपनी दांत की प्लेट के बिना बाहर निकल आए । सूट बूट पहनकर, रोज की तरह सिर पर गोलदार हैट पहनकर । अपनी बड़ी घूमावदार मूँछों को बाट देकर जैसे आज भी वे कर्नल ह

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भाग 2

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शाम के पांच बज चुके थे। कर्नल रोज की तरह आज भी टहलने के लिए पार्क को निकल पड़ा था। कर्नल को हमेशा एकांत में रहना पसंद था फिर भी शाम पार्क में इसलिए चला आता था, क्योंकि इस वक्त पार्क के हरे

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भाग. 3

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आज शाम पार्क में कर्नल की आँखें बारहा किसी की राह देख रही थी। कर्नल अपने आप में खोया था, तभी कर्नल का शायर दोस्त अचानक आ पहुँचता है। वह कर्नल को खुशनुमा मुड़ में देखकर हैरान था।

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भाग. 4

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सागर का कर्नल के घर आना, आना क्या अब तो वहीं बेशर्म की तरह पूरा दिन पड़े रहना, कई बार रात भी यहीं गुजारना। अब तो जैसे उसका भी यही घर हो। कमला को यह अखरता था। उस दिन दोनों बड़ी देर से कमरे म

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भाग 5

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उन दोनों ने उस वृद्धाश्रम में अपनी दस्तक दे दी थी। वृद्धाश्रम का मैनेजमेंट आॅफिसर जालिम सिंह कर्नल के शायर दोस्त को पहले से जानता था। कर्नल की तरह आश्रम के मैनेजमेंट आॅफिसर जालिम सिंह ने भी घुमावदार म

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भाग 6

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उस तरफ कमला सब जान चुकी थी। कर्नल के शायर दोस्त सागर ने उसे सब बता दिया है। वहीं, कर्नल की गैर हाजिरी में कमला के साथ इश्क का टांका भी फिट कर लिया है। उसका अपना इश्क भी परवान पर था। ‘इस उम्र मे

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भाग 7

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आखिर कर्नल प्रियादर्शनी को घर ले ही आए। विवाह के अगले दिन, कर्नल प्रियादर्शनी के साथ अपने हनीमून की तैयारी कर रहा था। बेटे-बहू के साथ वह भी प्रियादर्शनी को लेकर अमेरिका जा रहा था। तैयारी हो च

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