कर्नल पार्क के एक कोने में लगे बेंच पर बैठा हुआ इस खूबसूरत शाम का मजा ले रहा था। तभी कर्नल के लिए हमेशा बेमजा-सी आवाज में ग़ज़ल को गुनगुनता हुआ उसका शायर दोस्त सागर उसके करीब आकर बैठ जाता है।
"इब्तिदा इश्क है, इंतहा इश्क है
जिंदगी का हसीं रास्ता इश्क है"
‘बंद करो.., बंद करो तुम ये अपनी बकवास सी शायरी, मेरे पल्ले कुछ नहीं पड़ती’- कर्नल उससे चिढ़ता हुआ कहता है। ‘कर्नल क्या तुमने कभी इश्क किया है’- वह पुछता है। ‘इश्क वो क्या होता है, ये सब पागलपन की बातें हैं। ’- कर्नल कहता है। ‘यही तो कर्नल यही..... यही फर्क रह गया है मेरे तुम्हारे बीच। तुम मुझे समझ नहीं पाते और तुम्हें मैं बकवास आदमी लगता हूँ’- सागर कहता है। ‘तुम मुझे यहाँ दो घड़ी सकूँ से बैठने दोगे या फिर मैं जाऊँ यहाँ से’- कर्नल थोड़ा गुस्से में कहता है। ‘’अरे तुम कहाँ जाओगे हमसे रूठकर, हम भी साथ चले पड़ेंगे आपके होकर’- वह अपने शायराना अंदाज में कहता है। आखिर कर्नल गुस्से में जैसे ही बेंच से उठकर दो कदम आगे बढ़ता है तभी दूसरी दिशा से आ रही एक हमउम्र औरत से टकरा जाता है। दोनों एक साथ नीचे गिर जाते हैं, वह कर्नल के ऊपर गिरी थी। यह सब देखकर सागर अपनी हँसी रोक नहीं पाया और अपने आप में बुदबुदाने लगा, ‘लो बुढ़ा इश्क बुढ़ी हुस्र से टकरा गया। अब क्या होगा हाले-दिल का अंजाम खुदा जाने।’ वह औरत देखने में इस उम्र में भी बेहद खूबसूरत थी। इस उम्र में कर्नल से पहली बार ऐसी औरत का सामना हुआ था, जिसके चेहरे का नूर अब भी चमक रहा था।
"देखकर रानाइयां हुस्न की आज फिर
लगता है इश्क में खो गया इश्क है।"
कर्नल की हालत को देखकर। उसका वह शायर दोस्त ग़ज़ल गुनगुनाने लगता है। ‘ये सब तुम्हारी ही शरारत थी, कमबख्त! मैं सब जानता हूँ, तुने ये सब जानबुझ कर किया।’ कर्नल उस पर बिगड़ते हुए कहता है। ‘अरे कर्नल क्यों परेशान होता है। हो जाता है यार ऐसा और यह सब मैंने थोड़े ही किया, तू खुद ही तो गिरा उसपर। तुझे तो खुश होना चाहिए।’ वह कहता है। ‘तू बता नहीं सकता था सामने से कौन आ रहा है।’ कर्नल कहता है।‘आ नहीं रहा था आ रही थी।’ वह कहता है, ‘हाँ..हाँ वही, अब बात मत बना।’ कर्नल कहता है। ‘अरे मुझे कब पता था कि सामने से वो आ रही थी।’ वह कहता है। ‘जाने क्या सोच रही होगी मेरे बारे में वो।’ कर्नल कहता है। ‘ठर्की और क्या, कहेगी।’ वह कहता है। ‘क्या कहा तुमने।’ कर्नल उसकी बात पर बिगड़ता है। ‘अरे कुछ नहीं गुस्सा क्यों करते हो।’ वह कहता है।
अगली सुबह जैसे ही कर्नल की आँखें खुली जिस्म अजब एहसास में महकने लगा। चेहरे पर नूर सा भर आया था। आँखें चमकने लगीं थी। अचानक कर्नल का बदला हुआ रंग-ढंग देखकर कमला को भी बहुत अजीब लग रहा था। रोज की तरह कर्नल फे्रश होकर अपने कमरे से बाहर निकले, लेकिन इस बार अपनी दांतों की प्लेट भी बाकी चीजों की तरह मुँह में टिपटॉप लगाए हुए थे। अपने सब काम खत्म कर सुबह-सुबह कर्नल घर से निकल गए थे। कमला के लिए यह सब अजीब था। ‘भाई साहब यूँ तो बिन बताए कहीं जाते नहीं। पार्क को निकलते हैं घूमने वो भी शाम को, आज कहाँ चले गए जाने? बड़े खुश लग रहे थे। चेहरे पर अकसर शिकन पड़ी रहती थी, आज जाने क्या बात थी? कमला मन ही मन में अपने-आप यह सब सवालात कर रही थी।’