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भाग. 4

27 अप्रैल 2022

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 सागर का कर्नल के घर आना, आना क्या अब तो वहीं बेशर्म की तरह पूरा दिन पड़े रहना, कई बार रात भी यहीं गुजारना। अब तो जैसे उसका भी यही घर हो। कमला को यह अखरता था। उस दिन  दोनों बड़ी देर से कमरे में बंद थे। जाने क्या खिचड़ी पका रहे थे। यही जानने के लिए कमला कभी दरवाजे की ओट में, कभी खिड़की के पास खड़ी होकर दरारों से छिप छिप कर देखने सुनने की कोशिश कर रही थी।  ‘यार कर्नल, ये जो तेरी कमला है न. . .।’ उसकी बात काटता हुआ बीच में कर्नल बोलता है। ‘क्या मेरी कमला, घर की नौकरानी है वो और मेरी मुंहबोली बहन। बहुत ख्याल रखती है मेरा।’ कर्नल चिढ़ता हुआ कहता है। ‘हां यार कुछ भी सही, लेकिन है बहुत हसीन वो भी। अपना मन कुछ डोल सा गया है उसको देखके।’ वह कहता है। ‘धीरे बोल यार तू धीरे बोल। कहीं उसने सुन लिया तो बम बनकर फटेगी तेरे ऊपर।’ कर्नल कहता है। कुछ देर की चुप्पी के बाद। इतनी देर से क्या तू यही सोच रहा था। क्या इसलिए तुझे मैंने यहां बुलाया था। कर्नल कहता है। ‘यार तू गुस्सा क्यों करता है, सोच रहा हूँ मैं। यकीन कर कोई हल निकाल लूंगा मैं तेरी इस मुश्किल का।’ ‘अच्छा इस मरदूद के दिमाग में यह पक रहा है, इसलिए यहाँ रह रहा है। मुझे लगता है कि ये भाई साहब को भी खराब कर रहा है। अभी बताती हूँ इसे मैं कि मैं क्या चीज हूं।’ बाहर कान लगाए कमला ने सब सुन लिया था। कर्नल के दोस्त के मुँह से अपने बारे में ऐसी बात सुनकर वह आग बबुला हो उठी थी। अपने इसी तेवर के साथ वह कमरे के अंदर चली आई और उन दोनों के सामने खड़ी हो गई।  कमला  को देखकर कर्नल पसीना-पसीना हो गया था। वहीं, उसका शायर दोस्त, जैसे उसके मुँह में बर्फ जम गई हो। वह अपना चेहरा इधर-इधर करने लगा।  कमला उसके नाटक को समझ रही थी। वहीं, कर्नल उसे शांत करने का उपाय सोच रहा था। ‘कमला तु. .म यहां, तुम जाओ और हमारे लिए चाय बनाओ। चाय का भी समय हो रहा है। तुम्हें पता है न कि मैं समय पर चाय पीता हूं खाना खा. . खाता हूं।’ कर्नल लड़खड़ाती सी जुबान से कहने लगा। वह कमला को शांत करने की कोशिश में था। ‘जाती हूँ जाती हूँ जा रही हूँ भाई साहब, पर अपने दोस्त को समझा देना, दोबारा कमला के बारे में कुछ भी बोलने से पहले सौ बार सोच ले ।’ कमला कमरे से बाहर निकलने हुए किचन की तरफ जाती हुई कहती है। ‘हां....हां मैं समझा दूँगा, तुम....तुम जाओ ।’ कहता है। ‘तौबा....यार तौबा, वाकय यार ये तो बम है।’ वह कहता है। ‘खाक तौबा यार तुमने तो मरवा दिया था। कुछ भी किसी के बारे में बक देते हो बिना सोचे समझे।’ कर्नल कहता है। कुछ देर की खामोशी के बाद। ‘अब कुछ मेरे बारे में भी सोचेगा कि अपना टांका फिट करेगा।’ कर्नल कहता है। ‘हां....हां भई तेरे बारे में ही सोच रहा हूं।’

‘उस औरत का नाम प्रियादर्शनी है। उसका पति एक बिजनेस मैन था। छोटा-मोटा कोई बिजनेस था उसका। बहुत समय पहले उसकी डैथ हो गई। इसका एक बेटा है। कलयुगी बेटा और उसकी पत्नी खराब औरत। बेटा भी बिजनेस ही करता है, लेकिन अपनी माँ को साथ नहीं रख सकता। बेचारी घर की रोज रोज की खिटपिट से तंग आकर वृद्धाश्रम में रहने चली आई। ’ वह कहता है। ‘ कितना खूबसूरत नाम है प्रियादर्शनी । अगर प्रियादर्शनी मेरी जिंदगी में आ जाए, तो जिंदगी खुशियां से भर जाएगी।’ कहते हुए कर्नल के चेहरे की बड़ी हुई सुर्खियां साफ झलक रहीं थीं। यह सब देखकर उसका वह शायर दोस्त भी खुश था। ‘तो फिर तैयार हो जा कर्नल राहे-इश्क के सफर के लिए।’ वह कहता है। ‘तुम्हारा  कहने का क्या मतलब? क्या प्लान है तुम्हारा? तुम साफ-साफ कहो।’ कर्नल  पुछता है। ‘प्लान क्या है, प्लान बिल्कुल साफ है कि तुम्हें भी उसी वृद्धाश्रम में भर्ती होना होगा, जिस वृद्धाश्रम में वो रहती है ।’ वह  कहता है। ‘यह कैसे हो पाएगा यार, मेरा बेटा बहू क्या सोचेंगे। जब उन्हें इस बात का पता चलेगा।’ कर्नल कहता है। ‘कुछ और मत सोच, अब जो होगा वो बाद में होगा। और मैं तुझे यकीन दिलाता हूं। तुम्हें जिस बात की चिंता है ऐसा कुछ नहीं होगा। अगर कुछ हुआ तो मैं संभाल लूंगा अपने तरीके से।
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रचनाएँ
एक बार फिर ज़िंदगी
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एक रिटायर्ड कर्नल है जिसकी पत्नी का देहांत हो चुका है। इसकी एक बेटा है जो अमेरिका में रहता है। वहीं उसने एक अमेरिकन लड़की से शादी कर ली है। कर्नल तनहा रहता है। कमला जो कर्नल के घर में नौकरानी है। कर्नल इसे अपनी बहन मानता है। यही कर्नल का ध्यान रखती है। कर्नल को प्रियादर्शनी से प्रेम हो जाता है। प्रियादर्शनी अपने परिवार से अलग होकर वृद्धाआश्रम में रहती है।प्रियादर्शनी और कर्नल के प्रेम को कर्नल का शायर दोस्त अंजाम तक ले जाता है लेकिन सागर का अपना प्रेम अधूरा रह जाता है क्योंकि कुदरत ने उसे ऐसा बनाया है। सागर कौन है कैसे कर्नल के प्र्म के वह कीमयाब करती है । जीनने के लिये पढे़ यह किताब।
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भाग. 1

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लो आज भी कर्नल ध्यान चंद सुबह-सुबह उठे तो अपनी दांत की प्लेट के बिना बाहर निकल आए । सूट बूट पहनकर, रोज की तरह सिर पर गोलदार हैट पहनकर । अपनी बड़ी घूमावदार मूँछों को बाट देकर जैसे आज भी वे कर्नल ह

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भाग 2

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शाम के पांच बज चुके थे। कर्नल रोज की तरह आज भी टहलने के लिए पार्क को निकल पड़ा था। कर्नल को हमेशा एकांत में रहना पसंद था फिर भी शाम पार्क में इसलिए चला आता था, क्योंकि इस वक्त पार्क के हरे

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भाग. 3

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आज शाम पार्क में कर्नल की आँखें बारहा किसी की राह देख रही थी। कर्नल अपने आप में खोया था, तभी कर्नल का शायर दोस्त अचानक आ पहुँचता है। वह कर्नल को खुशनुमा मुड़ में देखकर हैरान था।

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भाग. 4

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सागर का कर्नल के घर आना, आना क्या अब तो वहीं बेशर्म की तरह पूरा दिन पड़े रहना, कई बार रात भी यहीं गुजारना। अब तो जैसे उसका भी यही घर हो। कमला को यह अखरता था। उस दिन दोनों बड़ी देर से कमरे म

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भाग 5

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उन दोनों ने उस वृद्धाश्रम में अपनी दस्तक दे दी थी। वृद्धाश्रम का मैनेजमेंट आॅफिसर जालिम सिंह कर्नल के शायर दोस्त को पहले से जानता था। कर्नल की तरह आश्रम के मैनेजमेंट आॅफिसर जालिम सिंह ने भी घुमावदार म

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भाग 6

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उस तरफ कमला सब जान चुकी थी। कर्नल के शायर दोस्त सागर ने उसे सब बता दिया है। वहीं, कर्नल की गैर हाजिरी में कमला के साथ इश्क का टांका भी फिट कर लिया है। उसका अपना इश्क भी परवान पर था। ‘इस उम्र मे

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भाग 7

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आखिर कर्नल प्रियादर्शनी को घर ले ही आए। विवाह के अगले दिन, कर्नल प्रियादर्शनी के साथ अपने हनीमून की तैयारी कर रहा था। बेटे-बहू के साथ वह भी प्रियादर्शनी को लेकर अमेरिका जा रहा था। तैयारी हो च

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