‘इस उम्र में भाई जी को तुमने किस चक्कर में फंसा दिया है कि वो अपना घर बार छोड़कर जोगी बन बैठे है किसी के प्यार में।’ कमला कहती है। ‘इस उम्र में हम भी तो फंस गए हैं आपके प्यार में।’ वह कहता है।
कर्नल को उसकी चाहत प्रियादर्शनी के करीब ले आई थी। अब दोनों पार्क में बैठकर प्रेम की बातें भी करने लगे थे। वहीं वृद्धाश्रम का मैनेजर जालिम सिंह अपनी नाकाम मोहब्बत का अफसोस अकसर पार्क में इन दोनों को एक दूसरे के करीब बैठे हुए देखकर मनाता था, लेकिन जालिम सिंह भी कर्नल की इस चाहत से खुश था। प्रियादर्शनी की व्यथा को भी जालिम सिंह जानता था और वह चाहता था कि कर्नल इसे अपनी संगीनी बनाकर ले जाए, तो बेचारी को उसके दुखों से छुटकारा मिल जाए। उस दिन भी कर्नल और प्रियादर्शनी पार्क में बैठे हुए आपस में बातें कर रहे थे। जालिम सिंह भी पार्क में एक बेंच पर बैठकर उन दोनों को आपस में घुलमिलते हुए देख रहा था। तभी कर्नल के वे तीनों दोस्त वहाँ आ पहुँचते हैं। ‘किन ख्यालों में खोए हुए हैं भाई जालिम सिंह।’ उसे देखकर सरदार सिंह कहता है। तभी जालिम सिंह उन तीनों की तरफ कुछ घूरता हुआ देखता है। ‘बस यूँ ही बैठा हुआ हूँ और क्या काम है मुझे।’ जालिम सिंह कहता है। ‘भाई जालिम सिंह अब तुम्हारा ही काम है और तुम ही कर सकते हो।’ रफ़ीक कहता है। ‘मैं क्या कर सकता हूँ, आखिर क्या चाहते हो तुम तीनों मुझसे?’ जालिम सिंह कहता है। ‘जालिम भाई, ना मत करना। दो दिलों की नाजुक मोहब्बत का सवाल है।’ दयाशंकर कहता है। ‘किसके दिलों का, किसकी मोहब्बत का, सीधे-सीधे क्यों नहीं कहते क्या बात है।’ जालिम सिंह कहता है। ‘जालिम भाई इस तरह अंजान क्यों बनते हो। आपको मालूम है हम किसके बारे में ये बातें कर रहे हैं। ’ सरदार सिंह कहता है। ‘अच्छा भाई ठीक है। समझ गया तुम कर्नल की बात कर रहे हो।’ जालिम सिंह कहता है। ‘हाँ जालिम भाई आपने ठीक समझा, देखो तुम तो शादीशुदा ठहरे। कर्नल बेचारा अकेला आदमी पत्नी के बिना जी रहा है प्रियादर्शनी को चाहता है, इनकी फिर से शादी हो जाए तो अच्छा ही है। इस बेचारी को भी एक घर मिल जाएगा। ’ रफीक कहता है। ‘तो तुम लोग मुझसे क्या चाहते हो?’ जालिम सिंह कहता है। ‘भाई बस इतना कि एक साथ मिलकर इनकी शादी करवा देते हैं।’ दयाशंकर कहता है। ‘ठीक है भाई जैसा तुम चाहते हो, वैसा ही होगा। करो शुरू तैयारियां।’ जालिम सिंह कहता है। ‘मान गए उस्ताद! तुम तो कमाल के आदमी हो यारा, आ यारा गले लग जा। हम तुमसे बहुत खुश हुए।’ सरदार सिंह कहते हुए जालिम सिंह को गले लगा लेता है।