"पद"भैया चंद्रयान ले आओमैं हूँ चंद्रमा घटता बढ़ता, आकर के मिल जाओउड़नखटोला ज्ञान भारती, ला झंडा फहराओइंतजार है बहुत दिनों से, इसरो दरस दिखाओलेकर आना सीवन साथी, आ परचम लहराओराह तुम्हारी देख रहीं हूँ, मम आँगन इतराओस्वागत करती हूँ भारत का, ऋषिवत ज्ञान खिलाओबड़े जतन से राखूंगी मैं, अपनी चाल बढ़ाओकहती रहती द
"झिनकू भैया के प्रपंची आँसू" एक आँख से विनाशक बाढ़ व दूसरी आँख से फसलों को सुखाने वाला हृदय विदारक सूखा देखकर झिनकू भैया की आँखे पसीजने लगी जो चौतरफा दृश्य परिवर्तन के तांडव को देखकर छल-छल बहने की आदी तो हो ही गई है, अब तो उसे जीना और पीना भी है। बड़े ही भावुक और चिंतनशील आदमी हैं झिनकू भैया, जब धारा