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"पद"

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"पद"भैया चंद्रयान ले आओमैं हूँ चंद्रमा घटता बढ़ता, आकर के मिल जाओउड़नखटोला ज्ञान भारती, ला झंडा फहराओइंतजार है बहुत दिनों से, इसरो दरस दिखाओलेकर आना सीवन साथी, आ परचम लहराओराह तुम्हारी देख रहीं हूँ, मम आँगन इतराओस्वागत करती हूँ भारत का, ऋषिवत ज्ञान खिलाओबड़े जतन से राखूंगी मैं, अपनी चाल बढ़ाओकहती रहती द

"पद"कोयल कुहके पिय आजाओ,साजन तुम बिन कारी रैना, डाल-पात बन छाओ।।बोल विरह सुर गाती मैना, नाहक मत तरसाओ ।भूल हुई क्यों कहते नाहीं, आकर के समझाओ।।जतन करूँ कस कोरी गगरी, जल पावन भर लाओ।सखी सहेली मारें ताना, राग इतर मत गाओ।।बोली ननद जिठानी गोली, आ देवर धमकाओ।बनो सुरक्षा कव

"पद"मोहन मुरली फिर नबजानाराह चलत जल गगरीछलके, पनघट चुनर भिगाना।लाज शरम की रहनहमारी, मैँ छोरी बरसाना।।गोकुल ग्वाला बालाछलिया, हरकत मन बचकाना।घूरि- घूरि नैनामलकावें, बात करत मुसुकाना।।अब नहिं फिर मधुबनको आऊँ, तुम सौ कौन बहाना।रास रचाना बिनुराधा के, और जिया पछिताना।।महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

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