"पद"
मैं हूँ चंद्रमा घटता बढ़ता, आकर के मिल जाओ
उड़नखटोला ज्ञान भारती, ला झंडा फहराओ
इंतजार है बहुत दिनों से, इसरो दरस दिखाओ
लेकर आना सीवन साथी, आ परचम लहराओ
राह तुम्हारी देख रहीं हूँ, मम आँगन इतराओ
स्वागत करती हूँ भारत का, ऋषिवत ज्ञान खिलाओ
बड़े जतन से राखूंगी मैं, अपनी चाल बढ़ाओ
कहती रहती दुनिया कुछ भी, तिन संदेश भिजाओ
कहना वो हैं चंदा मामा, दूध भात खा जाओ
मेरे माँ के भाई चंदा, शुभाशीष सुख पाओ
गौतम के घर बहुत अमीरी, भारत की जय गाओ।।
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी