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भारत में उपेक्षित और विदेशों में फलती फूलती संस्कृत

23 मई 2015

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भले ही संस्कृत भारत की प्राचीनतम भाषा हो या यूँ कहें भारत की जननी हो लेकिन आज यही संस्कृत भारत मे दम तोड़ती नज़र आती है आजादी से पहले भी शायद इतनी बुरी दशा संस्कृत की नही थी जितनी आजादी के बाद हुई। ऐसा नही कि संस्कृत पढ़ने वालों की कमी है और न ही जानकारों की अगर कमी है तो सरकारी प्रबंधन की कमी है सरकार को संस्कृत महत्वहीन नज़र आती है शायद इसीलिए इसके प्रचार प्रसार पर उसका ध्यान केंद्रित नही है लेकिन दूसरी ओर विदेशों मे संस्कृत की एक अलग ही छटा देखने को मिलती है वे संस्कृत के महत्व को जानकर अपनी नई पीढ़ी को इसका ज्ञान देने में को कमी बाकी नही छोड़ रही है भारतीय ग्रंथों पर शोध किये जा रहे हैं गीता के श्लोकों को भी पढ़ा जा रहा है यहां तक की अमेरिका के whitehouse में ऋग्वेद के मंत्रपाठ के बाद ही सत्र प्रारम्भ किया जाता है ऐसा अगर भारत में भी किया जाता तो सेक्युलरवादी लोगों की भावना को ठेस पहुंच जाती जिन्हें ऊर्दू और अंग्रेजी से कोई शिकायत नही लेकिन संस्कृत एक वर्ग विशेष की भाषा उन्हें नज़र आती है जिससे दूसरों की भावनाओं को आघात लगता है लेकिन इन मूर्खो को ये नही पता की संस्कृत केवल भाषा हीभले ही संस्कृत भारत की प्राचीनतम भाषा हो या यूँ कहें भारत की जननी हो लेकिन आज यही संस्कृत भारत मे दम तोड़ती नज़र आती है आजादी से पहले भी शायद इतनी बुरी दशा संस्कृत की नही थी जितनी आजादी के बाद हुई। ऐसा नही कि संस्कृत पढ़ने वालों की कमी है और न ही जानकारों की अगर कमी है तो सरकारी प्रबंधन की कमी है सरकार को संस्कृत महत्वहीन नज़र आती है शायद इसीलिए इसके प्रचार प्रसार पर उसका ध्यान केंद्रित नही है लेकिन दूसरी ओर विदेशों मे संस्कृत की एक अलग ही छटा देखने को मिलती है वे संस्कृत के महत्व को जानकर अपनी नई पीढ़ी को इसका ज्ञान देने में को कमी बाकी नही छोड़ रही है भारतीय ग्रंथों पर शोध किये जा रहे हैं गीता के श्लोकों को भी पढ़ा जा रहा है यहां तक की अमेरिका के whitehouse में ऋग्वेद के मंत्रपाठ के बाद ही सत्र प्रारम्भ किया जाता है ऐसा अगर भारत में भी किया जाता तो सेक्युलरवादी लोगों की भावना को ठेस पहुंच जाती जिन्हें ऊर्दू और अंग्रेजी से कोई शिकायत नही लेकिन संस्कृत एक वर्ग विशेष की भाषा उन्हें नज़र आती है जिससे दूसरों की भावनाओं को आघात लगता है लेकिन इन मूर्खो को ये नही पता की संस्कृत केवल भाषा ही नही संस्कारों की भी जननी है ।नही संस्कारों की भी जननी है ।
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29 मई 2015

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भारत में उपेक्षित और विदेशों में फलती फूलती संस्कृत

23 मई 2015
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भले ही संस्कृत भारत की प्राचीनतम भाषा हो या यूँ कहें भारत की जननी हो लेकिन आज यही संस्कृत भारत मे दम तोड़ती नज़र आती है आजादी से पहले भी शायद इतनी बुरी दशा संस्कृत की नही थी जितनी आजादी के बाद हुई। ऐसा नही कि संस्कृत पढ़ने वालों की कमी है और न ही जानकारों की अगर कमी है तो सरकारी प्रबंधन की कमी है सरकार

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संस्कृतस्य आवश्यकता

22 मई 2015
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“भाषा” यह मानव सभ्यता के आविष्कारों मे सबसे अप्रतिम आविष्कार है । भाषा वह साधन है जो सोचने एवं भाव व्यक्तिकरण में अत्यावश्यक है; उसीके ज़रीये विश्वभर में महान कार्यों का संपादन होता रहा है । समस्त विश्व में जिस “विकास” की बातें हम सुनते रहते हैं, वह कभी संभव न होता यदि भाषा न होती ! और फिर भी इस मह

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संस्कृत की आवश्यकता

13 मई 2015
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संस्कृत प्रणालि मुद्रण ई-मेल परिचय “भाषा” यह मानव सभ्यता के आविष्कारों मे सबसे अप्रतिम आविष्कार है । भाषा वह साधन है जो सोचने एवं भाव व्यक्तिकरण में अत्यावश्यक है; उसीके ज़रीये विश्वभर में महान कार्यों का संपादन होता रहा है । समस्त विश्व में जिस “विकास” की बातें हम सुनते रहते हैं, वह कभी संभव न होता यदि भाषा न होती ! और फिर भी इस महान आविष्कार को हम कितना सहज समज लेते हैं ! भाषाओं के इतिहास में भारत का योगदान महत्त्वपूर्ण है, क्यों कि उसने ऐसी भाषा का आविष्कार किया जो हर तरह से शास्त्रीय हो ! वह भाषा याने ‘संस्कृत’, जिसके बल पर भारतमाता और उसकी उत्तुंग संस्कृति मानार्ह बनी । वे कहते हैं.... श्री जवाहरलाल नेहरु ने कहा है, “यदि मुझे पूछा जाय कि भारत का सर्वश्रेष्ठ खज़ाना कौन-सा और उसकी सबसे बडी विरासत कौन-सी, तो बिना ज़िझक कहुंगा ‘संस्कृत भाषा, साहित्य, उसके भीतर रहा हुआ सब कुछ’ । यह सर्वोत्तम विरासत है और जब तक ये जियेंगी, जन-मानस को प्रभावित करेगी, तब तक भारत की न्यूनतम गरिमा का स्रोत बना रहेगा ।“ सर विलियम जॉन्स, जिन्हों ने सन 1786 में पाश्चात्य जगत में यह ऐलान कर दिया कि, “संस्कृत वह भाषा है जो ग्रीक से अधिक पूर्ण है, लेटिन से अधिक समृद्ध है, और दोनों से हि अधिक सूक्ष्म-शुद्ध है । सर्व भाषाओं की जननी संस्कृत, सबसे प्राचीन, सबसे पूर्ण है ।“ वाङ्ग्मय कुछ सहस्र वर्षों के मानव अस्तित्व का सर्वेक्षण करें तो संस्कृत भाषा शिरोमणि के रुप में उभर आती है । वैदिक काल से उद्गम होने वाली संस्कृत, उसके उत्तरीय कालों से गुज़रती हुई, कई सदीयों के पश्चात् आज तक नव पल्लवित होती रही है । जब अन्य भाषाएँ केवल जन्म ले रही थी, संस्कृत सृजनशील व मनीषी रचनाओं का माध्यम बन चूकी थी । संस्कृत वाङ्ग्मय का केवल व्याप भी विस्मयकारक है ! अपौरुषेय वेदों ने, अन्य वेदकालीन रचनाओं एवं उत्तरकालीन संस्कृत रचनाओं के लिए मजबूत नींव डाली । वैदिक साहित्य संस्कृत रचनाएँ भाषा-भेद के कारण दो अलग काल में रची गयी दिखाई पडती है – वैदिक, अर्थात् जो वैदिक संस्कृत में रची गयी, और पारंपारिक, जो वेदोत्तर काल में रची गयी । इन में से पारंपारिक या प्रचलित संस्कृत, करीब इ.पू. 400 तक राजकीय भाषा बन चूकी थी । वैदिक वाङ्ग्मय पुरातन होने के कारण उसके काल के विषय में काफी अनिश्चिति पायी जाती है; यहाँ पर हमने कुछ सामान्

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