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बरसता सावन

9 जुलाई 2017

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ये बरसता हुआ सावन ये काली घटाए

कुछ कह रही हों वक्त की फ़िजाए

मौसम का थिरकना बारिश की बूंदों पर

जो बहा देती हैं रेत की शिलायें

छेड़ दिया है राग किसी ने धीरे से गुनगुनाकर

मन में ठेसें उभर आई है धीरे से मुस्कुराकर

आ गई अब धुन भी मेरे होंठों पर

पर अफ़सोस निकलती नहीं हैं सदाएं

एक भीनी खुसबू क्यूँ छाई है

क्या लौट कर के फिर बहार आई है

देना न जख्म फिर तू दोबारा मुझको

इनको भरने की मुझको आती नहीं अदाएं

हिमांशु चक्रवर्ती की अन्य किताबें

मनोज कुमार खँसली-" अन्वेष"

मनोज कुमार खँसली-" अन्वेष"

देना न ज़ख़्म फिर तू दोबारा मुझको,........इनको भरने की मुझको आती नहीं अदाएं,....बहुत खूब,....हिमांशु जी |

12 जुलाई 2017

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हसरतें

26 फरवरी 2017
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तेरे तसव्वुर को क्या हम समझते , दिल तो तुझे दिया था फिर क्या करते,तन्हाई यूँ गुजरती है रवाँ रवाँ,की फिर हम किसी और को क्या समझाते,रास न आयी तुझको मेरी मासूमियतहम दुसरे को क्या-क्यों समझाते,.यूँ बेकरारी मेरे अन्दर थी न समझे,जब तुमने ही मुझे न समझा तो औरो को क्या समझा

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तुम्हारी परछाई

28 फरवरी 2017
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तुम्हारी परछाई भी क्या अजीब हैतुम्हारी आंखे भी क्या अजीब हैं कुछ हया है कुछ शर्म है कुछ रूठना है कुछ मुस्कुराना है तुम्हारी परछाई भी क्या अजीब है ये जो बहती है हवा धीरे धीरे कुछ लिपट के कुछ बहक के करना चाहती है तुम से कुछ दोस्ताना तुम्हारी परछाई भी क्य

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उम्मीदें

1 मार्च 2017
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जब देखा था उस चाँद को मुस्कुराते हुएकुछ हैरत में था मैं उसे आजमाते हुए जागी थी उम्मीदें प्यार की मेरे मन में हसरते बहने लगी थी नदी जैसे बहते हुए गहराई में सिमट रही थी लकीरे वो जब खीचने लगी मुझे वो लहराते हुए पहले बना ली थी अश्को की मालाएं हुई न थी शख्शियत उसे पचाने हुए आशा थी कि जागेगी मेरी उम्मीद

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ख्वाब

3 मार्च 2017
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ए चाँद देखा तुझे तो कुछ याद आया मेरा जहन में फिर उनका ख्वाब आया,हुई तस्वीर फिर से वो उजागरजो भूला था कारवां वह फिर याद आया,धड़कने भी बढ़ गयीं मेरे दिल कीलेकिन वह वक्त मूझे फिर याद आया,रुकने लगे कदम मेरे तुझको सोच करफिर उनको बढ़ाने का ख्याल आया,कभी तेज चलता हूं मैं रुक-रुककरवह मंज़िल ना आ जाये जो छो

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वक्त

22 मार्च 2017
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ए शाम ढल जा फिर न सता मुझे याद आ जाती हैं फिर वो वक्त की नजाकतें खेल जिसमे खेले आंख मिचौली के ए शाम ढल जा फिर न सता मुझे सुबह हो शाम हो किसी का इंतजार कर वक्त ढलता नहीं था रह देख-देख कर ए शाम ढल जा फिर न सता मुझे वक्त की बंदिशें क्या खूब थी उस वक्त न मुझे ऐसी तमीज थ

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तुम

23 जून 2017
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आँखों में गम है तेरा,होंठों पर नाम है तेरा|गया जब नदी के किनारेनजर आया चेहरा तेरा |नदिया का जल कहने लगा क्या ढूढ़ते हो कुछ न तेरा |लौट पड़ा मैं जब वापस जिस ओर स्वर सुना तेरा |खोज रहा फिर उस ओर मैं मिल रहा न कोई छोर तेरा |जिस से मैं बात चार

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बरसता सावन

9 जुलाई 2017
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ये बरसता हुआ सावन ये काली घटाए कुछ कह रही हों वक्त की फ़िजाए मौसम का थिरकना बारिश की बूंदों पर जो बहा देती हैं रेत की शिलायें छेड़ दिया है राग किसी ने धीरे से गुनगुनाकर मन में ठेसें उभर आई है धीरे से मुस्कुराकर आ गई अब धुन भी मेरे होंठों पर पर अफ़सोस निकलती नहीं हैं सदाएं एक भीनी खुसबू

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सावन

12 जुलाई 2017
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मुस्कान

3 दिसम्बर 2017
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वो सर्द हवा के मौसम में तेरा मुस्काना यूँ होता देख तेरी मुस्कान को हमको यूँ अहसा होता हो इंतजार माली कोनव फूल को खिलने का हो खग को इंतजार नयी सुबह के होने का हो इंतजार किसान को फसल पर मेघ बरसने का वो सर्द हवा के मौसम मे

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