संध्या
जवाँ हूँ , जवाँ रहने को हूँ , मचलता, शाम होते ही,मैं अगली सुबह को करवटें बदलता| मालूम है रही ज़िन्दगी ,तो नई सुबह खींच देगी, मेरे चेहरे पे एक और लकीर, गफलत में हूँ, पुरानी मिटाने को,मैं रातों को सँवरता| देर-सवेर ही सही | एक रोज़ तो उसे आना है| फिर,...कहीं ...???भर,...