तुम्हारी परछाई भी क्या अजीब है
तुम्हारी आंखे भी क्या अजीब हैं
कुछ हया है कुछ शर्म है
कुछ रूठना है कुछ मुस्कुराना है
तुम्हारी परछाई भी क्या अजीब है
ये जो बहती है हवा धीरे धीरे
कुछ लिपट के कुछ बहक के
करना चाहती है तुम से कुछ दोस्ताना
तुम्हारी परछाई भी क्या अजीब है
नैन नक्श बिखरे हैं यूँ सवरकर
कुछ दिखा रहे हैं ये खुदमिजाजी
ये बोलते हैं बस तुम्हारी भाषा
तुम्हारी परछाई भी क्या अजीब है
तुम्हारी परछाई भी क्या अजीब है |