ए शाम ढल जा फिर न सता मुझे
याद आ जाती हैं फिर वो वक्त की नजाकतें
खेल जिसमे खेले आंख मिचौली के
ए शाम ढल जा फिर न सता मुझे
सुबह हो शाम हो किसी का इंतजार कर
वक्त ढलता नहीं था रह देख-देख कर
ए शाम ढल जा फिर न सता मुझे
वक्त की बंदिशें क्या खूब थी
उस वक्त न मुझे ऐसी तमीज थी
कर जाते हम तुमसे जो इकरार
न था मंजूर वक्त को वरना हो जाता ऐतबार
ए शाम ढल जा फिर न सता मुझे
बढ़ जाती है बेकरारी मेरी अब
तुम खो गए न जाने कहाँ कब
ए शाम ढल जा फिर न सता मुझे