जब देखा था उस चाँद को मुस्कुराते हुए
कुछ हैरत में था मैं उसे आजमाते हुए
जागी थी उम्मीदें प्यार की मेरे मन में
हसरते बहने लगी थी नदी जैसे बहते हुए
गहराई में सिमट रही थी लकीरे वो
जब खीचने लगी मुझे वो लहराते हुए
पहले बना ली थी अश्को की मालाएं
हुई न थी शख्शियत उसे पचाने हुए
आशा थी कि जागेगी मेरी उम्मीदे
जहन में बन रही थी तस्वीरें उमड़ते हुए