तेरे तसव्वुर को क्या हम समझते ,
दिल तो तुझे दिया था फिर क्या करते,
तन्हाई यूँ गुजरती है रवाँ रवाँ,
की फिर हम किसी और को क्या समझाते,
रास न आयी तुझको मेरी मासूमियत
हम दुसरे को क्या-क्यों समझाते,.
यूँ बेकरारी मेरे अन्दर थी न समझे,
जब तुमने ही मुझे न समझा
तो औरो को क्या समझाते,
जाने पर दूर तेरे बाद रही थी बेकरारी,
हम बेकरार थे तुम न थे ये जानते,
जानते भी थे फिर भी थे इतराते,
इतराना तो तुम्हारी फितरत में था,
हम किसी और को क्या बताते,
जब देखते तेरी नजरो में दर कदर यूँ,
फिर भी एतबार न था, थे मुस्कुराते||||