बुलबुल के फड़फड़ाने से गर चील मर जाए,
तब तो गलती चील की है बुलबुल की नहीं.
चील को तो यूँ भी आनी थी मौत एक रोज़,
इलज़ाम बुलबुल पे लगे ये बात अच्छी तो नहीं.
बाज़ों का शोर है चील के मरने पर किसलिए,
बुलबुल के पर कतरने का मौका भी है दस्तूर भी.
उड़ता है एक बाज़ों का गिरोह इस फ़िराक में,
लगा इलज़ाम बुलबुल पर सजा ए मौत दें.
गोश्त बुलबुल का उन्हें मिलेगा फिर कहाँ,
दे सज़ा बुलबुल को क्यों ना हम दावत करे.
गुलिस्तां में ना बुलबुलों का आशियाना बने,
बाज़ों का वक्त है उनका ही आशियाना बने. (आलिम)