इस कहानी कि शुरुआत लखनऊ में रहने वाले एक बिजनेस मैन से होती है, जिसका नाम "शाहिद रिज़वी "है। शाहिद एक बिजनेस मैन है उसने अपने पापा का बिजनेस महेज़ 20 साल की उम्र से ही संभालना शुरू किया, जब वह 19 साल का था तब, एक एक्सीडेंट में उसके पापा की मौत हो गई।
उसके पापा की एक फैक्ट्री थी, जो उस समय कुछ ठीक नहीं चल रही थी और उनके जाने के बाद, उसकी हालत और खराब हो गई थी। जिसके कारण शाहिद के घर में खाने पीने और घर चलाने में मुश्किलें आने लगी।
इन हालातो को देखते हुए शाहिद ने अपनी पढ़ाई छोड़कर अपने पापा के बिजनेस को संभालने का फैसला किया। बाद में उसने अपनी पढ़ाई भी पुुुरी की।
अपनी कड़ी मेहनत और लगन से आज उसने अपने बिजनेस को एक अलग ही मुकाम तक पहुंचाया है। आज शाहिद 27 साल का है, वो दिखने में बहोत स्मार्ट और हैंडसम है। उसकी हाईट लगभग 5 फुट 8 इंच की होगी, उसका रंग गोरा और दिखने में बहोत स्मार्ट है। पर इन सब खुबियों के साथ उसमें एक खामि (कमी)भी है। उसे जल्दी ही गुस्सा आ जाता है और इस लिए उसके आस पास के लोग उससे थोड़ा डरते भी हैं। पर वो अपनी फैमली से बहोत प्यार करता है।
"अब फैमली की बात चली ही है तो ये जरूरी है, जानना कि शाहिद के घर में कौन कौन हैं।"
"शादियां बेग़म"(ये शाहिद की अम्मी है और शायद यही एक है जिनकी बात शाहिद कभी टालता नहीं है) शादियां बेग़म एक साधारण दिखने वाली एक गृहिणी है ,जिन्होंने अपने बच्चों की देखभाल में ही अपना अब तक का जीवन बिताया है।
इस के अलावा शाहिद की एक छोटी बहेन भी है। जिससे वो बहोत प्यार करता है। उसे प्यार से सब लोग "नाज़" बुलाते हैं। वैसे उसका नाम शहनाज़ है। शहनाज एक सिम्पल और प्यारी सी लड़की है, जिसकी उम्र लगभग 21 साल की होगी, वो कालेज में पढ़ती है। शहनाज़ अपने भाई से प्यार और बहोत इज्जत करती है इसलिए शायद उसकी हर बात को मानती हैं।
वहीं बात करते हैं इस परिवार के एक और सदस्य की जिसका नाम "सोहेल" है जो फिलहाल यहां नहीं है। इसलिए उसके बारे में हम आगे कि कहानी में बात करेंगे।
वैसे तो शाहिद के घर में सब लोग उसकी बात मानते हैं सभी उससे प्यार करतें हैं। लेकिन कोई है जो उसकी बात नहीं मानती और अपनी मन मानी करती है। वो कौन है ये जानने के लिए आपको आगे कि कहानी पढ़ने होगी।
आज रविवार का दिन है। यु तो ऑफिस की छुट्टि है पर शाहिद, आज भी अपने घर से ऑफिस का काम कर रहा है। घर पर कोई नहीं है सिवाय एक नौकरानी के, वो भी ऊपर के कमरे की सफाई कर रही है।
शाहिद नीचे हाल में सोफे पर पैर फैला कर बैठा, लैपटॉप पर काम कर रहा है। सामने टेबल पर कई फाईलें रखीं हैं। तभी दरवाजे की घंटी बजती हैz.z.z.z....
शाहिद घंटी की आवाज़ सुन काम करते हुए अपनी नौकरानी को आवाज़ लगाता है, "मीना देखो दरवाजे पर कौन है?"
लेकिन मीना ऊपर अपने काम में इतनी मशगुल होती है कि ना उसे घंटी की आवाज़ सुनाई देती हैं, और ना शाहिद की। कुछ देर बाद फिर से घंटी की आवाज़ आती है,z.z.z.z....
शाहिद घंटी की आवाज से परेशान हो कर। वो अपना लैपटॉप साइड में रख कर खुद ही जा कर दरवाजा खोलता है। दरवाजा खोलते ही सामने एक लड़की बड़े से बैंग के साथ खड़ी होती है। उसे देखकर शाहिद को लगता है,""कि वो कोई सेल्स गर्ल है।"
तो बिना कुछ पूछे ही वो उससे कहता है, "sorry पर हमें कुछ नहीं चाहिए।"
ये कहकर वो दरवाजा बंद कर देता है और वहां से कुछ दुर गया ही होता है तभी फिर से घंटी बजती है,z.z.z.z.....
वो थोड़ा चीड़ कर, फिर दरवाजा खोलते हुए कहा"" मैंने कहा ना हमें कुछ नहीं लेना है।"
तभी शाहिद की बात काटते हुए, सामने वाली लड़की कहती है, " Excuse me !आपको क्या लगता है मैं कोई सेल्स गर्ल हुं क्या? जो अपना सामान बेचने आई है।"
ये सुन कर शाहिद उसे अपनी नज़रों से घुरता हुआ पुछता है, "तो कौन है आप?"
वो भी उसे घुरते हुए कहती हैं, " ये शादमा बेग़म का घर है ना?"
शाहिद ने कहा, "हां ! पर आप कौन?"
लड़की अपना बैग लेकर अन्दर आते हुं कहती है, " जी मैं उनकी रिश्तेदार हुं।"
उस लड़की को अन्दर आते हुए देख शाहिद पुछता है, "पर आप है कौन?"
वो कहती है, "मेरा नाम "अलवीरा शेख़" है। वो मेरी खाला है।"
"ये हमारी कहानी कि नाइका है अलवीरा। जिसकी उम्र लगभग 24 की होगी। जो दिखने में बहोत सुन्दर है। उसकी आंखें बड़ी बड़ी एक दम हिरनी की तरह उसकी हाईट लगभग 5 फुट 5 इंच होगी, गोरा रंग, काले लम्बे बाल, दिलकश मुस्कान जो किसी का भी दिल चुरा ले।"
शाहिद उसे ऊपर से नीचे तक देखते हुए, "पर मैंने तो तुम्हें पहले कभी नहीं देखा।"
ये सुन कर अलवीरा भी आस पास देखते हुए, "वो शायद इस लिए क्योंकि मैं यहां पहली बार आई हुं।"
तभी ऊपर से सफाई खत्म कर नौकरानी मीना नीचे आती है और अलवीरा को देखकर शाहिद से पुछती है, "ये कौन है?"
शाहिद सोफे पर बैठते हुए, "ये अम्मी से मिलने आई है।"
ऐसा कहें कर वो अलवीरा की तरह देखते हुए कहता है, "अरे आप खड़ी क्या है? please बैठिए। वो अम्मी अभी घर पर नहीं है शायद शैपिग के लिए गईं हैं। थोड़ी देर में आ जाएगी।"
अलवीरा बैठती हैं। शाहिद मीना को इशारा करते हुए कहता, "आप यहां क्यों खड़ी है? आप जाकर चाय, नाश्ते का बन्दोबस्त किजिए।"
ये सुन कर वो किचन की तरफ चली जाती है और शाहिद वाहा से थोड़ी दूर जाकर अपनी अम्मी को फोन लगा हि रहा होता है, तभी दरवाजे की घंटी फिर बजती है। ये सुन शाहिद फिर दरवाजा खोलता है सामने दरवाजे पर अम्मी और शहनाज़ को देख शाहिद कहता है,
"अरे अम्मी, अभी मैं आपको ही फोन लगा रहा था।"
शहनाज़ दरवाजे से अन्दर आते हुए खुश होकर कहती हैं, "पता है भाई, आज तो अम्मी ने बहोत सारी शौपिंग कराई है मुझे।"
तभी शहनाज़ और अम्मी की नजर अलवीरा पर पड़ती है। अलवीरा भी उन्हें देखती हुई बोलती है, "सलाम वालेकुम!"
अम्मी उसे देखते हुऐ, "वालेकुम सलाम बेटा, माफ़ करना मैंने तुम्हें पहचाना नहीं।"
अलवीरा मुस्कुराते हुए उन्हें देख कर कहती है, "खाला जान मैं अलवीरा, तोफिक शेख और शाहिदा बेग़म की बेटी।"
ये सुन कर वो बहोत खुश हो जाती है और उसे गले लगाते हुए, "अरे बेटा माफ़ करना मैंने तुम्हें पहचाना नहीं, बहोत छोटी थी तुम ,जब मैंने तुम्हें देखा था। अब तो माशाल्लाह इतनी बड़ी हो गई हो।"
ये सुन कर शहनाज़ पास खड़ी हुए अम्मी से पुछती है, "अम्मी ये कौन है?"
अम्मी अलवीरा की परिचय कराते हुए, "अरे बेटा ये, तुम्हारी खाला है न हैदराबाद वाली उनकी बेटी है। बहोत साल पहले यही रहा करते थे ये लोग। तब तो तुम लोग बहोत छोटे थे। तुम लोगों को तो याद भी नहीं होगा। ये सुन वे थोड़ा मुस्कुराते हैं।"
ये सुनते हुए शाहिद अपना लैपटॉप और फाईलें उठाते हुए कहता है, "अच्छा अम्मी, आप इनका ख्याल रखिए। मुझे कुछ काम है तो मैं कमरे में जा रहा हुं।"
अम्मी उसे मिलवाते हुए, "अरे बेटा यहां आओ। अलवीरा से तो मिलों।"
शाहिद अम्मी के पास और अलवीरा के सामने खड़ा हो कर, "अदाब !"
अलवीरा मुस्कुराते हुए, "हाए....!!"
अम्मी उन्हें बताती हुई कहती हैं, "बेटा तुम्हे तो याद ही होगा तैफिक साहब, तुम्हारे अब्बू के जिगरी दोस्त थे और इनकी अम्मी हमारी पक्की सहेली।(तीनों अम्मी की बातों को मुस्कुराते हुए सुन रहे हैं) हमारे घर के पास हीं इनका घर हुआं करता था। याद है बेटा?"
शाहिद एक मुस्कान के साथ, "उन्हें कैसे भुल सकता हुं अम्मी? शहिदा खाला तो मुझे अपने बेटे की तरह मानती थी।अलवीरा की तरह देखते हुए"" उमिद है वो अच्छी होगी।"
अलवीरा मुस्कुराते हुए, "अरे अम्मी तो बहोत अच्छी है। दिन भर बस मेरे ऊपर शादी की तलवार लेकर बैठी रहती है।"
ये सुन कर शहनाज़ को जोर से हंसी आ जाती है और उसे हंसता देख अलवीरा भी हंस देती है और उन्हें देख कर शाहिद अपनी मुस्कुराहट रोकते हुए कहता है," अच्छा अम्मी मुझे थोड़ा काम है तो मैं अपने कमरे में जा रहा हुं।"
अलवीरा उसे जाते हुए देखती है तभी शहनाज़ मुस्कुराते हुए कहती हैं, "Hi अलवीरा मैं शहेनाज़।" अलवीरा भी मुस्कुराते हुए, "Hi nice to meet you ! शहनाज़।"
अम्मी उससे बैठते हुए पुछती है, "अच्छा बेटा। अम्मी की तबीयत तो ठीक है ना अभी?"
अलवीरा भी बैठते हुए कहती हैं, "जी खाला वो अच्छी है, आप को सलाम कहा है।"
अम्मी मुस्कुराते हुए, "आदाब बेटा ! वैसे तुम्हारी अम्मी का फोन कुछ दिन पहले आया था। बता रही थी, कि तुम पढ़ाई करने आ रहीं हों लखनऊ। पर बीच में फोन कट गया और आगे बात ही नहीं हो पाई उनसे।"
अलवीरा आस पास देखते हुए, "हां वो उनके फोन का कुछ ईसु है इसलिए शायद।"
तभी वहां नौकरानी मीना चाय लेकर आती है और टेबल पर रखती है। अम्मी अलवीरा को देखते हुए कहती है, "लो चाय पियो बेटा। इतने लंबे सफर से थक गई होगी। शहनाज़ बेटा इसके बाद तुम इसे अपने कमरे में ले जाना थोड़ा आराम कर लेगी।"
शहनाज़ मुस्कुराते हुए, "जी अम्मी।"
थोड़ी देर बाद अलवीरा को सीढीयो से होते हुए शहनाज़ अपने कमरे में ले जा रहीं थी। कुछ दुर चलते ही उसका फोन बजता है और फोन को देखते हुए शहनाज़ कहती है,
"sorry अलवीरा जी मेरी friend का फोन है। थोड़ा जरुरी है मैं दो मिनट बात करके आती हूं, तब तक आप आगे चलिए ये थोड़ी दूर साइड में ही मेरा कमरा है आप चले मैं अभी आती हूं। "
Hallo dear reader...🙏🙏
ये मेरी पहली कहानी है तो अगर अच्छी लगे तो कमेंट करके जरूर बताएं..... क्योंकि ये मेरे लिए जरूरी है
Thanks....😀😀