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चांदनी रात

29 मई 2015

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नैन की नैन से हो रही बात है । प्रिय न जाओ अभी चांदनी रात है ॥ बावरी हूँ विरह में तुम्हारे पिया । आपके प्यार की मैं दुखारी पिया । आस हो तुम हमारी हो विश्वास तुम । मेरे जीवन की कन्ते हर इक सांस तुम । तेरे हाथों अब तो मेरा हाथ है । प्रिय न जाओ अभी चांदनी रात है ॥ प्राणप्रिय मैं तुम्हारी हूँ अर्धांगिनी । आधे तन की तुम्हारे हूँ मैं स्वामिनी । इसलिए रोकती हूँ न जाओ प्रिये । वल्लभे तुम मुझे क्यों हो व्याकुल किये । हुआ अब विरह तप्त ये गात है । प्रिय न जाओ अभी चांदनी रात है ॥ देखकर ही तुम्हे सांस चलती मेरी । तुम न जाओ अभी ये है विनती मेरी । रोते रहते नयन आपकी चाह में । मैंने बरसों बिताए सजन राह में । आप के बिन न भाता मुझे प्रात है । प्रिय न जाओ अभी चांदनी रात है ॥ होते हम तुम तो होता ये मौसम नहीं । होता मौसम तो होते हैं हम तुम नहीं । आज हम तुम भी हैं और मौसम भी है मस्त बारिश की बूदों की छम-छम भी है । तेरी खातिर ही मेरा ये श्रृंगार है । प्रिय न जाओ अभी चांदनी रात है ॥ (आदित्य त्रिपाठी)

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राघवेन्द्र कुमार

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बेहतरीन गीत रचना...

31 मई 2015

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मित्रता

3 जून 2015
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फूल बनकर खिलो एक कमल की तरह कर दो शीतल सभी को विधु की तरह । आरजू है हमारी मेरे भाइयों जब मिलो तो मिलो दोस्तों की तरह । था अभी पंक में एक पंकज खिला पंक बोला कि इससे हमें क्या मिला । बोला पंकज कि तुझमें मेरी जान है दोस्त तुझसे ही मेरी ये पहचान है । नाम तेरा बढ़े इस गगन की तरह फूल बनकर खिलो एक

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