shabd-logo

छुआछुत अस्पृश्यता -2

29 अगस्त 2023

6 बार देखा गया 6
गौरी :- पतली कमर और लहराते घुंघराले लंबे -लंबे बाल, चपटी और पतली सी नाक ,मांझरी आंखें और खिलते हुए गुलाब की तरह मुस्कान भरा चेहरा उसे उसकी भोली और सुंदर सूरत पर घमंड करने के लिए प्रेरित करता था । लेकिन गौरी के अंदर नाममात्र के लिए घमंड नहीं क्योंकि वह संस्कारों के बीच पली थी।।
निचले तबके में जन्म लेने वाली बच्ची को जब मौका मिला तो उसने अपनी मेहनत और लगन में कोई कसर नहीं छोड़ी और वह अपने पिता की सक्षमता का फायदा उठाते हुए उसने UPSC की तैयारी अवश्य की लेकिन वह ने साथ नहीं दिया और वह SSC में सलेक्शन से पहले ही उसके ऊपर लगे सामाजिक भेदभाव के दाग़ ने उसे इस तरह रौंद डाला कि खिलता हुआ फूल पूजा पर चढ़े हुए फूलों की तरह कचरे के ढेर में पडे मुरझाए फूलों की तरह मुरझा गया।।
रामू – मैं उस वक्त में पला बढ़ा हुआ था । जब निचले तबके के लोगों को समाजिक भेदभाव तो दूर की बात उसके छू लेने से कथित उच्च जाति के लोगों पर अपवित्रता का दाग़ उसी तरह लग जाता था । जिस तरह आज विष्टा खाने वाले सुअर के छू लेने से शरीर को मल-मल कर धोकर उसको गंगाजल से पवित्र किया जाता है इसलिए मेरे समाज के लोगों के द्वारा अपने बच्चों को एक ही शिक्षा दी जाती थी कि बेटा उन लोगों का तुम्हें सदा सम्मान करना है जो हमारे देश में ऊंची जाति के कहलाते हैं। उन लोगों से डरकर रहना है जो हमारे कारण पवित्र होते हैं।
किस्तूरी :- गौरी की मां है । जो उस वक्त मैं नारी के रूप में जन्मी थी । जिस समय नारी को पढ़ने लिखने की आजादी नहीं थी। उसके बाद उसे निचले तबके का बनाने के लिए किस्मत ने पूरा साथ दिया। खेतों में काम करते हुए पिता के घर से निकल कर आई। किस्मत सही रही की पति की किसी तरह नौकरी लग गई। उस गांव के उस समाज में एक अकेला व्यक्ति जो सरकारी विभाग में नौकरी करता था वह मेरा ही पति था। इसलिए मुझे मास्टरनी कहा जाता था।
रतन , सोहनलाल , रमेश :- तीनों गौरी के भाई और रामू के बेटे थे। गौरी सबसे छोटी थी । तीनों भाई अपने बाप की नौकरी के कारण पढ़ें जरूर थे लेकिन तीनों की तीनों की मेहनत ने ही बीच में दम तोड दिया।।
रमन सिंह:- उच्च कुल में जन्मा बालक जो एक उच्च जाति में जन्म लिया। उसने अपने घर के सभी कायदे कानूनों की पढ़ाई की । फिर भी मानवतावादी और छुआछुत को मिटाने के लिए निम्न तबके की लड़की से मोहब्बत कर बैठा। वह आधुनिक विचारधारा से ऐसा प्रेरित हुआ कि उसने मानव को सर्वश्रेष्ठ जाति और मानवता को धर्म समझते हुए अपने आप को सामाजिक सुधार की आंधी में झौंक तो दिया लेकिन उसे समाज से बहिष्कृत कर दिया। उस पर भी रमन सिंह ने कोई आपत्ति महसूस नहीं की । जो जाति और धर्म के ठेकेदारों को समझ में नहीं आई और उन्होंने उसे इस संसार से ही अलविदा कह दिया।
वीर सिंह:- जो गांव में बहुत बड़ी हस्ती रखते हैं और गांव के उच्च जाति का दर्जा रखते हैं। उन्हें निचले तबके वाले लोगों और उनकी स्त्रियों के साथ अत्याचार करने में बहुत मज़ा आता है।।
वीरवति:- रमन सिंह की मां है जो हमेशा अपने पति के कहे अनुसार चलती है। मजाल की आदमियों के बीच अपनी जवान हिला दे।
जब सभी धर्म ग्रंथों में हर मानव की उत्पत्ति किसी स्त्री पुरूष के एक जोड़े से बताई गई है तो हम अलग-अलग कैसे हो सकते हैं। जब प्रकृति ने हीं हमें जाति धर्म रंग-रूप आकार और निर्मित पंच तत्वों से अलग करते हुए नहीं बनाया तो हम लोगों में मतभेद क्यों??
क्यों एक समूह को निम्न और एक समूह को श्रेष्ठतम कहा जा रहा है??
उसी समय और लग दशा से इस कहानी की शुरुआत होती है कि राजस्थान के एक गांव चंदनपुर में रामू का परिवार एक निम्न तबके में पल रहा था। आजादी की लड़ाई में इन लोगों के माता -पिता को आशा लगी थी कि हम लोग अपना कुछ समय आजादी से घुटती हुई सांसों से मुक्ति पाकर निकाल जायेंगे। लेकिन हमें इस बात का पता नहीं था कि अंग्रेजी से आजादी के बाद भी हमें एक गुलामी का दौर झेलना होगा जो हमें मुक्त नहीं होने देगा।।
 आजादी के बाद का समय ऐसा था। जब अस्पृश्यता और छुआछूत का पूरी तरह बोल वाला था।। वर्णों के आधार पर लोगों के साथ खूब भेदभाव किया जाता था। 1947 में अंग्रेजों की दुनिया से मुक्ति मिली। अस्पृश्यता का ताज पहने भारत देश में रहने वाली जातियों को उसी धर्म के लोगों ने गुलामी जंजीर पहना रखी थी। जिनसे पीछा छूटना बड़ा ही मुश्किल था। निम्न वर्ग के लोगों को नाममात्र की आजादी महसूस नहीं हो रही थी। उन लोगों के पूर्वजों ने आजादी में अपनी जी जान लगा दी और कुछ लोग शहीद भी हुए थे । लेकिन सामाजिक मतभेदों ने उन्हें भी गुमनाम रखा और उनके त्याग और बलिदान को बहते हुए पानी की तरह बहाव में छोड़ दिया। हम लोग आज भी अपनी घुटती हुई जिंदगी अपने ही धर्म के लोगों के हाथों से झेल रहे थे। हम अपनी किस्मत को कोसते थे कि हमें पराये लोगों से आजादी मिल गई लेकिन हमारे ही धर्म के लोगों ने हमें गुलामी के शिकंजे में जकड़ रखा है।
 उस समय भारत में आजादी जरूर मिल गई थी लेकिन निचले तबके को अभी भी गुलामी की जंजीरों में जीना पड़ रहा था। इस वक्त भी उन्हें पढ़ने लिखने का अधिकार नहीं था । और निचले तबके के लोग अशिक्षित रहकर ही अपना जीवन गुजार रहे थे। हम पहले से ज्यादा दुखी इसलिए हो गये कि हमें अपने कहने वाले लोग ही छूने से डरते हैं। आजादी के जश्न में शामिल ये लोग झूठे ही अपनी उम्मीदों की जड़ों को पानी दे रहे थे।

4
रचनाएँ
छुआछूत या अस्पृश्यता
0.0
यह एक सामाजिक संवेदना युक्त रोमांटिक रचना की शुरुआत है।।
1

भाग-1

27 मई 2023
1
0
0

भाग-1 अस्पृश्यता या छुआछूत एक प्रेम कहानी है जो समाज में निचले तबके के लोगों के प्रति रखी जाने वाली हीन मानसिकता पर सीधा प्रहार करती है। इस रचना में नायिका योग्य , सुंदर , सुशील और निम्न वर्ण की लड़की

2

छुआछुत अस्पृश्यता -2

29 अगस्त 2023
0
0
0

गौरी :- पतली कमर और लहराते घुंघराले लंबे -लंबे बाल, चपटी और पतली सी नाक ,मांझरी आंखें और खिलते हुए गुलाब की तरह मुस्कान भरा चेहरा उसे उसकी भोली और सुंदर सूरत पर घमंड करने के लिए प्रेरित करता था । लेकि

3

छुआछुत या अस्पृश्यता-3

29 अगस्त 2023
0
0
0

मुख्य गांव से दूर बसी हुई एक कच्चे मकानों की बस्ती जहां पर घास-फूंस की दुनिया नजर आ रही थी। इन लोगों को यह बिसात उनके पूर्वज देकर चले गए कि उन्हें इन्हीं झोपड़ियों में जीना है। एक तरफ आजादी की लड़ाई ख

4

छुआछुत या अस्पृश्यता-4

29 अगस्त 2023
0
0
0

रामू:-मेरी चौदह साल में शादी होते ही मेरे कंधों पर जिम्मेदारी आ गई। नई -नई किस्तूरी और हमारे छोटे से झोपड़े में रहने वाले दस बारह लोग। जगह बहुत कम पड़ रही थी। धीरे-धीरे बेगारी की प्रथा शुरू हुई और हम

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए