यूँ ही इंसान को गलतियों का पुतला नहीं कहा गया है। जीवन संघर्ष के दौरान व्यक्ति जब कोई कार्य करता है तो उसमें गलती न हो, ऐसा संभव नहीं है। अज्ञानता बस जाने-अनजाने में वह कई गलतियां करता रहता है। लेकिन
दिन की शुरुआत होने से पहले हम नाजाने कितनी गलतियाँ करते है फिर वो चाहे कही से हमे कुछ खरीदना हो या किसी बाजार इत्यादि में से कुछ सामग्री लानी हो या किसी के पास बैठना हो गली मोहल्ला या फिर पड़ोस में आदि
व्यक्ति अपनी गलतियों से बहुत कुछ सीख सकता है और सबसे बुद्धिमान वह होता है जो दूसरों की गलतियों को देखकर उनसे भी सीख लेता है लेकिन वास्तविक जीवन में ऐसे बहुत ही कम लोग हैं जो दूसरों की गलतियों को देखकर