वो पन्ना जिस पर
प्रेम की मुहर लगी थी
हाँ ,अधूरा ही तो रहा
शायद राधा कृष्ण की तरह
पूरा होकर भी अधूरा, और,
आधा होकर भी पूरा
इस पूरे आधे में
जली तो मैं आखिर ....
माना की तुम शरीक हो मुझमें
मैं तुममें
मगर सवाल तो पूछे जायेगें न
तुम क्यों छोड़ गए मुझको तन्हा
मेरी अधूरी डायरी के पन्ने
खाली - खाली जो हैं
शब्द गुम हैं और कलम मौन
कहना बहुत कुछ चाहते हैं
भावों के शब्द टूट गए शब्दों ने
अपना पल्ला झाड़ लिया
यादों के अवशेष उमड़ घुमड़
बदली की तरह कभी इधर, कभी उधर
ह्रदय के भीतर शोर करते हैं
मैं भक्ति के सागर में हिलोरे लगाती
तुम्हें ही पुकारती आज भी
क्या प्रेम को तुम सार्थक करोगे
तुम्ही ने तो कहा था प्रेम शाश्वत है
कभी मरता ही नही
हाँ तभी तो तुमको महसूस करती हूँ
तो अधूरी साधना के पन्नो पर तुम्हारी
मोहर जो लगवानी है रसिक।