मैं प्रेम में हूँ या मुझमें ही प्रेम है क्या तुम बता सकते हो किसमे प्रेम है चारो तरफ प्रेम मय जगत के मैं तन्मयता से तन्मय हूँ हाँ प्रेम मेरे भीतर ही बहता है इतर उतर पता नही किधर मगर कुछ तो है मेरे भीतर पिघलता है जमता है फिर बह जाता ममत्वय से कुछ पाने कुछ खोने की राह पर हाँ प्रेम ही तो है जो दिखता नही महसूस होता है ह्रदय की धमनियों में रक्त के उबाल सा थिरकता है मन के भीतर यही तो प्रेम है मैं समझ नही पाती मैं प्रेम में हूँ या मुझमें ही प्रेम।