धुँआ और धूल का गुबार ही गुबार है,
चीखती है धरा सूखता है पोखरा।
मर चुकी आत्माओं का मिट गया बुखार है,
लड़ रहे हैं आपस में पानी की मार है।
घटता है जलस्तर रोती है मुनिया,
जान की बाजी है भरना है पनिया।
भूख से भी ज्यादा प्यास पे ही मार है,
मरता है मर जाये हर आदमी बीमार है।