बेटी की जाति नही।सारे जहाँ से अच्छा हिदुस्तान हमारा यह लाईन सुनने में भले ही सुंदर लगती हो। यह लाईन भी दिल को झकझोर देती है कि हमारी संस्कृति सबसे सर्वोपरि है। हमारे यहाँ बेटी की जाति नही होती यह समाज कहता है। लेकिन जैसे ही हमारे समाज में बेटी की जीभ काट दी जाती है, रीढ़ तोड़ दी जाती है, रेपकरके छोड़
एक बेटी इतनी बड़ी हो सकती है की वह आपकी गोद में ना समाये, पर वह इतनी बड़ी कभी नहीं होती की आपके दिल में ना समा सके । एक बेटी, अतीत की खुशनुमा यादें होती है, वर्तमान पलों का आनंद और भविष्य की आशा और उम्मीद होती है । “अज्ञात” एक बेटी को जन्
शोध करना साहित्य, समाज अथवा उन सभी के लिए के लिए जरूरी है जो कुछ नया दिखना चाहते हैं, अपने इतिहास से प्रेरणा लेते हैं । आज हमारे सामने जितनी भी पुस्तके या रिपोर्ट या ऐसी सामग्री जिससे समाज के सभी वर्गों की वास्तविकता का पता चलता है वह सभी शोध से ही संभव हो पाया है ।
ब्राह्मण विरोधी राजनीति जिसकी जड़ 19वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में ज्योतिबा फुले के सत्यशोधक समाज के रूप में रखा गया था, और जिसका राजनीतिक स्वरूप 20वीं शताब्दी के प्रारंभ में जस्टिस पार्टी के द्वारा रखा गया था, वह आंदोलन अपने उतरार्द्ध
20वीं सदी में शायद ही कोई ऐसा बच्चा हो, जो स्कूल गया हो और उसने हिंदी या इंग्लिश में गाय पर निबंध न लिखा हो. गाय हमारी माता है, गाय के चार पैर, दो कान, दो सिंग और बला, बला...मुझे याद आता है, उस समय जब कोई विद्यार्थी गाय (Prime Minister Narendra Modi Lesson, Cow Protection) पर कुछ बोल नहीं पाता था, फ