20वीं सदी में शायद ही कोई ऐसा बच्चा हो, जो स्कूल गया हो और उसने हिंदी या इंग्लिश में गाय पर निबंध न लिखा हो. गाय हमारी माता है, गाय के चार पैर, दो कान, दो सिंग और बला, बला...
मुझे याद आता है, उस समय जब कोई विद्यार्थी गाय (Prime Minister Narendra Modi Lesson, Cow Protection) पर कुछ बोल नहीं पाता था, फिर भी उसे "गाय हमारी माता है" तो अवश्य ही याद रहता था. आगे की लाइनों में अंटक जाने पर मास्टरजी दुहराते हुए कहते थे कि..
"गाय हमारी माता है, हमें कुछ नहीं आता है" ...
और फिर छड़ी से ले सटा-सट, सटा-सट!
कुछ वैसे ही मास्टरजी के अंदाज में हमारे देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दिखे. उन्होंने उम्मीदों के विपरीत तथाकथित 'गोरक्षकों' पर धड़ाधड़ हमले किये और न केवल हमले किये, बल्कि उनमें से 80 फीसदी गोरक्षकों को एक तरह से 'अपराधी' ही बता डाला.
Gorakshak Dal, Prime Minister Narendra Modi Lesson, Cow Protection, Hindi Article, New |
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 7 अगस्त, शनिवार को अपने 'टाउनहॉल' कार्यक्रम में बोलते हुए ज़्यादातर गौरक्षकों को गोरखधंधे में लिप्त बताया और खुलकर कहा कि "कुछ लोग गौरक्षक के नाम पर दुकान खोलकर बैठ गए हैं और इस बात से पीएम को बहुत ग़ुस्सा आता है." मोदी इतने पर ही नहीं रुके, बल्कि उन्होंने राज्य सरकारों से ऐसे लोगों का डोज़ियर बनाने तक की अपील कर डाली. हालाँकि, थोड़ी सावधानी बरतते हुए बाद में उन्होंने गौरक्षकों से भी अपील की है कि वे गाय को प्लास्टिक खाने से बचाएं, ये बड़ी सेवा होगी. मोदी का यह कहना कि 'कोई स्वयंसेवा किसी को दबाने के लिए नहीं होती' उनकी चिर-परिचित राजनीति के कई मायने निकालती है. इस के तार हम कुछ यूं जोड़ सकते हैं कि पिछले दिनों गुजरात में दलित ों पर जिन गोरक्षकों (Prime Minister Narendra Modi Lesson, Cow Protection) ने हमले किये और यह मामला राष्ट्रीय मीडिया की सुर्खियां बना, उससे मोदी खासे नाराज लग रहे थे. आखिर, इसी बहाने उनकी विश्वस्त आनंदी बेन को सीएम पद से त्यागपत्र तक देना पड़ा और जब पानी सर से ऊपर गुजरने लगा तो नरेंद्र मोदी ने खुले मंच से अपनी नाराजगी ज़ाहिर करने में ज़रा भी संकोच नहीं किया. ठीक भी है, गोरक्षा के नाम पर गोरखधंधे को किसी एंगल से जायज़ नहीं ठहराया जा सकता है.
चूंकि, पीएम खुद दक्षिणपंथी राजनीति से आते हैं तो उनका गुस्सा इस लिहाज़ से भी जायज़ है क्योंकि कोई छुटभैया भी अगर हिंदुत्व के नाम पर, गाय रक्षा के नाम पर कोई हंगामा कर देता है तो बदनाम सीधे प्रधानमंत्री मोदी को किया जाता है, आलोचकों की ऊँगली उन्हीं की ओर उठ जाती है. पीछे के दिनों में जिस तरह सहिष्णुता/ असहिष्णुता का गुबार उठा था, संभवत गाय रक्षा के मामले में पीएम उसकी पुनरावृत्ति नहीं होने देना चाहते थे तो आने वाले तमाम चुनावों में दलितों और विरोधियों को लुभाने का यह एक सटीक दांव भी हो सकता है. इसी सन्दर्भ में अगर थोड़ी व्यापक दृष्टि डालते हैं तो यह भी नज़र आता है कि पीएम ने बजाय कि धर्मान्धता के विकास-पथ पर आगे बढ़ने के लिए इस इंटरेक्शन कार्यक्रम का इस्तेमाल किया. पीएम ने इसके लिए मुसलमान बादशाहों और हिन्दू राजाओं की कहानी भी सुनाई कि जब बादशाह किसी राजा पर आक्रमण करते थे तो अपनी सेना के आगे 'गौ-शक्ति' (Prime Minister Narendra Modi Lesson, Cow Protection, superstition) को खड़ा कर देते थे और चूंकि हिन्दू गायों को पवित्र मानते रहे हैं तो हिन्दू राजा भी बादशाहों की सेना पर आक्रामक ढंग से प्रहार नहीं कर पाते थे और नतीजा जंग में हार होती थी.
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सवा सौ करोड़ लोगों के मुखिया की जुबान से तो यूं भी कोई अनावश्यक शब्द नहीं निकलता है और वह भी जब नरेंद्र मोदी जैसा सधा हुआ राजनेता हो तब तो उसकी कही एक-एक बात का मतलब निकलता है. साफ़ सन्देश है पीएम मोदी का उन सभी लोगों को, जो धर्मान्धता के नाम पर जन्नत और स्वर्ग की कल्पना में उलझे रहते हैं, जो लोग धर्म के नाम पर एक-दूसरे को बर्दाश्त नहीं करते हैं, जो धार्मिक कानूनों के नाम पर स्त्रियों की ज़िन्दगी को दोज़ख से भी बदतर बना देते हैं, जो ज़िहाद के नाम पर दूसरों का क़त्ल कर देते हैं ... कि अब ऐसे लोग विकास की राह पर आएं, मेहनत करें और धार्मिक बातों का निहित स्वार्थों के लिए सहारा लेना छोड़ दें. अन्यथा बात फिर वहीं आकर अंटकेगी कि हे ...
"गाय हमारी माता है, पर हमें कुछ नहीं आता है."