बात पुरानी उड़ चली।
गया पुराना ढंग है।।
नयी सभ्यता आ गई।
चड़ा नया अब रंग है।।
सा रे गा मा अब नहीं।
रम्भा हो तो खूब है।।
नाच मयूरी अब नहीं।
डिस्को की ही धूम है।।
नारी नर बनने लगी।
हर कोई लख दंग है।।
हवा पच्छिमी बह रही।
चढ़ा नया अब रंग है।।
धर्मी होते अब नहीं।
ढोंगी ढोंग रचा रहे।।
धर्म भाव की आड़ में।
प्रतिदिन शोर मचा रहे।।
शत्रु देख रण छोड़ दें।
ऐसे ही अब वीर हैं।।
बाप की आंखें फोड़ दें।
ऐसे ही रणधीर हैं।।
मन की तो कहते नहीं।
अफवाहों का जोर है।।
स्वार्थ सनी है मान्यता।
उनका ही अब शोर है।।
बन्धु भाव पलता नहीं।
स्वार्थ सने सब लोग हैं।।
तेरा-मेरा, मेरा-तेरा।
करने के संयोग हैं।।
रिश्वत की महिमा अजब।
विज्ञापन का जोर है।।
नेता भटके राह से।
यही आज का दौर है।।