shabd-logo

आज का दौर

9 जून 2016

406 बार देखा गया 406
featured image

बात पुरानी उड़ चली। 

गया   पुराना  ढंग  है।।  

नयी सभ्यता आ गई।

चड़ा नया अब रंग है।। 

      सा रे गा मा अब नहीं।   

      रम्भा  हो  तो  खूब है।। 

      नाच  मयूरी अब नहीं।      

      डिस्को की ही धूम है।। 

नारी  नर  बनने  लगी। 

हर कोई लख  दंग  है।। 

हवा पच्छिमी बह रही।  

चढ़ा  नया  अब रंग है।।    

      धर्मी  होते  अब  नहीं।

      ढोंगी  ढोंग   रचा  रहे।। 

      धर्म भाव की आड़ में। 

      प्रतिदिन शोर मचा रहे।।   

शत्रु देख रण  छोड़ दें।

ऐसे  ही  अब   वीर  हैं।। 

बाप की आंखें फोड़ दें। 

ऐसे    ही   रणधीर   हैं।।

      मन की  तो  कहते  नहीं।

      अफवाहों   का  जोर  है।।

      स्वार्थ  सनी  है  मान्यता।  

      उनका  ही  अब  शोर  है।।

बन्धु  भाव  पलता  नहीं। 

स्वार्थ  सने  सब  लोग हैं।।

तेरा-मेरा,         मेरा-तेरा।

करने    के    संयोग    हैं।।

       रिश्वत की महिमा अजब। 

       विज्ञापन    का   जोर   है।।

       नेता     भटके     राह   से। 

       यही   आज  का  दौर  है।। 

            
डाॅ कंचन पुरी

डाॅ कंचन पुरी

समय के साथ सन्दर्भ बदल जाते हैं

12 जून 2016

1

मेरी प्यारी प्यारी माता

3 जून 2016
0
8
1

मेरी    प्यारी     प्यारी    माता। मैं  तुझको  कितना  हूं  भाता। पाऊं    तेरा     प्यार   सलोना।कभी  न  चाहूं  तुझको खोना। कभी खिलौनों को दिखलाती। तरह-तरह  के  खेल खिलाती। कभी  पीठ  पर  मुझे  चढ़ाती। मीठे-मीठे      गीत     सुनाती।कभी  गोद   में   है   ले  लेती। कभी  दूध  से  मुंह  भर  देती। चंदा   त

2

ये चमकीले तारे हैं!

3 जून 2016
0
3
1

नभ   सुरमई  सी   चादर  है।टके   जिस   पर   सितारे  हैं। टिम-टिम टिम-टिम करते हैं।आंखों   में   बस   जाते   हैं।               कितने  रंग   बदलते  हैं।                बड़े  दिये  से  बलते  हैं।               कभी  टूट  ये  पड़ते  हैं।               चिनगी सी छिटकाते हैं।नये जड़ाऊ  गहने हैं। जिन्‍हें रात

3

रिश्तों का विधान

4 जून 2016
0
7
2

जब  दो  अपरिचित  हैं  मिलते। फिर रिश्तों को एक नाम हैं देते। होता है रिश्तों का सिर्फ रिवाज। जिसमें छिपा रहता स्वार्थ आज।      चाहत  से  रंगकर  फिर रिश्ते ।      सुखों का  छोर थाम फिर लेते।      बोध ना होता कर्तव्यों का जब।      कैसा विधान है रिश्तों  का तब।रिश्तों को नाम देता है हर कोई। पर  उसे  नि

4

परिवर्तन

5 जून 2016
0
2
2

पंख लगा समय उड़ा।मैं  यूं  ही  रहा  खड़ा। दे   गये   अपने  दगा।मैं  भी  था  गया ठगा।     सब कुछ बदला सा लगा,     कौन  किसी  का है सगा।     जीवन  धारा   नित   बही।     और  यन्‍त्रणा  भी  सही।सत्  भी मन्‍दा कर दिया। लोभ ने अन्‍धा कर दिया। झूठ   पनपता   जा  रहा। नित  नव  रंग दिखा रहा।      दुख ही दुख अ

5

वायु

7 जून 2016
0
1
0

जो करे सेवन वायु का प्रातःकाल। रहे स्वस्थ होये न कभी बुरा हाल।

6

आज का दौर

9 जून 2016
0
2
1

बात पुरानी उड़ चली। गया   पुराना  ढंग  है।।  नयी सभ्यता आ गई। चड़ा नया अब रंग है।।       सा रे गा मा अब नहीं।          रम्भा  हो  तो  खूब है।।       नाच  मयूरी अब नहीं।             डिस्को की ही धूम है।।  नारी  नर  बनने  लगी। हर कोई लख  दंग  है।। हवा पच्छिमी बह रही।   चढ़ा  नया  अब रंग है।।          

7

होली आयी रे (Holi aayee re) रंगों के त्‍यौहार की आप सबको हार्दिक शुभकामनाएं

12 मार्च 2017
0
2
0

रंगों का पर्व होली पर विशेषसभी मित्रों एवं शब्‍दनगरी के सदस्‍यों को सपरिवार होली की हार्दिक शुभकामनाएं। रंगों का यह त्‍यौहार आपके जीवन में अनेक खुशियां लेकर आए। हाइकु 5-7-5 के क्रम वाली क्षणिक कविता है और इसमें एक क्षण को उसकी सम्‍पूर्णता सहित अभिव्‍यक्‍त किया जाता है। इस वीडियो में 'होली आयी रे' के

---

किताब पढ़िए