पंख लगा समय उड़ा।
मैं यूं ही रहा खड़ा।
दे गये अपने दगा।
मैं भी था गया ठगा।
सब कुछ बदला सा लगा,
कौन किसी का है सगा।
जीवन धारा नित बही।
और यन्त्रणा भी सही।
सत् भी मन्दा कर दिया।
लोभ ने अन्धा कर दिया।
झूठ पनपता जा रहा।
नित नव रंग दिखा रहा।
दुख ही दुख अब व्याप्त है।
सुख की अवधि समाप्त है।
स्वप्न गये हैं डूब से।
समय चक्र भी खूब है।
जीवन में परिवर्तन रे।
सुख-दुख का अपवर्तन रे।
यह आवश्यक बात है।
दिन के आगे रात है।
जीवन आना-जाना है।
सब कुछ खोना-पाना है।
जीवन यूं ही ढलता है।
प्रकृति चक्र यूं चलता है।