shabd-logo

दलित वर्ग के प्रतिनिधि और पुरोधा थे डाॅ. भीमराव रामजी अंबेडकर

13 अप्रैल 2017

365 बार देखा गया 365
featured image

डाॅ. भीमराव आम्बेडकर का जन्म 14 अप्रैल, 1891 को महाराष्ट्र के रत्नागिरि जिले के अम्बावड़े गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम श्रीरामजी सकवाल तथा माता का नाम भीमाबाई था। उनके "आम्बेडकर" नाम के मूल में एक रोचक प्रसंग है। जब उन्होंने स्कूल में दाखिला लिया तो अपने नाम भीमराव के आगे ‘अम्बावडेकर’ लिखवाया। इस पर गुरु ने इसका रहस्य जानना चाहा तो उन्होंने बतलाया कि वे अम्बावड़े गांव का निवासी है, इसलिए अपने नाम के आगे अम्बावडे़कर लिख दिया है। गुरु जी अपने नाम के आगे "आम्बेडकर" लिखते थे, अतः उन्होंने भी भीमराव के आगे ‘आम्बेडकर’ उपनाम जोड़ दिया। उन्हें गुरु की यह बात अजीब लगी क्योंकि वे जानते थे कि नाम बदलने से उनकी जाति नहीं बदल सकती है। लेकिन वे यह सोचकर चुप रहे कि निश्चित ही गुरुजी ने कुछ सोच विचार कर ही ऐसा किया होगा। गुरु ने उन्हें "अम्बावड़ेकर" से "आम्बेडकर" बनाकर उनके विचारों में क्रांति ला दी। उन्होंने सिद्ध कर दिखलाया कि- "जन्मना जायते शूद्रोकर्मणा द्विज उच्यते।"

बाबा आम्बेडकर को उनके बचपन में दलित और अछूत समझे जाने वाले समाज में जन्म लेने के कारण कई घटनाएं कुरेदती रहती थी। स्कूल में पढ़ने में तेज होने के बावजूद भी सहपाठी उन्हें अछूत समझकर उनसे दूर रहते थे, उनका तिरस्कार करते थे, घृणा करते थे। ऐसे ही एक बार बैलगाड़ी में बैठने के बाद जब उन्होंने स्वयं को महार जाति का बताया तो गाड़ीवान ने उन्हें गाड़ी से उतार दिया और कहा कि उसके बैठने से गाड़ी अपवित्र हो गई है जिससे धोना पड़ेगा और बैलों को भी नहलाना पड़ेगा। उनके पानी मांगने पर गाड़ीवान ने उन्हें पानी तक नहीं पिलाया। बचपन में उन्हें अनेक कटु अनुभव हुए जिनके कारण उनके मन में उच्च समझे जाने सवर्णों के प्रति घृणा उत्पन्न हो गई। वस्तुतः वह समय ही कुछ ऐसा था जब अछूतों के प्रति सवर्ण वर्ग की कोई सहानुभूति न थी। गंदे नालियों की सफाई करना, सिर पर मैला ढ़ोना तथा मरे जानवरों को फेंकना, उनकी चमड़ी निकालना जैसे कार्य अछूतों के अधिकार माने जाते थे। उन्हें जानवरों से भी हीन श्रेणी का दर्जा दिया जाता था। दलित जाति की यह दुर्गति देखकर ही वे दलितों के उधार के लिए दृढ़ संकल्पित हुए। शिक्षा समाप्ति के पश्चात् वे बड़ौदा महाराजा के रियासत में सैनिक सचिव पद पर नियुक्त हुए लेकिन अपने अधीनस्थ सवर्णों द्वारा छुआछूत बरते जाने के कारण उन्होंने वह पद त्याग दिया। दलितों की उपेक्षा, उत्पीड़न और छुआछूत से क्षुब्ध होकर उन्होंने दलित वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हुए राष्टव्यापी आंदोलन चलाया। उन्होंने जातीय व्यवस्था की मान्यताओं को उखाड़ फेंकने के लिए एक साहसी क्रांतिकारी भूमिका निभाई। उन्होंने धर्म के प्रति अपना दृष्टिकोण प्रकट करते हुए कहा- “जो धर्म विषमता का समर्थन करता है, उसका हम विरोध करते हैं। अगर हिन्दू धर्म अस्पृश्यता का धर्म है तो उसे समानता का धर्म बनना चाहिए। हिन्दू धर्म को चातुर्वण्य निर्मूलन की आवश्यकता है। चातुर्वण्य व्यवस्था ही अस्पृश्यता की जननी है। जाति भेद और अस्पृश्यता ही विषमता के रूप हैं। यदि इन्हें जड़ से नष्ट नहीं किया गया तो अस्पृश्य वर्ग इस धर्म को निश्चित रूप से त्याग देगा।“

डाॅ. आम्बेडकर दलितों के मसीहा के साथ ही ऐतिहासिक महापुरुष भी हैं। उन्होंने अपने आदर्शों और सिद्धांतों के लिए आजीवन संघर्ष किया जिसका सुखद परिणाम आज हम दलितों में आई हुई जागृति अथवा नवचेतना के रूप में देख रहे हैं। वे न केवल दलित वर्ग के प्रतिनिधि और पुरोधा थे, अपितु अखिल मानव समाज के शुभचिंतक महामानव थे। भारतीय संविधान के निर्माण में उनका योगदान सर्वोपरि है। उन्हें जब संविधान लेख न समिति के अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी सौंपी गई तो उन्होंने कहा- "राष्ट्र ने एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी मुझे सौंपी है। अपनी पूरी शक्ति केन्द्रीभूत कर मुझे यह काम करना चाहिए।" इस दायित्व को निभाने के लिए उनके अथक परिश्रम को लेखन समिति के एक वरिष्ठ सदस्य श्री टी.टी.कृष्णामाचारी ने रेखांकित करते हुए कहा कि-"लेखन समिति के सात सदस्य थे, किन्तु संविधान तैयार करने की सारी जिम्मेदारी अकेले आम्बेडकर जी को ही संभालनी पड़ी। उन्होंने जिस पद्धति और परिश्रम से काम किया, उस कारण वे सभागृह के आदर के पात्र हैं। राष्ट्र उनका सदैव ऋणी रहेगा।"

आज लोकसभा का कक्ष उनकी प्रतिमा से अलंकृत है जिस पर प्रतिवर्ष उनकी जयंती पर देश के बड़े-बड़े नेता और सांसद अपने श्रद्धासुमन अर्पित करते हैं। उनका व्यक्तित्व और कृतित्व महान् है। वे सच्चे अर्थों में भारतरत्न हैं। उनकी जयंती संपूर्ण राष्ट्र के लिए महाशक्ति का अपूर्व प्रेरणा स्रोत है। इस अवसर पर उनके जीवन और कार्यों का स्मरण करना हम सबके लिए अपनी भीतरी आत्मशक्ति को जगाना है। आइए, हम उनकी जयंती के अवसर पर संकल्प लें कि हम उनके विचारों और आदर्शों केा अपनाकर अपने जीवन को देश-प्रेम और मानव-सेवा में समर्पित करने का प्रयास करेंगे, जो हमारी उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

प्रियंका शर्मा

प्रियंका शर्मा

अच्छी जानकारी साझा की , कविता जी

14 अप्रैल 2017

30
रचनाएँ
घर से बाहर एक घर
5.0
यह पुस्‍तक मेरा घर से बाहर एक सपनों का घर है
1

बचपन के स्वत्रंत्रता दिवस का वह एक दिन

13 अगस्त 2016
6
2
1
2

सामाजिक एकाकार का पर्व है गणेशोत्सव

2 सितम्बर 2016
3
1
1

हमारी भारतीय संस्कृति अध्यात्मवादी है, तभी तो उसका श्रोत कभी सूख नहीं पाता है। वह निरन्तर अलख जगाकर विपरीत परिस्थितियों को भी आनन्द और उल्लास से जोड़कर मानव-जीवन में नवचेतना का संचार करती रहती है। त्यौहार, पर्व और उत्सव हमारी भारतीय संस्कृति की विशेषता रही है, जिसमें जनमानस घोर विषम परिस्थितियों में

3

निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल

14 सितम्बर 2016
1
0
0

4

दीपावली का आरोग्य चिन्तन

21 अक्टूबर 2016
1
1
0

दीपावली जन-मन की प्रसन्नता, हर्षोल्लास एवं श्री-सम्पन्नता की कामना के महापर्व के रूप में मनाया जाता है। कार्तिक की अमावस्या की काली रात्रि को जब घर-घर दीपकों की पंक्ति जल उठती है तो वह पूर्णिमा से अधिक उजियारी होकर 'तमसो मा ज्योतिर्गमय' को साकार कर बैठती है। य

5

कुछ ऐसा हो नूतनवर्षाभिनंदन

31 दिसम्बर 2016
1
2
0

6

गुलाबों के खूबसूरत दरबार की कुछ गुलाबी स्मृतियां

5 जनवरी 2017
2
1
1

7

लोकरंग में झलकता मेरे शहर का वसंत

1 फरवरी 2017
2
2
0

पहले २६ जनवरी यानी गणतंत्र दिवस का दिन करीब आता तो मन राजधानी दिल्ली के 'इंडिया गेट' के इर्द-गिर्द मंडराने लगता था। तब घरतंत्र से दो चार नहीं हुए थे। बेफिक्री से घूम-फिरने में एक अलग ही आनंद था। गणतंत्र दिवस की गहमागहमी देखने इंडिया गेट

8

भोपाल उत्सव मेला

8 फरवरी 2017
2
1
0

भोपाल स्थित नार्थ टी.टी.नगर में न्यू मार्केट के पास एक विशाल मैदान है, जिसे दशहरा मैदान के नाम से जाना जाता है। इस मैदान में दशहरा के दिन हजारों की संख्या में शहरवासी एकत्रित होकर रावण के साथ कुम्भकरण और मेघनाथ का पुतला दहन कर दशहरा मनाते हैं। यहाँ हर वर्ष जनवरी के प्रथम सप्ताह से फरवरी के

9

एक अभियान नारी आधारित गालियों के विरुद्ध भी चले

8 मार्च 2017
3
1
0

10

रामजन्मोत्सव

4 अप्रैल 2017
2
1
1

जब मंद-मंद शीतल सुगंधित वायु प्रवाहित हो रही थी, साधुजन प्रसन्नचित्त उत्साहित हो रहे थे, वन प्रफुल्लित हो उठे, पर्वतों में मणि की खदानें उत्पन्न हो गई और नदियों में अमृत तुल्य जल बहने लगा तब- नवमी तिथि मधुमास पुनीता सुक्ल पक्ष अभिजित हरि प्रीता। मध्यदिवस अति सीत न घामा

11

दलित वर्ग के प्रतिनिधि और पुरोधा थे डाॅ. भीमराव रामजी अंबेडकर

13 अप्रैल 2017
1
3
1

डाॅ. भीमराव आम्बेडकर का जन्म 14 अप्रैल, 1891 को महाराष्ट्र के रत्नागिरि जिले के अम्बावड़े गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम श्रीरामजी सकवाल तथा माता का नाम भीमाबाई था। उनके "आम्बेडकर" नाम के म

12

मज़बूरी के हाथ

1 मई 2017
1
2
1

यों रविवार छुट्टी और आराम का दिन होता है, लेकिन अगर पूछा जाय तो मेरे लिए यह सबसे ज्यादा थकाऊ और पकाऊ दिन होता है। दिन भर बंधुवा मजदूर की तरह चुपचाप हफ्ते भर के घर भर के इकट्टा हुए लत्ते-कपडे, बच्चों के खाने-पीने की फरमाईश पूरी करते-करते कब दिन ढल गया पता नहीं चलता। अभी रविवार के दिन भी जब द

13

भाई-बहिन का स्नेहिल बंधन है रक्षाबंधन

5 अगस्त 2017
0
1
0

14

भगवती दुर्गा संगठित शक्ति प्रतीक हैं

21 सितम्बर 2017
1
3
2

मानव की प्रकृति हमेशा शक्ति की साधना ही रही है। महाशक्ति ही सर्व रूप प्रकृति की आधारभूत होने से महाकारक है, महाधीश्वरीय है, यही सृजन-संहार कारिणी नारायणी शक्ति है और यही प्रकृति के विस्तार के समय भर्ता तथा भोक्ता होती है। यही दस महाविद्या और नौ देवी हैं। यही मातृ-शक्ति, चाहे वह दुर्गा हो या

15

दीपावली का त्यौहार प्रेमभाव का सन्देश

17 अक्टूबर 2017
1
2
1

कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की त्रयोदशी को धनतेरस से शुरू होकर भाई दूज तक मनाया जाने वाला पांच दिवसीय सुख, समृद्धि का खुशियों भरा दीपपर्व ’तमसो मा ज्योतिर्गमय’ अर्थात् 'अंधेरे से प्रकाश की ओर चलो' का संदेश लेकर आता है। अंधकार पर प्रकाश का विजय का यह पर्व समाज में उल्लास, भाईचारे व प्रेमभाव का संदेश फैल

16

48 स्वादिष्ट व्यंजनों का थाल है निवेदिता का कविता संग्रह 'ख्याल'

2 जनवरी 2018
1
1
1

'ख्याल' कविता संग्रह नाम से मेरी सहपाठी निवेदिता ने खूबसूरत ख्यालों का ताना-बना बुना है। भोपाल स्थित स्वामी विवेकानंद लाइब्रेरी में ‘ख्याल’ का लोकार्पण हुआ तो कविताओं को सुन-पढ़कर लगा जैसे मुझे अचानक मेरे ख्यालों का भूला

17

सरकारी आयोजन मात्र नहीं हैं राष्ट्रीय त्यौहार

25 जनवरी 2018
1
2
0

राष्ट्रीय त्यौहारों में गणतंत्र दिवस का विशेष महत्व है। यह दिवस हमारा अत्यन्त लोकप्रिय राष्ट्रीय पर्व है, जो प्रतिवर्ष आकर हमें हमारी प्रजातांत्रिक शासन प्रणाली का भान कराता है। स्वतंत्रता के बाद भारतीयों के गौरव को स्थिर रखने के लिए डाॅ. राजेन्द्र प्रसाद की अध्यक्षता में देश के गणमान्य नेत

18

राम-लक्ष्मण और परशुराम संवाद

18 अप्रैल 2018
0
1
0

बचपन में हम रामलीला देखने के लिए बड़े उत्सुक रहते थे। जब-जब जहाँ-कहीं भी रामलीला के बारे में सुनते वहाँ पहुंचते देर नहीं लगती। रामलीला में सीता स्वयंवर के दिन बहुत ज्यादा भीड़ रहती, इसलिए रात को जल्दी से खाना खाकर बहुत पहले ही हम बच्चे पांडाल में चुपचाप सीता स्वयंवर के दृश्य का इंतजार करने ब

19

डाॅक्टर बनने की राह आसान बनाने हेतु एक सार्वजनिक अपील

27 मई 2018
2
0
0

माउंटेन मैन के नाम से विख्यात दशरथ मांझी को आज दुनिया भर के लोग जानते हैं। वे बिहार जिले के गहलौर गांव के एक गरीब मजदूर थे, जिन्होंने अकेले अपनी दृ़ढ़ इच्छा शक्ति के बूते अत्री व वजीरगंज की 55 किलोमीटर की लम्बी दूरी को 22 वर्ष के कठोर परिश्

20

मौत नहीं पर कुछ तो अपने वश में होता ही है

7 जुलाई 2018
1
0
0

जरा इन मासूम बच्चों को अपनी संवेदनशील नजरों से देखिए, जिसमें 14 वर्ष की सपना और उसकी 11 वर्ष की बहिन साक्षी और 11 वर्ष के भैया जिन्हें अभी कुछ दिन पहले तक माँ-बाप का सहारा था, वे 1 जुलाई 2018 रविवार को भयानक सड़क दुर्घटना भौन-धु

21

'दादी' के आते ही घर-आंगन से रूठा वसंत लौट आया ...

14 फरवरी 2019
1
1
0

हम चार मंजिला बिल्डिंग के सबसे निचले वाले माले में रहते हैं। यूँ तो सरकारी मकानों में सबसे निचले वाले घर की स्थिति ऊपरी मंजिलों में रहने वाले लागों के जब-तब घर-भर का कूड़ा-करकट फेंकते रहने की आदत के चलते कूड़ेदान सी बनी रहती है, फिर भी यहाँ एक सुकून वाली बात जरूर है कि बागवानी के लिए पर्याप्त जगह न

22

अथ होली ढूंढ़ा कथा

20 मार्च 2019
1
1
0

होली पर्व से सम्बन्धित अनेक कहानियों में से हिरण्यकशिपु के पुत्र प्रहलाद की कहानी बहुत प्रसिद्ध है। इसके अलावा ढूंढा नामक राक्षसी की कहानी का वर्णन भी मिलता है, जो बड़ी रोचक है। कहते हैं कि सतयुग में रघु नामक राजा का सम्पूर्ण पृथ्वी पर अधिकार था। वह विद्वान, मधुरभाषी होने के साथ ही प्रजा की स

23

सुबह की सैर और तम्बाकू पसंद लोग

4 जून 2019
1
6
2

गर्मियों में बच्चों की स्कूल की छुट्टियाँ लगते ही सुबह-सुबह की खटरगी कम होती है, तो स्वास्थ्य लाभ के लिए सुबह की सैर करना आनंददायक बन जाता है। यूँ तो गर्मियों की सुबह-सुबह की हवा और उसके कारण आ रही प

24

भारतीय-संस्कृति और सभ्यता के प्रतीक हैं मिट्टी के दीए

23 अक्टूबर 2019
0
2
1

आज भले ही दीपावली में चारों ओर कृत्रिम रोशनी से पूरा शहर जगमगा उठता है, लेकिन मिट्टी के दीए बिना दिवाली अधूरी है। मिट्टी के दीए बनने की यात्रा बड़ी लम्बी होती है। इसकी निर्माण प्रक्रिया उसी मिट्टी से शुरू होती है, जिससे यह सारा संसार बना है। यह मिट्टी रूप में भूमि पर विद्यमान रहती है, लेकिन एक दिन ऐस

25

कभी एक दिवस नहीं एक युग महिलाओं का भी आएगा

8 मार्च 2021
2
2
0

मुझे याद है जब हम बहुत छोटे थे तो हमारे घर- परिवार की तरह ही गांव से कई लोग रोजी-रोटी की खोज में शहर आकर धीरे-धीरे बसते चलते गए। शहर आकर किसी के लिए भी घर बसाना, चलाना आसान काम नहीं रहता है। घर-परिवार चलाने के लिए पैसों की आवश्यकता होती है। उसके बिना न रहने का ठिकाना, न पेट भरना और नहीं तन ढ़

26

हमारी आस्था व श्रद्धा के साथ ही पर्यावरण के सर्वथानुकूल हैं मिट्टी से बनी गणेश प्रतिमाएं

9 सितम्बर 2021
1
8
1

<p>प्रथम पूज्य गणपति जी की मूर्ति स्थापना के साथ ही पर्यावरण और हमारी झीलों को खतरनाक रसायनों से बचा

27

हिन्दी का महोत्सव है हिन्दी दिवस

14 सितम्बर 2021
5
5
3

<p>लो फिर आ गया एक पर्व की तरह हमारा हिन्दी का महोत्सव। हर वर्ष की भांति 14 सितम्बर को हिन्दी चेतना

28

माटी की मूरत

20 सितम्बर 2021
4
1
1

<figure><img height="auto" src="https://shabd.s3.us-east-2.amazonaws.com/articles/611d3c9442f7ed561c

29

ढपली और झुनझुने का गणित

20 दिसम्बर 2021
8
3
3

<figure><img height="auto" src="https://shabd.s3.us-east-2.amazonaws.com/articles/611d3c9442f7ed561c

30

सूर्योपसना का महापर्व है मकर संक्रांति

12 जनवरी 2022
5
2
3

हमारे भारतवर्ष में मकर संक्रांति, पोंगल, माघी उत्तरायण आदि नामों से भी जाना जाता है। वस्तुतः यह त्यौहार सूर्यदेव की आराधना का ही एक भाग है। यूनान व रोम जैसी अन्य प्राचीन सभ्यताओं में भी सूर्य और उसक

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए