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डाॅक्टर बनने की राह आसान बनाने हेतु एक सार्वजनिक अपील

27 मई 2018

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माउंटेन मैन के नाम से विख्यात दशरथ मांझी को आज दुनिया भर के लोग जानते हैं। वे बिहार जिले के गहलौर गांव के एक गरीब मजदूर थे, जिन्होंने अकेले अपनी दृ़ढ़ इच्छा शक्ति के बूते अत्री व वजीरगंज की 55 किलोमीटर की लम्बी दूरी को 22 वर्ष के कठोर परिश्रम के बाद गहलौर पहाड़ काटकर 15 किलोमीटर की दूरी में बदलकर ही दम लिया। ऐसा उन्होंने इसलिए किया क्योंकि जब वे गहलौर पहाड़ के दूसरे छोर पर लकड़ी काट रहे थे तब उनकी पत्नी उनके लिए खाना ले जा रही थी और उसी दौरान वह पहाड़ के दर्रे में गिर गई, जिससे चिकित्सा के अभाव में उसकी मृत्यु हो गई, क्योंकि वहां से बाजार की दूरी बहुत थी। उनके मन में यह बात घर कर गई कि यदि समय पर उनकी पत्नी का उपचार हो गया होता तो वह जिन्दा होती। इसलिए उन्होंने उसी समय ठान लिया कि वे अकेले दम पर पहाड़ के बीचों-बीच से रास्ता निकालकर ही दम लेगें, जो उन्होंने तमाम तरह की कठिनाईयों के बावजूद कर दिखाया। यहां एक बात साफ है कि यदि गांव में चिकित्सा सुविधा उपलब्ध होती तो शायद उनकी पत्नी की जान बच गई होती। कमोवेश आज भी अधिकतर गांवों की स्थिति चिकित्सा के मामले में बड़ी सोचनीय व दयनीय है। गांव में एक ओर जहां चिकित्सा के अलावा गरीबी का आलम पसरा मिलता है वहीं दूसरी ओर गरीब बच्चों के लिए उच्च स्तर पर शिक्षा की निःशुल्क व्यवस्था न होने से गरीबी के चलते उन्हें पढ़ाई बीच में ही छोड़नी पड़ती है। नगरीय क्षेत्रों की अपेक्षा देहातों में अशिक्षा का अभाव व्यापक स्तर पर देखने को मिलता है, जिसका दुःखद पहलू यह भी है कि कई समझदार और पढ़े-लिखे लोग इनका फायदा उठाने से पीछे नहीं हटते। बेचारे गरीब आदमी अपने गुजर-बसर के बाद यदि अपना जीवन स्तर कुछ ऊपर उठने के लिए सोचते भी हैं तो उसके लिए जब वे इधर-उधर से कर्जा लेते हैं तो उसी में डूब जाते हैं और फिर वे कभी कुछ सोचने-समझने की हिम्मत तक नहीं जुटा पाते हैं। उनकी ऐसी ही दशा के बारे में किसी कवि ने बड़ा ही सटीक कहा है कि- है जिसका सर पर कर्जे का बोझ न मिलती जिसको रोटी रोज करेगा वह क्या जीवन खोज- लायेगा कहां से बोलो ओज? मैंने यहां माउंटेन मैन ‘दशरथ मांझी’ का उल् लेख इसलिए किया क्योंकि उनकी तरह जाने कितने ही गरीब लोग अपनी दयनीय स्थिति के कारण अपनी मंजिल की ओर दृढ़ निश्चय होकर कदम तो बढ़ा लेते हैं लेकिन उन्हें गरीबी की मार के चलते अपनी मंजिल बीच में ही अधूरी छोड़नी पड़ती है।

दशरथ मांझी की तरह धर्म ेन्द्र मांझी जो कि सोहागपुर, जिला होशंगाबाद का निवासी है, जिसे मैं व्यक्तिगत रूप से विगत 9 वर्ष से जानती हूँ, जिसने औसत दर्जे के छात्र होने के बावजूद एक पिछड़े इलाके से आकर भोपाल में मेडिकल प्रवेश परीक्षा पास करने के लिए 8 वर्ष की कठोर साधना की और वर्ष 2016 में एम.बी.बी.एस. की प्रवेश परीक्षा पास करके भोपाल स्थित चिरायु मेडिकल काॅलेज एंड हॉस्पिटल में दाखिला लेकर ही दम लिया। मैं यहाँ यह बात बताना जरुरी समझती हूँ कि जहां बहुत से छात्र दो-तीन बार असफल होने पर आगे तैयारी करना छोड़ देते हैं वहीं मांझी की दृढ़ इच्छाशक्ति का परिणाम ही है कि विकट परिस्थितियों के बाद भी कई बार असफल रहने के बाद उसने मैदान नहीं छोड़ा, डटा रहा और कभी निराश नहीं हुआ। वह निरन्तर मेरिट में आने के लिए सरकारी काॅलेज मिलने की आस लगाये कठोर परिश्रम करता रहा, ताकि वह सरकारी काॅलेज में दाखिला लेकर सरकारी अनुदान से अपनी एम.बी.बी.एस. की पढ़ाई पूर्ण कर सके। लेकिन इस दौरान मेडिकल प्रवेश परीक्षा के पैटर्न में बदलाव किया गया तो नए नियमों के तहत जब उसने देखा कि अब वह आगे प्रवेश परीक्षा के लिए पात्र नहीं होगा तो फिर अन्य कोई विकल्प न होने से उसे प्रायवेट काॅलेज में प्रवेश लेना पड़ा। जहाँ उसे इस बात का मलाल जरूर है कि यदि वह आरक्षित श्रेणी का होता तो निश्चित ही अब तक वह अपनी एम.बी.बी.एस. की पढ़ाई पूर्ण कर चुका होता और उसे आज फीस की जुगत में मारा-मारा नहीं भटकना पड़ता। मांझी के पिताजी फलों का हाथ ठेला लगाकर अपने परिवार का गुजर-बसर कर रहे हैं, इसके बाद भी बेहद तंगहाली में उन्होंने धुन के पक्के अपने बेटे की दृढ़ इच्छा शक्ति और कठोर परिश्रम को पढ़ लिया तभी तो उन्होंने अपना जो कुछ थोड़ा बहुत था, उसे बेचकर और रिश्तेदारों की मदद से प्रायवेट मेडिकल काॅलेज में प्रवेश दिलाने की हिम्मत दिखाई। वे पढ़े-लिखे भले ही नहीं है, लेकिन इस बात को अच्छे से समझ गए हैं कि जब उनके बेटे ने तमाम विपरीत परिस्थितियों के बावजूद मेडिकल प्रवेश परीक्षा पास की है तो निश्चित ही वह आगे भी कठोर परिश्रम कर अपनी मंजिल तक पहुंचने में कामयाब रहेगा। वे अपने बेटे की लगन देखकर समझ गए हैं कि कठिन परिश्रम के लिए आदमी में जो सहनशीलता, साहस, निर्भीकता आदि गुण होने आवश्यक है, वे उसमें विद्यमान हैं। कठोर परिश्रम करने की प्रवृत्ति प्रत्येक व्यक्ति में नहीं होती, लेकिन अपनी धुन के पक्के व्यक्ति कठिन परिश्रम करके ही सौभाग्यशाली कहलाते हैं।

धर्मेन्द्र कुमार मांझी की एम.बी.बी.एस. की पढ़ाई पूर्ण हों और उसका डॉक्टर बनने का सपना साकार हो, इस हेतु मैं आप सभी पाठकों एवं सुधिजनों से यथासंभव आर्थिक सहायता की अपील करती हूँ। कृपया अपना आर्थिक योगदान देने हेतु धर्मेंद्र कुमार माँझी से सीधे मोबाइल नंबर 9340359567 पर संपर्क करने की कृपा करें।

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रचनाएँ
घर से बाहर एक घर
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यह पुस्‍तक मेरा घर से बाहर एक सपनों का घर है
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बचपन के स्वत्रंत्रता दिवस का वह एक दिन

13 अगस्त 2016
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सामाजिक एकाकार का पर्व है गणेशोत्सव

2 सितम्बर 2016
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हमारी भारतीय संस्कृति अध्यात्मवादी है, तभी तो उसका श्रोत कभी सूख नहीं पाता है। वह निरन्तर अलख जगाकर विपरीत परिस्थितियों को भी आनन्द और उल्लास से जोड़कर मानव-जीवन में नवचेतना का संचार करती रहती है। त्यौहार, पर्व और उत्सव हमारी भारतीय संस्कृति की विशेषता रही है, जिसमें जनमानस घोर विषम परिस्थितियों में

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निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल

14 सितम्बर 2016
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दीपावली का आरोग्य चिन्तन

21 अक्टूबर 2016
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दीपावली जन-मन की प्रसन्नता, हर्षोल्लास एवं श्री-सम्पन्नता की कामना के महापर्व के रूप में मनाया जाता है। कार्तिक की अमावस्या की काली रात्रि को जब घर-घर दीपकों की पंक्ति जल उठती है तो वह पूर्णिमा से अधिक उजियारी होकर 'तमसो मा ज्योतिर्गमय' को साकार कर बैठती है। य

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कुछ ऐसा हो नूतनवर्षाभिनंदन

31 दिसम्बर 2016
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गुलाबों के खूबसूरत दरबार की कुछ गुलाबी स्मृतियां

5 जनवरी 2017
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लोकरंग में झलकता मेरे शहर का वसंत

1 फरवरी 2017
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पहले २६ जनवरी यानी गणतंत्र दिवस का दिन करीब आता तो मन राजधानी दिल्ली के 'इंडिया गेट' के इर्द-गिर्द मंडराने लगता था। तब घरतंत्र से दो चार नहीं हुए थे। बेफिक्री से घूम-फिरने में एक अलग ही आनंद था। गणतंत्र दिवस की गहमागहमी देखने इंडिया गेट

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भोपाल उत्सव मेला

8 फरवरी 2017
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भोपाल स्थित नार्थ टी.टी.नगर में न्यू मार्केट के पास एक विशाल मैदान है, जिसे दशहरा मैदान के नाम से जाना जाता है। इस मैदान में दशहरा के दिन हजारों की संख्या में शहरवासी एकत्रित होकर रावण के साथ कुम्भकरण और मेघनाथ का पुतला दहन कर दशहरा मनाते हैं। यहाँ हर वर्ष जनवरी के प्रथम सप्ताह से फरवरी के

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एक अभियान नारी आधारित गालियों के विरुद्ध भी चले

8 मार्च 2017
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रामजन्मोत्सव

4 अप्रैल 2017
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जब मंद-मंद शीतल सुगंधित वायु प्रवाहित हो रही थी, साधुजन प्रसन्नचित्त उत्साहित हो रहे थे, वन प्रफुल्लित हो उठे, पर्वतों में मणि की खदानें उत्पन्न हो गई और नदियों में अमृत तुल्य जल बहने लगा तब- नवमी तिथि मधुमास पुनीता सुक्ल पक्ष अभिजित हरि प्रीता। मध्यदिवस अति सीत न घामा

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दलित वर्ग के प्रतिनिधि और पुरोधा थे डाॅ. भीमराव रामजी अंबेडकर

13 अप्रैल 2017
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डाॅ. भीमराव आम्बेडकर का जन्म 14 अप्रैल, 1891 को महाराष्ट्र के रत्नागिरि जिले के अम्बावड़े गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम श्रीरामजी सकवाल तथा माता का नाम भीमाबाई था। उनके "आम्बेडकर" नाम के म

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मज़बूरी के हाथ

1 मई 2017
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यों रविवार छुट्टी और आराम का दिन होता है, लेकिन अगर पूछा जाय तो मेरे लिए यह सबसे ज्यादा थकाऊ और पकाऊ दिन होता है। दिन भर बंधुवा मजदूर की तरह चुपचाप हफ्ते भर के घर भर के इकट्टा हुए लत्ते-कपडे, बच्चों के खाने-पीने की फरमाईश पूरी करते-करते कब दिन ढल गया पता नहीं चलता। अभी रविवार के दिन भी जब द

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भाई-बहिन का स्नेहिल बंधन है रक्षाबंधन

5 अगस्त 2017
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भगवती दुर्गा संगठित शक्ति प्रतीक हैं

21 सितम्बर 2017
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मानव की प्रकृति हमेशा शक्ति की साधना ही रही है। महाशक्ति ही सर्व रूप प्रकृति की आधारभूत होने से महाकारक है, महाधीश्वरीय है, यही सृजन-संहार कारिणी नारायणी शक्ति है और यही प्रकृति के विस्तार के समय भर्ता तथा भोक्ता होती है। यही दस महाविद्या और नौ देवी हैं। यही मातृ-शक्ति, चाहे वह दुर्गा हो या

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दीपावली का त्यौहार प्रेमभाव का सन्देश

17 अक्टूबर 2017
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कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की त्रयोदशी को धनतेरस से शुरू होकर भाई दूज तक मनाया जाने वाला पांच दिवसीय सुख, समृद्धि का खुशियों भरा दीपपर्व ’तमसो मा ज्योतिर्गमय’ अर्थात् 'अंधेरे से प्रकाश की ओर चलो' का संदेश लेकर आता है। अंधकार पर प्रकाश का विजय का यह पर्व समाज में उल्लास, भाईचारे व प्रेमभाव का संदेश फैल

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48 स्वादिष्ट व्यंजनों का थाल है निवेदिता का कविता संग्रह 'ख्याल'

2 जनवरी 2018
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'ख्याल' कविता संग्रह नाम से मेरी सहपाठी निवेदिता ने खूबसूरत ख्यालों का ताना-बना बुना है। भोपाल स्थित स्वामी विवेकानंद लाइब्रेरी में ‘ख्याल’ का लोकार्पण हुआ तो कविताओं को सुन-पढ़कर लगा जैसे मुझे अचानक मेरे ख्यालों का भूला

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सरकारी आयोजन मात्र नहीं हैं राष्ट्रीय त्यौहार

25 जनवरी 2018
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राष्ट्रीय त्यौहारों में गणतंत्र दिवस का विशेष महत्व है। यह दिवस हमारा अत्यन्त लोकप्रिय राष्ट्रीय पर्व है, जो प्रतिवर्ष आकर हमें हमारी प्रजातांत्रिक शासन प्रणाली का भान कराता है। स्वतंत्रता के बाद भारतीयों के गौरव को स्थिर रखने के लिए डाॅ. राजेन्द्र प्रसाद की अध्यक्षता में देश के गणमान्य नेत

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राम-लक्ष्मण और परशुराम संवाद

18 अप्रैल 2018
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बचपन में हम रामलीला देखने के लिए बड़े उत्सुक रहते थे। जब-जब जहाँ-कहीं भी रामलीला के बारे में सुनते वहाँ पहुंचते देर नहीं लगती। रामलीला में सीता स्वयंवर के दिन बहुत ज्यादा भीड़ रहती, इसलिए रात को जल्दी से खाना खाकर बहुत पहले ही हम बच्चे पांडाल में चुपचाप सीता स्वयंवर के दृश्य का इंतजार करने ब

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डाॅक्टर बनने की राह आसान बनाने हेतु एक सार्वजनिक अपील

27 मई 2018
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माउंटेन मैन के नाम से विख्यात दशरथ मांझी को आज दुनिया भर के लोग जानते हैं। वे बिहार जिले के गहलौर गांव के एक गरीब मजदूर थे, जिन्होंने अकेले अपनी दृ़ढ़ इच्छा शक्ति के बूते अत्री व वजीरगंज की 55 किलोमीटर की लम्बी दूरी को 22 वर्ष के कठोर परिश्

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मौत नहीं पर कुछ तो अपने वश में होता ही है

7 जुलाई 2018
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जरा इन मासूम बच्चों को अपनी संवेदनशील नजरों से देखिए, जिसमें 14 वर्ष की सपना और उसकी 11 वर्ष की बहिन साक्षी और 11 वर्ष के भैया जिन्हें अभी कुछ दिन पहले तक माँ-बाप का सहारा था, वे 1 जुलाई 2018 रविवार को भयानक सड़क दुर्घटना भौन-धु

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'दादी' के आते ही घर-आंगन से रूठा वसंत लौट आया ...

14 फरवरी 2019
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हम चार मंजिला बिल्डिंग के सबसे निचले वाले माले में रहते हैं। यूँ तो सरकारी मकानों में सबसे निचले वाले घर की स्थिति ऊपरी मंजिलों में रहने वाले लागों के जब-तब घर-भर का कूड़ा-करकट फेंकते रहने की आदत के चलते कूड़ेदान सी बनी रहती है, फिर भी यहाँ एक सुकून वाली बात जरूर है कि बागवानी के लिए पर्याप्त जगह न

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अथ होली ढूंढ़ा कथा

20 मार्च 2019
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होली पर्व से सम्बन्धित अनेक कहानियों में से हिरण्यकशिपु के पुत्र प्रहलाद की कहानी बहुत प्रसिद्ध है। इसके अलावा ढूंढा नामक राक्षसी की कहानी का वर्णन भी मिलता है, जो बड़ी रोचक है। कहते हैं कि सतयुग में रघु नामक राजा का सम्पूर्ण पृथ्वी पर अधिकार था। वह विद्वान, मधुरभाषी होने के साथ ही प्रजा की स

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सुबह की सैर और तम्बाकू पसंद लोग

4 जून 2019
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गर्मियों में बच्चों की स्कूल की छुट्टियाँ लगते ही सुबह-सुबह की खटरगी कम होती है, तो स्वास्थ्य लाभ के लिए सुबह की सैर करना आनंददायक बन जाता है। यूँ तो गर्मियों की सुबह-सुबह की हवा और उसके कारण आ रही प

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भारतीय-संस्कृति और सभ्यता के प्रतीक हैं मिट्टी के दीए

23 अक्टूबर 2019
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आज भले ही दीपावली में चारों ओर कृत्रिम रोशनी से पूरा शहर जगमगा उठता है, लेकिन मिट्टी के दीए बिना दिवाली अधूरी है। मिट्टी के दीए बनने की यात्रा बड़ी लम्बी होती है। इसकी निर्माण प्रक्रिया उसी मिट्टी से शुरू होती है, जिससे यह सारा संसार बना है। यह मिट्टी रूप में भूमि पर विद्यमान रहती है, लेकिन एक दिन ऐस

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कभी एक दिवस नहीं एक युग महिलाओं का भी आएगा

8 मार्च 2021
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मुझे याद है जब हम बहुत छोटे थे तो हमारे घर- परिवार की तरह ही गांव से कई लोग रोजी-रोटी की खोज में शहर आकर धीरे-धीरे बसते चलते गए। शहर आकर किसी के लिए भी घर बसाना, चलाना आसान काम नहीं रहता है। घर-परिवार चलाने के लिए पैसों की आवश्यकता होती है। उसके बिना न रहने का ठिकाना, न पेट भरना और नहीं तन ढ़

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हमारी आस्था व श्रद्धा के साथ ही पर्यावरण के सर्वथानुकूल हैं मिट्टी से बनी गणेश प्रतिमाएं

9 सितम्बर 2021
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<p>प्रथम पूज्य गणपति जी की मूर्ति स्थापना के साथ ही पर्यावरण और हमारी झीलों को खतरनाक रसायनों से बचा

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हिन्दी का महोत्सव है हिन्दी दिवस

14 सितम्बर 2021
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<p>लो फिर आ गया एक पर्व की तरह हमारा हिन्दी का महोत्सव। हर वर्ष की भांति 14 सितम्बर को हिन्दी चेतना

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माटी की मूरत

20 सितम्बर 2021
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<figure><img height="auto" src="https://shabd.s3.us-east-2.amazonaws.com/articles/611d3c9442f7ed561c

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ढपली और झुनझुने का गणित

20 दिसम्बर 2021
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<figure><img height="auto" src="https://shabd.s3.us-east-2.amazonaws.com/articles/611d3c9442f7ed561c

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सूर्योपसना का महापर्व है मकर संक्रांति

12 जनवरी 2022
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हमारे भारतवर्ष में मकर संक्रांति, पोंगल, माघी उत्तरायण आदि नामों से भी जाना जाता है। वस्तुतः यह त्यौहार सूर्यदेव की आराधना का ही एक भाग है। यूनान व रोम जैसी अन्य प्राचीन सभ्यताओं में भी सूर्य और उसक

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