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ढपली और झुनझुने का गणित

20 दिसम्बर 2021

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गर्मियों के दिन थे। सुबह-सुबह सेठ जी अपने बगीचे में घूमते-घामते ताजी-ताजी हवा का आनन्द उठा रहा थे। फल-फूलों से भरा बगीचा माली की मेहनत की रंगत बयां कर रहा था। हवा में फूलों की भीनी-भीनी खुशबू बह रही थी। सेठ जी फल-फूलों का बारीकी से निरीक्षण कर रहे थे। विभिन्न प्रकार के पौधे और उन पर लदे फूल, पत्तियों की ओर उनका ध्यान आकृष्ट हो रहा था। तभी उनकी पत्नी आयी और नौकर को चाय लाने को कहती हुए उनके साथ-साथ टहलने लगी। अभी कुछ ही समय बीता होगा कि उन्हें गेट से “जय शिव शम्भू, भोलेनाथ“ की आवाज सुनाई दी। सेठ जी ने  फौरन अपने नौकर को देखने भेजा तो नौकर ने आकर बताया कि दो युवा भिखमंगे आए हैं। यद्यपि सेठ-सेठानी दोनों को भिखमंगों से बहुत चिढ़ मचती थी, फिर भी सुबह-सुबह का समय होने से सेठ जी ने नौकर को थोड़ा आटा देकर चलता करने को कहा तो सेठानी ने “ज्यादा नहीं थोड़ा देना“ की हिदायत साथ में मिला दी। वह एक कटोरी में आटा लेकर उनके पास गया, लेकिन उन भिखारियों ने “आटा नहीं, पैसे चाहिए“ कहते हुए उसे वापस लौटा दिया। नौकर को आटा वापस लाते देख सेठ जी बोले-“ क्यों दिया क्यों नहीं“ तो नौकर ने जबाव दिया, “ जी, वे आटा नहीं ले रहे हैं कहते हैं कि पैसे लाओ।“

पैसे का नाम सुनकर सेठ जी सेठानी के ओर तिरछी नजरों से देखते हुए बोले- “देखा, आज के भिखमंगों को भीख भी उनकी मर्जी का चाहिए।“

“कोई बात नहीं, पैसा दे दो, पुण्य मिलेगा।“ सेठानी बोली तो सेठ जी फटाक से बोले- “क्यों दे दें, वे ऊपर वाले से लिखा के लाए हैं क्या?“ यह सुनकर सेठानी ने समझाया कि- “अरे भई सुबह-सुबह का समय है, किसी को नाराज करना ठीक नहीं।“ , यद्यपि सेठ जी का मन एक भी पैसा देने को नहीं था, लेकिन बात न बिगड़े इसलिए उन्होंने पत्नी धर्म का पालन करना उचित समझा। वे गेट की ओर बढ़े और कड़कते हुए गुर्राए- “क्यों बे, क्या चाहिए तुम्हें।“

“दो-चार पैसे साब“ दोनों युवा भिखारियों ने साहस जुटाकर उत्तर दिया तो सेठ तमतमाया-“ पैसे चाहिए, सालो इतने हट्ठे-कट्ठे हो, फिर भी भीख मांगते हुए शर्म नहीं आती तुम्हें? भागो यहाँ से, हरामखोर कहीं के। चुल्लू भर पानी में डूब मरो।“ यह सुनते ही दोनों से वहाँ से सरपट भागने में ही अपनी भलाई समझी। वे अभी आगे बढ़े ही थे कि पीछे से सेठ जी ने थोड़ा नरमी से आवाज लगाई- “ ऐ छोकरो, इधर आओ।“ यह सुनकर दोनों आपस में कानाफूसी करने लगे। वे तय नहीं कर पा रहे थे कि क्या करें कि तभी सेठ चिल्लाया-“अबे बहरे हो गए हो क्या, पास आते क्यों नहीं।“

दोनों ‘जी सेठ जी‘, कहते हुए धीरे-धीरे सिर झुकाए उनके सामने आए तो सेठ ने अपनी जेब से 50 रुपए  का नोट निकालकर एक भिखारी के हाथ में पकड़ाते हुए दोनों को समझाईश के साथ हिदायत दी- “कल से तुम मुझे इधर-उधर कहीं नजर आए तो सीधे थाने में बंद करवा दूंगा। मुझे निकम्मों से सख्त नफरत है। कुछ काम-धंधा करो, भीख मांगना बुरी बात है, समझे?“ वे ‘जी सेठ जी‘ ‘जी सेठ जी‘  कहते हुए वहाँ से भाग खड़े हुए। रास्ते में जिस भिखारी के हाथ सेठ ने पचास का नोट पकड़ाया था, वह दूसरे को दिखाते हुए मजाक करते बोला- “अरे यार मैं तो पहले सेठ जी से बहुत डर गया था, लेकिन जैसे ही ये पचास का नोट पकड़या तो समझ आ गया कि सेठ जी नाम ही नहीं काम के भी हैं।“

सुबह-सुबह पचास का नोट मिलने के बाद दोनों ने आज बड़े-बड़े बंगलों की खाक छानने का मन बनाया। इसलिए वे बड़े-बड़े बंगलों में भीख मांगने निकले जरूर लेकिन उन्हें गेटकीपरों ने ही बंगले में घुसने से पहले से दुत्कार कर भगा दिया। इस दौरान कुछ बंगला मालिकों से वे टकराये भी लेकिन उनसे उन्हें उनकी हिकारत भरी नजरों के साथ दो-चार गालियों से स्वागत-सत्कार ही मिल पाया। निराश होकर जब शाम ढलने को आयी तो उन्हें रास्ते में एक नेताजी का बंगला नजर आया तो उन्हें एक उम्मीद की किरण नजर आई, वे वहीं ठिठक गए। उन्होंने देखा कि नेताजी कुछ हैरान-परेशान होकर अपने अमचे-चम्मचों के साथ  इधर से उधर टहल रहे है। नेताजी उनके गांव के करीब के हैं, यह बात वे जानते थे, इसलिए उन्होंने सोचा आज इनकी थाह ले ली जाए।  थोड़ी देर दोनों ने आपस में खुसुर-फुसर की और फिर एक ने अपना झुनझुना और दूसरे ने अपनी ढपली बजाते हुए गाना शुरू किया तो नेताजी का ध्यान उनकी ओर बसबस ही खिंचा चला आया। यह देखते हुए जैसे ही उनके अमचे-चम्मचों ने उन्हें वहां से भागने के लिए कहा तो नेताजी ने आगे आकर उनसे उनका गाना-बजाना जारी रखने को कहा और वहीं एक कुर्सी पर बैठकर आराम से उन्हें सुनने बैठ गए। दोनों युवा भिखारियों ने झुनझुने और ढपली की थाप के साथ  गाना-बजाना जारी किया-

संयुक्त  कुछ तो दया करो, इन बन्दों पर।

            कुछ तो दया करो, इन बन्दों पर।

पहला   ये बन्दे हैं दुःखियारे, हाय! किस्मत के मारे

संयुक्त  आ पड़ा है बोझ इनके कंधों पर

            कुछ तो दया करो, इन .............................

पहला   हाय! किस्मत का है, ये कैसा खेल निराला

दूसरा   पीते हम हर दिन जहर का प्याला

संयुक्त  है दुनिया में वही बड़ा जो

            पर भार उठाये कंधों पर

            कुछ तो दया करो इन बन्दों पर

            कुछ तो दया करो ..........................

पहला   गांव छोड़ शहर को धावै

            करने अपने सपने साकार

दूसरा    खो चुके हैं भीड़-भाड़ में

            आकर बन बैठे हैं लाचार

संयुक्त  ये लाचारी है बड़ी दुःखदायी

            न फेंको जाल परिन्दों पर

            कुछ तो दया करो इन बन्दों पर

            कुछ तो दया करो .............................

पहला    मारे-मारे फिर रहे हैं

             मुफ्त में मिलती है दुत्कार

दूसरा     खाक छाना शहर भर का

             पर मिला न कोई रोजगार

संयुक्त   हाल बुरा है शहर भर का

             जाने कितने झूलते फन्दों पर

             कुछ तो दया करो इन बंदों पर

             कुछ तो दया करो ............

ढपली की थाप और झुनझुने की झुनझुनाहट और युवा भिखारियों की बुलन्द आवाज में नेताजी अपनी पुरानी यादों में डूबते-उतराते रहे। जैसे ही गाना-बजाना समाप्त हुआ तो नेताजी को चेहरे पर एक खुशी की लहर दौड़ पड़ी। उन्होंने दोनों को अपने पास बैठने को कहा। यह देखकर पहले तो वे डर गए लेकिन जैसे ही नेताजी ने फिर अनुरोध किया तो वे उनका अनुरोध ठुकरा न सके।

नेताजी ने सबसे पहले उनके गांव के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि वे नेताजी के गांव के करीब के हैं, तो नेताजी की आत्मीयता जाग उठी। आत्मीय होकर नेताजी ने उनके घर-परिवार, उनकी पढ़ाई-लिखाई के बारे में जानकारी ली और फिर उनके बुलन्द आवाज में गाने-बजाने की बहुत तारीफ की तो दोनों का खुशी का ठिकाना न रहा। उन्होंने जब नेताजी को बताया कि वे खुद ही गीत लिखते और गाते हैं, तो यह बात नेताजी के दिल को छू गई। अब चूंकि चुनाव सिर पर थे और नेताजी इसी चिन्ता में कुछ नया-नया करने की सोच रहे थे, तो उन्हें इन युवा भिखारियों से एक उम्मीद जगी। चूंकि वेयुवा बेरोजगारी  उनके गांव के करीबी के थे, इसलिए उन्होंने उन्हें भीख मांगना बंद कर उनके लिए काम करने के रोजगार का प्रस्ताव रखा। नेताजी ने उन्हें समझाया  कि उन्हें बस चुनाव में उनके लिए गा-बजाकर चुनाव प्रचार-प्रसार कर जिताना है। यह सुनते ही पहले तो दोनों युवा भिखारियों को लगा कि कहीं नेताजी उनके साथ मसखरी तो नहीं कर रहे हैं, लेकिन जैसे ही नेताजी ने अपने अमचे-चम्मचों से उनको खिलाने-पिलाने का हुक्म देते हुए उनके रहने, खाने-पीने का इंतजाम करने को कहा तो उन्हें विश्वास हो चला कि उनके दिन फिरने वाले हैं। आखिर उन्हें भी उनका कोई माईबाप मिल गया है।

चुनाव का समय निकट आया तो प्रचार-प्रसार के दौरान उनके लिखे और गाये गाने जनता की जुबां पर इस कदर चढ़े कि नेताजी ने भारी बहुमत से जीत हासिल की। नेताजी की जीत के बाद वे उनके खासमखास लोगों में शुमार हो गए और देखते-देखते अपने बुलन्द इरादों के बल पर एक दिन पार्टी प्रवक्ता बनकर बड़े नेताओं की पंक्ति में आ खड़े हुए। आजकल सुना है कि उन्हें राजनीति के दाव-पेंचों में महारत हासिल है और उनका भीख में मिला रोजगार बेरोजगारों की एक बहुत बड़ी फौज को ढपली और झुनझुने का गणित समझाकर रोजगार दिलाने में अहम भूमिका निभा रहा है।

गीता भदौरिया

गीता भदौरिया

वाह! सार्थक व्यंग।

23 जनवरी 2022

Dinesh Dubey

Dinesh Dubey

बहुत ही बढ़िया लिखा है

20 दिसम्बर 2021

काव्या सोनी

काव्या सोनी

Behtarin likha aapne bahut hi lajwab likha 👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌

20 दिसम्बर 2021

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रचनाएँ
घर से बाहर एक घर
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यह पुस्‍तक मेरा घर से बाहर एक सपनों का घर है
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बचपन के स्वत्रंत्रता दिवस का वह एक दिन

13 अगस्त 2016
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सामाजिक एकाकार का पर्व है गणेशोत्सव

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निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल

14 सितम्बर 2016
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दीपावली का आरोग्य चिन्तन

21 अक्टूबर 2016
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कुछ ऐसा हो नूतनवर्षाभिनंदन

31 दिसम्बर 2016
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गुलाबों के खूबसूरत दरबार की कुछ गुलाबी स्मृतियां

5 जनवरी 2017
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लोकरंग में झलकता मेरे शहर का वसंत

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पहले २६ जनवरी यानी गणतंत्र दिवस का दिन करीब आता तो मन राजधानी दिल्ली के 'इंडिया गेट' के इर्द-गिर्द मंडराने लगता था। तब घरतंत्र से दो चार नहीं हुए थे। बेफिक्री से घूम-फिरने में एक अलग ही आनंद था। गणतंत्र दिवस की गहमागहमी देखने इंडिया गेट

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भोपाल उत्सव मेला

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भोपाल स्थित नार्थ टी.टी.नगर में न्यू मार्केट के पास एक विशाल मैदान है, जिसे दशहरा मैदान के नाम से जाना जाता है। इस मैदान में दशहरा के दिन हजारों की संख्या में शहरवासी एकत्रित होकर रावण के साथ कुम्भकरण और मेघनाथ का पुतला दहन कर दशहरा मनाते हैं। यहाँ हर वर्ष जनवरी के प्रथम सप्ताह से फरवरी के

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एक अभियान नारी आधारित गालियों के विरुद्ध भी चले

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रामजन्मोत्सव

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जब मंद-मंद शीतल सुगंधित वायु प्रवाहित हो रही थी, साधुजन प्रसन्नचित्त उत्साहित हो रहे थे, वन प्रफुल्लित हो उठे, पर्वतों में मणि की खदानें उत्पन्न हो गई और नदियों में अमृत तुल्य जल बहने लगा तब- नवमी तिथि मधुमास पुनीता सुक्ल पक्ष अभिजित हरि प्रीता। मध्यदिवस अति सीत न घामा

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दलित वर्ग के प्रतिनिधि और पुरोधा थे डाॅ. भीमराव रामजी अंबेडकर

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डाॅ. भीमराव आम्बेडकर का जन्म 14 अप्रैल, 1891 को महाराष्ट्र के रत्नागिरि जिले के अम्बावड़े गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम श्रीरामजी सकवाल तथा माता का नाम भीमाबाई था। उनके "आम्बेडकर" नाम के म

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मज़बूरी के हाथ

1 मई 2017
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यों रविवार छुट्टी और आराम का दिन होता है, लेकिन अगर पूछा जाय तो मेरे लिए यह सबसे ज्यादा थकाऊ और पकाऊ दिन होता है। दिन भर बंधुवा मजदूर की तरह चुपचाप हफ्ते भर के घर भर के इकट्टा हुए लत्ते-कपडे, बच्चों के खाने-पीने की फरमाईश पूरी करते-करते कब दिन ढल गया पता नहीं चलता। अभी रविवार के दिन भी जब द

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भाई-बहिन का स्नेहिल बंधन है रक्षाबंधन

5 अगस्त 2017
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भगवती दुर्गा संगठित शक्ति प्रतीक हैं

21 सितम्बर 2017
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मानव की प्रकृति हमेशा शक्ति की साधना ही रही है। महाशक्ति ही सर्व रूप प्रकृति की आधारभूत होने से महाकारक है, महाधीश्वरीय है, यही सृजन-संहार कारिणी नारायणी शक्ति है और यही प्रकृति के विस्तार के समय भर्ता तथा भोक्ता होती है। यही दस महाविद्या और नौ देवी हैं। यही मातृ-शक्ति, चाहे वह दुर्गा हो या

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दीपावली का त्यौहार प्रेमभाव का सन्देश

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कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की त्रयोदशी को धनतेरस से शुरू होकर भाई दूज तक मनाया जाने वाला पांच दिवसीय सुख, समृद्धि का खुशियों भरा दीपपर्व ’तमसो मा ज्योतिर्गमय’ अर्थात् 'अंधेरे से प्रकाश की ओर चलो' का संदेश लेकर आता है। अंधकार पर प्रकाश का विजय का यह पर्व समाज में उल्लास, भाईचारे व प्रेमभाव का संदेश फैल

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48 स्वादिष्ट व्यंजनों का थाल है निवेदिता का कविता संग्रह 'ख्याल'

2 जनवरी 2018
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'ख्याल' कविता संग्रह नाम से मेरी सहपाठी निवेदिता ने खूबसूरत ख्यालों का ताना-बना बुना है। भोपाल स्थित स्वामी विवेकानंद लाइब्रेरी में ‘ख्याल’ का लोकार्पण हुआ तो कविताओं को सुन-पढ़कर लगा जैसे मुझे अचानक मेरे ख्यालों का भूला

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सरकारी आयोजन मात्र नहीं हैं राष्ट्रीय त्यौहार

25 जनवरी 2018
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राष्ट्रीय त्यौहारों में गणतंत्र दिवस का विशेष महत्व है। यह दिवस हमारा अत्यन्त लोकप्रिय राष्ट्रीय पर्व है, जो प्रतिवर्ष आकर हमें हमारी प्रजातांत्रिक शासन प्रणाली का भान कराता है। स्वतंत्रता के बाद भारतीयों के गौरव को स्थिर रखने के लिए डाॅ. राजेन्द्र प्रसाद की अध्यक्षता में देश के गणमान्य नेत

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राम-लक्ष्मण और परशुराम संवाद

18 अप्रैल 2018
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बचपन में हम रामलीला देखने के लिए बड़े उत्सुक रहते थे। जब-जब जहाँ-कहीं भी रामलीला के बारे में सुनते वहाँ पहुंचते देर नहीं लगती। रामलीला में सीता स्वयंवर के दिन बहुत ज्यादा भीड़ रहती, इसलिए रात को जल्दी से खाना खाकर बहुत पहले ही हम बच्चे पांडाल में चुपचाप सीता स्वयंवर के दृश्य का इंतजार करने ब

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डाॅक्टर बनने की राह आसान बनाने हेतु एक सार्वजनिक अपील

27 मई 2018
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माउंटेन मैन के नाम से विख्यात दशरथ मांझी को आज दुनिया भर के लोग जानते हैं। वे बिहार जिले के गहलौर गांव के एक गरीब मजदूर थे, जिन्होंने अकेले अपनी दृ़ढ़ इच्छा शक्ति के बूते अत्री व वजीरगंज की 55 किलोमीटर की लम्बी दूरी को 22 वर्ष के कठोर परिश्

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मौत नहीं पर कुछ तो अपने वश में होता ही है

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जरा इन मासूम बच्चों को अपनी संवेदनशील नजरों से देखिए, जिसमें 14 वर्ष की सपना और उसकी 11 वर्ष की बहिन साक्षी और 11 वर्ष के भैया जिन्हें अभी कुछ दिन पहले तक माँ-बाप का सहारा था, वे 1 जुलाई 2018 रविवार को भयानक सड़क दुर्घटना भौन-धु

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'दादी' के आते ही घर-आंगन से रूठा वसंत लौट आया ...

14 फरवरी 2019
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हम चार मंजिला बिल्डिंग के सबसे निचले वाले माले में रहते हैं। यूँ तो सरकारी मकानों में सबसे निचले वाले घर की स्थिति ऊपरी मंजिलों में रहने वाले लागों के जब-तब घर-भर का कूड़ा-करकट फेंकते रहने की आदत के चलते कूड़ेदान सी बनी रहती है, फिर भी यहाँ एक सुकून वाली बात जरूर है कि बागवानी के लिए पर्याप्त जगह न

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अथ होली ढूंढ़ा कथा

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होली पर्व से सम्बन्धित अनेक कहानियों में से हिरण्यकशिपु के पुत्र प्रहलाद की कहानी बहुत प्रसिद्ध है। इसके अलावा ढूंढा नामक राक्षसी की कहानी का वर्णन भी मिलता है, जो बड़ी रोचक है। कहते हैं कि सतयुग में रघु नामक राजा का सम्पूर्ण पृथ्वी पर अधिकार था। वह विद्वान, मधुरभाषी होने के साथ ही प्रजा की स

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सुबह की सैर और तम्बाकू पसंद लोग

4 जून 2019
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गर्मियों में बच्चों की स्कूल की छुट्टियाँ लगते ही सुबह-सुबह की खटरगी कम होती है, तो स्वास्थ्य लाभ के लिए सुबह की सैर करना आनंददायक बन जाता है। यूँ तो गर्मियों की सुबह-सुबह की हवा और उसके कारण आ रही प

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भारतीय-संस्कृति और सभ्यता के प्रतीक हैं मिट्टी के दीए

23 अक्टूबर 2019
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आज भले ही दीपावली में चारों ओर कृत्रिम रोशनी से पूरा शहर जगमगा उठता है, लेकिन मिट्टी के दीए बिना दिवाली अधूरी है। मिट्टी के दीए बनने की यात्रा बड़ी लम्बी होती है। इसकी निर्माण प्रक्रिया उसी मिट्टी से शुरू होती है, जिससे यह सारा संसार बना है। यह मिट्टी रूप में भूमि पर विद्यमान रहती है, लेकिन एक दिन ऐस

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कभी एक दिवस नहीं एक युग महिलाओं का भी आएगा

8 मार्च 2021
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मुझे याद है जब हम बहुत छोटे थे तो हमारे घर- परिवार की तरह ही गांव से कई लोग रोजी-रोटी की खोज में शहर आकर धीरे-धीरे बसते चलते गए। शहर आकर किसी के लिए भी घर बसाना, चलाना आसान काम नहीं रहता है। घर-परिवार चलाने के लिए पैसों की आवश्यकता होती है। उसके बिना न रहने का ठिकाना, न पेट भरना और नहीं तन ढ़

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हमारी आस्था व श्रद्धा के साथ ही पर्यावरण के सर्वथानुकूल हैं मिट्टी से बनी गणेश प्रतिमाएं

9 सितम्बर 2021
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<p>प्रथम पूज्य गणपति जी की मूर्ति स्थापना के साथ ही पर्यावरण और हमारी झीलों को खतरनाक रसायनों से बचा

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हिन्दी का महोत्सव है हिन्दी दिवस

14 सितम्बर 2021
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<p>लो फिर आ गया एक पर्व की तरह हमारा हिन्दी का महोत्सव। हर वर्ष की भांति 14 सितम्बर को हिन्दी चेतना

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माटी की मूरत

20 सितम्बर 2021
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<figure><img height="auto" src="https://shabd.s3.us-east-2.amazonaws.com/articles/611d3c9442f7ed561c

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ढपली और झुनझुने का गणित

20 दिसम्बर 2021
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<figure><img height="auto" src="https://shabd.s3.us-east-2.amazonaws.com/articles/611d3c9442f7ed561c

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सूर्योपसना का महापर्व है मकर संक्रांति

12 जनवरी 2022
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हमारे भारतवर्ष में मकर संक्रांति, पोंगल, माघी उत्तरायण आदि नामों से भी जाना जाता है। वस्तुतः यह त्यौहार सूर्यदेव की आराधना का ही एक भाग है। यूनान व रोम जैसी अन्य प्राचीन सभ्यताओं में भी सूर्य और उसक

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