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मज़बूरी के हाथ

1 मई 2017

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यों रविवार छुट्टी और आराम का दिन होता है, लेकिन अगर पूछा जाय तो मेरे लिए यह सबसे ज्यादा थकाऊ और पकाऊ दिन होता है। दिन भर बंधुवा मजदूर की तरह चुपचाप हफ्ते भर के घर भर के इकट्टा हुए लत्ते-कपडे, बच्चों के खाने-पीने की फरमाईश पूरी करते-करते कब दिन ढल गया पता नहीं चलता। अभी रविवार के दिन भी जब दिन में थोड़ी फुर्सत मिली तो बच्चों की फरमाईश आइसक्रीम खाने को हुई तो निकल पड़ी बाजार। घर से कुछ दूरी पर सड़क की मरम्मत करते कुछ मजदूर दिखे। उनके पास ही जमीन पर एक ३-४ माह का बच्चा लेटा था, जिसके पास ही उसके भाई-बहन थे। पास बैठी तो भरी दुपहरी में भी मासूम बच्चे की मुस्कान ने मन मोह लिया। मजदूर माँ को कहकर मैं उनके बच्चों को अपने घर ले आयी। अपने बच्चों के साथ-साथ उनको भी जब खाना और आइसक्रीम खिलाई तो मन को गहरी आत्मसंतुष्टि मिली। सभी बच्चों को उस छोटी से जान के साथ खेलते-खिलाते देख सोचने लगी कि हम क्यों नहीं हर समय इन बच्चों सा मासूम दिल रख पाते हैं? क्यों नहीं ऊँच-नीच, जात-पात का भेदभाव भुलाकर मानवता का धर्म निभा पाते हैं? जाने कितने ही विचार मन में कौंध रहे थे। शाम को उनकी माँ के साथ दो घडी बैठकर बतियाना बहुत अच्छा लगा। जब वे ख़ुशी से हँसते-मुस्कराते अपने घर से निकले तो मन में आत्मसंतुष्टि तो थी कि मैंने अपना कुछ तो मानवता का फर्ज निभाया लेकिन उन्हें मैं अपने पास हमेशा नहीं रख सकती इस बात का दुःख हो रहा था। उनके चले जाने के बाद जब मुझे मजदूर दिवस का ख़याल आया तो जाने कितने ही विचार मन में कौंधने लगे।

भारत में मजदूर दिवस मनाना मेरे हिसाब से कोई गौरव की बात नहीं है। क्योंकि आज मजदूरों के हालात बहुत दयनीय है। न इंसाफ मिलता है, न पेटभर भोजन मिलता है और ना ही जीने की आजादी। मुझे तो लगता है कि भारत में मजदूर होने ही नहीं चाहिए क्योंकि मजदूर मजबूर होता है। आज भारत में कृषि से पलायन हो रहा है। आज का किसान अपने बच्चे को न तो किसान बनाना चाहता है और नहीं खुद किसान बना रहना चाहता है। गाँव से वह शहरी चकाचौंध में अपनी सुखमय जिंदगी के सपने देखता है। बस मजदूर (मजबूर) की कहानी यहीं से शुरू होती है। अपने बच्चों को थोडा बहुत पढ़ा-लिखा कर और कभी खुद भी किसानी छोड़ शहर की ओर निकल तो जाता है लेकिन योग्यता, चालाकी और पैसे की चलते हजार दो हजार की नौकरी मजबूरी में कर किसान से मजदूर बन जाता है। जहाँ रहने का कोई ठिकाना नहीं, रात को किसी फुटपाथ पर सो गए तो सुबह सही सलामत जागने की कोई गारंटी नहीं रहती। इनकी बातें हम न तो समाचार पत्र में पढ़ पाते हैं और नहीं इनके नजदीक रह पाते हैं।

तो क्या मजदूर दिवस के दिन उनकी स्थिति सुधारने के बजाय हमारा सिर्फ बड़े-बड़े झंडे-डंडे, पोस्टर आदि लेकर भीड़ जुटाकर भाषण सुनना भर रह गया है? यह बहुत गहन विचार का विषय नहीं है कि जहाँ सामंतवादी सोच के कारण चंद लोगों के पास अकूत धन-दौलत के भण्डार है, वही दूसरी और गरीब मजदूरों के पास दरिद्रता, भूख, उत्पीडन, नैराश्य, अशिक्षा और बीमारी के सिवाय कुछ नहीं है। देश में जिस तीव्र गति से करोड़पतियों की संख्या में वृद्धि हो रही है, उससे चौगुनी मजदूरों की संख्या का बढ़ना एक बहुत बड़ा चिंता का कारण है नहीं तो और क्या है? आज तमाम सरकारी-गैर सरकारी घोषणाओं, दावों के बीच भी इनकी वास्तविक कहानी आधे पेट भोजन, मिटटी के वर्तन, निकली हुई हड्डियाँ, पीली ऑंखें, सूखीखाल, फोड़ेयुक्त पैर, मुरझाये चेहरे और काली आँखों में गहरी दीनता और निराशा ही बनी हुई है। ऐसे में एक दिनी कार्यक्रम के बाद समाचार पत्रों और न्यूज चैनलों की सुर्खियों में रहने के बाद यह सोच लेना कि मजदूर दिवस सार्थक रहा, इसे कितना ठीक है? मेरे हिसाब से अगर भारत को वापस सोने की चिडि़या बनाना है तो पहले मजदूर को उसकी बदहाली से मुक्त करना होगा। .....कविता रावत

दिगम्बर नासवा

दिगम्बर नासवा

आच्छा आलेख है ...

8 मई 2017

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रचनाएँ
घर से बाहर एक घर
5.0
यह पुस्‍तक मेरा घर से बाहर एक सपनों का घर है
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बचपन के स्वत्रंत्रता दिवस का वह एक दिन

13 अगस्त 2016
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सामाजिक एकाकार का पर्व है गणेशोत्सव

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हमारी भारतीय संस्कृति अध्यात्मवादी है, तभी तो उसका श्रोत कभी सूख नहीं पाता है। वह निरन्तर अलख जगाकर विपरीत परिस्थितियों को भी आनन्द और उल्लास से जोड़कर मानव-जीवन में नवचेतना का संचार करती रहती है। त्यौहार, पर्व और उत्सव हमारी भारतीय संस्कृति की विशेषता रही है, जिसमें जनमानस घोर विषम परिस्थितियों में

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निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल

14 सितम्बर 2016
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दीपावली का आरोग्य चिन्तन

21 अक्टूबर 2016
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दीपावली जन-मन की प्रसन्नता, हर्षोल्लास एवं श्री-सम्पन्नता की कामना के महापर्व के रूप में मनाया जाता है। कार्तिक की अमावस्या की काली रात्रि को जब घर-घर दीपकों की पंक्ति जल उठती है तो वह पूर्णिमा से अधिक उजियारी होकर 'तमसो मा ज्योतिर्गमय' को साकार कर बैठती है। य

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कुछ ऐसा हो नूतनवर्षाभिनंदन

31 दिसम्बर 2016
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गुलाबों के खूबसूरत दरबार की कुछ गुलाबी स्मृतियां

5 जनवरी 2017
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लोकरंग में झलकता मेरे शहर का वसंत

1 फरवरी 2017
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पहले २६ जनवरी यानी गणतंत्र दिवस का दिन करीब आता तो मन राजधानी दिल्ली के 'इंडिया गेट' के इर्द-गिर्द मंडराने लगता था। तब घरतंत्र से दो चार नहीं हुए थे। बेफिक्री से घूम-फिरने में एक अलग ही आनंद था। गणतंत्र दिवस की गहमागहमी देखने इंडिया गेट

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भोपाल उत्सव मेला

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भोपाल स्थित नार्थ टी.टी.नगर में न्यू मार्केट के पास एक विशाल मैदान है, जिसे दशहरा मैदान के नाम से जाना जाता है। इस मैदान में दशहरा के दिन हजारों की संख्या में शहरवासी एकत्रित होकर रावण के साथ कुम्भकरण और मेघनाथ का पुतला दहन कर दशहरा मनाते हैं। यहाँ हर वर्ष जनवरी के प्रथम सप्ताह से फरवरी के

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एक अभियान नारी आधारित गालियों के विरुद्ध भी चले

8 मार्च 2017
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दलित वर्ग के प्रतिनिधि और पुरोधा थे डाॅ. भीमराव रामजी अंबेडकर

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डाॅ. भीमराव आम्बेडकर का जन्म 14 अप्रैल, 1891 को महाराष्ट्र के रत्नागिरि जिले के अम्बावड़े गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम श्रीरामजी सकवाल तथा माता का नाम भीमाबाई था। उनके "आम्बेडकर" नाम के म

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भाई-बहिन का स्नेहिल बंधन है रक्षाबंधन

5 अगस्त 2017
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भगवती दुर्गा संगठित शक्ति प्रतीक हैं

21 सितम्बर 2017
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मानव की प्रकृति हमेशा शक्ति की साधना ही रही है। महाशक्ति ही सर्व रूप प्रकृति की आधारभूत होने से महाकारक है, महाधीश्वरीय है, यही सृजन-संहार कारिणी नारायणी शक्ति है और यही प्रकृति के विस्तार के समय भर्ता तथा भोक्ता होती है। यही दस महाविद्या और नौ देवी हैं। यही मातृ-शक्ति, चाहे वह दुर्गा हो या

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दीपावली का त्यौहार प्रेमभाव का सन्देश

17 अक्टूबर 2017
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कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की त्रयोदशी को धनतेरस से शुरू होकर भाई दूज तक मनाया जाने वाला पांच दिवसीय सुख, समृद्धि का खुशियों भरा दीपपर्व ’तमसो मा ज्योतिर्गमय’ अर्थात् 'अंधेरे से प्रकाश की ओर चलो' का संदेश लेकर आता है। अंधकार पर प्रकाश का विजय का यह पर्व समाज में उल्लास, भाईचारे व प्रेमभाव का संदेश फैल

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48 स्वादिष्ट व्यंजनों का थाल है निवेदिता का कविता संग्रह 'ख्याल'

2 जनवरी 2018
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'ख्याल' कविता संग्रह नाम से मेरी सहपाठी निवेदिता ने खूबसूरत ख्यालों का ताना-बना बुना है। भोपाल स्थित स्वामी विवेकानंद लाइब्रेरी में ‘ख्याल’ का लोकार्पण हुआ तो कविताओं को सुन-पढ़कर लगा जैसे मुझे अचानक मेरे ख्यालों का भूला

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सरकारी आयोजन मात्र नहीं हैं राष्ट्रीय त्यौहार

25 जनवरी 2018
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राष्ट्रीय त्यौहारों में गणतंत्र दिवस का विशेष महत्व है। यह दिवस हमारा अत्यन्त लोकप्रिय राष्ट्रीय पर्व है, जो प्रतिवर्ष आकर हमें हमारी प्रजातांत्रिक शासन प्रणाली का भान कराता है। स्वतंत्रता के बाद भारतीयों के गौरव को स्थिर रखने के लिए डाॅ. राजेन्द्र प्रसाद की अध्यक्षता में देश के गणमान्य नेत

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राम-लक्ष्मण और परशुराम संवाद

18 अप्रैल 2018
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बचपन में हम रामलीला देखने के लिए बड़े उत्सुक रहते थे। जब-जब जहाँ-कहीं भी रामलीला के बारे में सुनते वहाँ पहुंचते देर नहीं लगती। रामलीला में सीता स्वयंवर के दिन बहुत ज्यादा भीड़ रहती, इसलिए रात को जल्दी से खाना खाकर बहुत पहले ही हम बच्चे पांडाल में चुपचाप सीता स्वयंवर के दृश्य का इंतजार करने ब

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डाॅक्टर बनने की राह आसान बनाने हेतु एक सार्वजनिक अपील

27 मई 2018
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माउंटेन मैन के नाम से विख्यात दशरथ मांझी को आज दुनिया भर के लोग जानते हैं। वे बिहार जिले के गहलौर गांव के एक गरीब मजदूर थे, जिन्होंने अकेले अपनी दृ़ढ़ इच्छा शक्ति के बूते अत्री व वजीरगंज की 55 किलोमीटर की लम्बी दूरी को 22 वर्ष के कठोर परिश्

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मौत नहीं पर कुछ तो अपने वश में होता ही है

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जरा इन मासूम बच्चों को अपनी संवेदनशील नजरों से देखिए, जिसमें 14 वर्ष की सपना और उसकी 11 वर्ष की बहिन साक्षी और 11 वर्ष के भैया जिन्हें अभी कुछ दिन पहले तक माँ-बाप का सहारा था, वे 1 जुलाई 2018 रविवार को भयानक सड़क दुर्घटना भौन-धु

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'दादी' के आते ही घर-आंगन से रूठा वसंत लौट आया ...

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हम चार मंजिला बिल्डिंग के सबसे निचले वाले माले में रहते हैं। यूँ तो सरकारी मकानों में सबसे निचले वाले घर की स्थिति ऊपरी मंजिलों में रहने वाले लागों के जब-तब घर-भर का कूड़ा-करकट फेंकते रहने की आदत के चलते कूड़ेदान सी बनी रहती है, फिर भी यहाँ एक सुकून वाली बात जरूर है कि बागवानी के लिए पर्याप्त जगह न

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अथ होली ढूंढ़ा कथा

20 मार्च 2019
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होली पर्व से सम्बन्धित अनेक कहानियों में से हिरण्यकशिपु के पुत्र प्रहलाद की कहानी बहुत प्रसिद्ध है। इसके अलावा ढूंढा नामक राक्षसी की कहानी का वर्णन भी मिलता है, जो बड़ी रोचक है। कहते हैं कि सतयुग में रघु नामक राजा का सम्पूर्ण पृथ्वी पर अधिकार था। वह विद्वान, मधुरभाषी होने के साथ ही प्रजा की स

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सुबह की सैर और तम्बाकू पसंद लोग

4 जून 2019
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गर्मियों में बच्चों की स्कूल की छुट्टियाँ लगते ही सुबह-सुबह की खटरगी कम होती है, तो स्वास्थ्य लाभ के लिए सुबह की सैर करना आनंददायक बन जाता है। यूँ तो गर्मियों की सुबह-सुबह की हवा और उसके कारण आ रही प

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भारतीय-संस्कृति और सभ्यता के प्रतीक हैं मिट्टी के दीए

23 अक्टूबर 2019
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आज भले ही दीपावली में चारों ओर कृत्रिम रोशनी से पूरा शहर जगमगा उठता है, लेकिन मिट्टी के दीए बिना दिवाली अधूरी है। मिट्टी के दीए बनने की यात्रा बड़ी लम्बी होती है। इसकी निर्माण प्रक्रिया उसी मिट्टी से शुरू होती है, जिससे यह सारा संसार बना है। यह मिट्टी रूप में भूमि पर विद्यमान रहती है, लेकिन एक दिन ऐस

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कभी एक दिवस नहीं एक युग महिलाओं का भी आएगा

8 मार्च 2021
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मुझे याद है जब हम बहुत छोटे थे तो हमारे घर- परिवार की तरह ही गांव से कई लोग रोजी-रोटी की खोज में शहर आकर धीरे-धीरे बसते चलते गए। शहर आकर किसी के लिए भी घर बसाना, चलाना आसान काम नहीं रहता है। घर-परिवार चलाने के लिए पैसों की आवश्यकता होती है। उसके बिना न रहने का ठिकाना, न पेट भरना और नहीं तन ढ़

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हमारी आस्था व श्रद्धा के साथ ही पर्यावरण के सर्वथानुकूल हैं मिट्टी से बनी गणेश प्रतिमाएं

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<p>प्रथम पूज्य गणपति जी की मूर्ति स्थापना के साथ ही पर्यावरण और हमारी झीलों को खतरनाक रसायनों से बचा

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हिन्दी का महोत्सव है हिन्दी दिवस

14 सितम्बर 2021
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<p>लो फिर आ गया एक पर्व की तरह हमारा हिन्दी का महोत्सव। हर वर्ष की भांति 14 सितम्बर को हिन्दी चेतना

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माटी की मूरत

20 सितम्बर 2021
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<figure><img height="auto" src="https://shabd.s3.us-east-2.amazonaws.com/articles/611d3c9442f7ed561c

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ढपली और झुनझुने का गणित

20 दिसम्बर 2021
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<figure><img height="auto" src="https://shabd.s3.us-east-2.amazonaws.com/articles/611d3c9442f7ed561c

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सूर्योपसना का महापर्व है मकर संक्रांति

12 जनवरी 2022
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हमारे भारतवर्ष में मकर संक्रांति, पोंगल, माघी उत्तरायण आदि नामों से भी जाना जाता है। वस्तुतः यह त्यौहार सूर्यदेव की आराधना का ही एक भाग है। यूनान व रोम जैसी अन्य प्राचीन सभ्यताओं में भी सूर्य और उसक

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