मानव की प्रकृति हमेशा शक्ति की साधना ही रही है। महाशक्ति ही सर्व रूप प्रकृति की आधारभूत होने से महाकारक है, महाधीश्वरीय है, यही सृजन-संहार कारिणी नारायणी शक्ति है और यही प्रकृति के विस्तार के समय भर्ता तथा भोक्ता होती है। यही दस महाविद्या और नौ देवी हैं। यही मातृ-शक्ति, चाहे वह दुर्गा हो या काली, यही परमाराध्या, ब्रह्यमयी महाशक्ति है। मां शक्ति एकजुटता का प्रतीक हैं। इनके जन्म स्वरूप में ही देवत्व की विजय समायी है।
मार्कण्डेय पुराण में भगवती दुर्गा के एक व्याख्यान के अनुसार महिषासुर नाम का दैत्य महा अभिमानी था, जिसने अपनी सत्ता जमाने के लिए सूर्य, अग्नि, इन्द्र, वायु, यम, वरूण आदि सभी देवताओं को अधिकारच्युत कर दिया। तब जब सभी पराजित देवता प्रजापति ब्रह्मा के पास गये और उनसे हार का कारण और जीत का उपाय पूछने लगे तो प्रजापति ने बताया कि दैवत्व कभी नहीं हारता, देवताओं की विश्रृंखलता ही हारती है। जीतने का एकमात्र उपाय संयुक्त शक्ति को अपनाना है। उस समय वहाँ भगवान विष्णु और शिवजी भी विराजमान थे। भगवान विष्णु ने महिषासुर के अत्याचारां से त्रस्त और हारे हुए देवताओं की संघ शक्ति जागृत करने के लिए तेज (शक्ति) का रूप धारण कर लिया। इसमें उन्होंने सभी देवताओं का थोड़ा-थोड़ा तेज (शक्ति) मिलाया और इस एकीकरण को अभिमंत्रित करके दुर्गा के रूप में विनिर्मित कर दिया।
संगठन की महाशक्ति के रूप में भगवती दुर्गा का अवतरण हुआ, जिनके तीन नेत्र और आठ भुजाएं थी। सभी देवताओं ने अपने-अपने आयुध उन्हें प्रदान किए। साहस और पुरूषार्थ के प्रतीक सिंह पर आरूढ़ होकर शक्तिशाली भगवती दुर्गा ने महिषासुर को ललकारा और उसका उसके साथियो के साथ संहार किया। देवता और मुनियों ने देवी की जय जयकार की। देवी ने प्रसन्न होकर कहा कि वे सदैव उनके कल्याण के लिए तत्पर रहेंगी। इसी प्रकार जब मधुकैटभ, चंड-मुंड, और शुम्भ-निशुम्भ आदि असुरों का अत्याचार बढ़ा तो देवताओं को दिए गये आश्वासन के अनुरूप देवी प्रकट हुई और विकराल रूप धारण करके भगवती ने असुरों पर आक्रमण कर उन्हें देखते-देखते प्रचंड साधनों सहित भूमिसात कर दिया। महाशक्ति दुर्गा अष्ट भुजा है। भगवती की आठ भुजाएं उनके पास आठ प्रकार की शक्तियाँं होने का प्रतीक है। शारीरिक बल, विद्या बल, चातुर्य बल, शौर्य बल, धन बल, शस्त्र बल, मनोबल और धर्म बल इन आठ प्रकार की शक्तियों का सामूहिक नाम ही दुर्गा है। मॉ इन्ही सामूहिक शक्तियों के माध्यम से हमेशा राक्षसों पर विजय पाती आयी हैं।