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अनुसंधान सहायक नई दिल्ली

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संघर्ष एवं एकलव्य पब्लिकेशन

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संघर्ष एवं एकलव्य पब्लिकेशन

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दलित महिला आदिवासी अल्पसंख्यक एवं हाशिए के समाज की आवाज

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दलित महिला आदिवासी अल्पसंख्यक एवं हाशिए के समाज की आवाज

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मशाल बुझी हुई है ....

1 मार्च 2017
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मशाल बुझी हुई है .... कोई फूल मुरझाये आपको क्या ?कोई पत्थर पर चढ़ जाए आपको क्या ?क्या कोई इंसान भी जिन्दा है यहाँचाँद पर जाने से जैसे चाँद भी पत्थर हो गया ...चांदनी हो गई उजाला ...माफ़ करना मेरे दोस्त !यहाँ पर कोई तुम्हारी उम्मीद सुनने नहीं आये हैसपने तो ‘पाश’ के समय में भी मरते थेआज सपनों के साथ इन्स

देशभक्ति गीत

28 फरवरी 2017
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मेढक को जब मैंने कहाप्यार की भाषा बोलोउसने कहा ‘ड्राऊ....’मैंने उसे फिर कहा नफरत की भाषा बोल के दिखाओ उसने कहा ‘ड्राऊ....’मैंने उसे फिर कहा चलो कोई नही, देशभक्ति गीत ही सुना दो‘ड्राऊ....’‘ड्राऊ....’‘ड्राऊ....’

आंसू

15 नवम्बर 2016
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आंसूआपने रोहित वेमुला की माँ की आँखों में आंसू देखे थे ?आपने नजीब की माँ की आँखों में भी आंसू देखे थे ?पर आपको वह नजर नहीं आये ...वह नेता नहीं थेवह नेताओं के पुत्र-पौत्र नहीं थे...आपने उस उना काण्ड में मार खाने वालों के भी आंसू देखे थेआपको उस वक्त क्या लगा था ?आपने जब वह फैसला आया जब देश में आप जो र

देश के लिये....

14 नवम्बर 2016
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जब एक फैसला हुआउस दिन एक बुजुर्ग की नजर में चमक दिखी थीदुसरे दिन बेंको में अपने नोट जो कुछ ही दिन पहले निकले थेबदलने गएउनका बीपी बस बढ़ने लगा था...वह तो देश को अपने सीने में बसा के आया थापर जब अपने आस-पास देखा बूढ़े-गरीब अपना काम छोड़कर अपने लिए खड़े थेदेश के नाम परमैं सोचते हुए आगे बढा ही थाबैंक में पै

ओरांग उटांग !!!! - सूरज बडत्या

27 अक्टूबर 2016
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ओरांग उटांग !!!!परम आदरणीय आंबेडकर विरोधियों !!!आपकी महिमा अपरम्पार हो !!! जय जय कार हो !!आपकी सारी बहस को मैंने बेहद बारीकी के साथ सतर्क निगाह से पढ़ा , और मैं अब इस नतीजे पर पहुंचा हूँ की आपके विचारों को मैं पूरी तरह से खारिज कर सकूँ !!! इसे अपने पूर्वज से असहमति दर्ज करना और उनकी सीमाएं दीखाना नही

मैं वापिस आऊंगा - सूरज बड़त्या

19 अक्टूबर 2016
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मैं वापिस आऊंगा - सूरज बड़त्या जब समूची कायनातऔर पूरी सयानात की फ़ौजखाकी निक्कर बदल पेंट पहन आपकी खिलाफत को उठ-बैठ करती-फिरती होअफगानी-फ़रमानी फिजाओं के जंगल मेंभेडिये मनु-माफिक दहाड़ी-हुंकार भरे....आदमखोर आत्माएं, इंसानी शक्लों में सरे-राह, क़त्ल-गाह खोद रहे होंसुनहले सपनों की केसरिया-दरियाबाजू खोल बुला

फटी हुई चादर

18 अक्टूबर 2016
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ठण्ड रात थीउनकी चादर फटी हुई थी,चादर कंप कंपा रही थी,कभी इधर-कभी उधर लुढ़क रहीथी.बस सिर्फ चादर फटी हुईथी,गहरी अँधेरी रात थी,ठण्ड उससे भी ज्यादा ढीठथी....रात जितनी लंबी थी, उससेभी ज्यादा लंबी हो रही थीचादर फटी हुई थी...नींद आँखों में होते हुएभी ठंडे तारों को देख रहीथी...

हरा पेड़ कोयला बन जायेगा....

16 सितम्बर 2016
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तुं ही है अभी मंजर में आ देख बहुजनो के बंजर मेंअभी तो सोया हुआ है,कुम्भकर्ण सी नींद में, तुझे जो करना है कर ले अभी हीजागेगा जब बंजर सारा, तेरा मंजर बदल देगा....वक्त की नजाकत का फायदा लिया है तूनेअपने लोगो को सत्ता में देखलाडला बनवाया है तुझेमोहरा जब उतरेगा,वह कफ़न किसी और का पुकारेगा,वह हाल बस होगा,

मुँह मत मोड़ना

14 सितम्बर 2016
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अगर दोबारा कहीं मिले चौराहे परमुबारक मुँह मत मोड़ना, आरक्षण से है, रहेगे, आगे भी बढ़ेगे, हमें मिटाने से हम नहीं मिटेगेजहाँ भी दफ़न होगे, आपके रास्ते पे वटवृक्ष बन ऊग आयेगे ....-हरेश परमार

संस्कृत किसी भाषा की मां नहीं है - दिलीप मंडल

31 अगस्त 2016
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संस्कृत किसी भाषा की मां नहीं है. किसानों ने कभी भी संस्कृत में अपनी फसल नहीं बेची. मछुआरों ने संस्कृत में मछली का रेट नही बताया. ग्वालों ने संस्कृत में दूध नहीं बेचा, सैनिक ने कमांडर से इतिहास में कभी भी संस्कृत में बात नहीं की, किसी मां ने बच्चे को संस्कृत में लोरी नहीं सुनाई, खेल के मैदान में कभी

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