संस्कृत किसी भाषा की मां नहीं है.
किसानों ने कभी भी संस्कृत में अपनी फसल नहीं बेची. मछुआरों ने संस्कृत में मछली का रेट नही बताया. ग्वालों ने संस्कृत में दूध नहीं बेचा, सैनिक ने कमांडर से इतिहास में कभी भी संस्कृत में बात नहीं की, किसी मां ने बच्चे को संस्कृत में लोरी नहीं सुनाई, खेल के मैदान में कभी संस्कृत नहीं बोली गई, बाजार में संस्कृत में बोलकर कभी कोई सौदा नहीं हुआ.
ये लोग संस्कृत नहीं बोलते थे. ये लोग जो बोलते थे और बोलते हैं, वही भारतीय भाषाएँ हैं.
संस्कृत एक फ्रॉड है. इससे किसी भाषा का जन्म कैसे हो सकता है?
यह तस्वीर उस गांव मट्टूर की है जहां के लोगों का दावा है कि वे संस्कृत में बात करते हैं. वहां कन्नड़ में लिखा बोर्ड आप देख सकते हैं.
फोटो - BBC से.
- दिलीप मंडल