ठण्ड रात थी
उनकी चादर फटी हुई थी,
चादर कंप कंपा रही थी,
कभी इधर-कभी उधर लुढ़क रही
थी.
बस सिर्फ चादर फटी हुई
थी,
गहरी अँधेरी रात थी,
ठण्ड उससे भी ज्यादा ढीठ
थी....
रात जितनी लंबी थी, उससे
भी ज्यादा लंबी हो रही थी
चादर फटी हुई थी...
नींद आँखों में होते हुए
भी
ठंडे तारों को देख रही
थी...