मैं वापिस आऊंगा
- सूरज बड़त्या
जब समूची कायनात
और पूरी सयानात की फ़ौज
खाकी निक्कर बदल पेंट पहन
आपकी खिलाफत को उठ-बैठ करती-फिरती हो
अफगानी-फ़रमानी फिजाओं के जंगल में
भेडिये मनु-माफिक दहाड़ी-हुंकार भरे....
आदमखोर आत्माएं, इंसानी शक्लों में
सरे-राह, क़त्ल-गाह खोद रहे हों
सुनहले सपनों की केसरिया-दरिया
बाजू खोल बुला-सुला रही हो
हवाओं का रुख, फिजां का मुख
बदरंग रास्तों और कातिलों की शकल ले रहा हो
ऐसे में,
खुबसूरत इंसानी वजूद
सपने
आस- उम्मीद से भरा तुम्हारा प्यार
और ,दुस्साहस उमंगो का दरिया
इकलोती जगह बचती है मेरे लिए
जहां मैं ,
फिर-फिर वापिस लौटता हूँ उर्जा स्रोत में डूबकने........
ठहर जाओ,... सत्यानाशी-भगवावासी
करमजले कंगारुओं,
मैं लौटूंगा,फिरफिर लौटूंगा, इसे तुम तय मानना
अपनी हवा, अपनी फिजां ,
अपने देश और अपने बच्चों की मुस्कराहट को
तुमसे, तुम्हारे भाड़े के वैचारिक टट्टुओं से ,
वापिस पाने के लिए
मुझसे देशभक्ति प्रमाण न मांगो पाखण्डी देशभक्तों
और न ही हमारी काबिलियत का इम्तहान लो
ये हमारा देश है ,
हमारे दादा, पडदादा , सडदादा, खडदादा
और शुरूआती फक्कड़ दादा भी
इसी खेत-खलिहान की मिटटी मैं दफ़न हैं..
इसे हंसी में मत उडाओ.. मरदुदो
अपने आकाओं-फाकाओं से पूछो..
जो गुलामी के जद में जकडे, आजादी नहीं ...
हिन्दू-मुस्लिम गा रहे थे...
हम, हमारे पिता, पडोसी कल्लन चचा,
और भीखू कसाई, रामा बंजारा, पीलू तेली
हलिया खटीक, गब्दू भंगी, मलखू चमार
आज़ादी के मतवाले बने थे सीना ताने सब के सब
ये हम मतवालों का ही देश है नाशुक्रों
मैं तुमसे फिरफिर से कहता हूँ
और इसबार एलानिया ढंग से कहता हूँ
इसे तय मान लिख लेना कहीं पे भी
मैं आउंगा ...
जरुर आऊंगा . अपने मुल्क, अपने देश
अपने पुरखों की इस धरती को आज़ाद कराने को
मैं आउंगा दोस्त, मेरे हमदम, मैं आउंगा.... !!!!