यह एक सच्ची घटना है पर आधारित कहानी समय रात के 1:30 बजे स्थल राजसमंद, उदयपुर राजस्थान।
डॉक्टर साहब डॉक्टर साहब दरवाजा खोलो, दरवाजा पीटने की जोर जोर से आवाज आ रही थी।
राजसमंद में पहला दिन था डॉक्टर साहब ने सोचा उनकी पत्नी ने भी सोचा कि यह अभी तो आए हुए कुछ ही घंटे हुए हैं कौन इतनी जोर जोर से दरवाजा खटखटा रहा है।
मेरे को तो कोई जानता भी नहीं है। यहां होगा कोई परेशानी का मारा।
उठ करके राम-राम करके दरवाजा खोला।
सामने एक दक्षिण भारतीय महिला उसका पति एक छोटे से करीब 3,4 साल के बच्चे को गोदी में उठाए रोते हुए चिल्ला रहे थे डॉक्टर साहब डॉक्टर साहब आप इस बच्चे को बचा लो पता नहीं उसको क्या हो गया है। इसका पूरा शरीर फूल गया है ।
डॉक्टर काफी काबिल थे उन्होंने उसको देखा उन्होंने उसके माता जी को बोला आप चिंता ना करो।
बस मुझे बताओ कि आपने इस को क्या खिलाया था ,और इसकी हालत किस के बाद हुई है ।
पहले यह नॉर्मल कब था।
उसकी माता जी बोली शाम को मैंने इसको कुछ सब्जी का नाम लिया वह ब्रेड और सॉस खिलाया था ।
और उस समय हॉर्लिक्स नया नया चला था तो सभी अपने बच्चों को हॉर्लिक्स जरूर देते थे उन्होंने भी दिया था।
डॉक्टर ने बोला पहले आपने कभी यह सब चीजें इसको खिलाई हैं ।
वे बोले नहीं यह बच्चा अभी तो 3 साल का है बहुत कम खाता है।
नई चीजें तो कभी ट्राई ही नहीं करता है ।
मगर आज उसने मांगा इसलिए दिया। और आज ही हॉर्लिक्स लाए थे सुबह अभी शाम को दिया ,और खाने के बाद ही इसके शरीर में धीरे-धीरे सूजन आने लगी।
और अब तो आप देखो यह पूरा लाल हो रहा है तो डॉक्टर ने पहले तो उनको बोला कि आपने इतनी देर कर दी आने में ।
इसको तो रिएक्शन आया है वह लोग बोले हम दो-तीन जगह जाकर आए हैं। किसी ने भी ट्रीटमेंट नहीं करा सब ने बोला ठीक हो जाएगा,
ठीक हो जाएगा।
मगर अब मन नहीं माना तो हमको पता लगा कि आप यहां पास में रहने आए हैं तो हम आपके पास आए हैं। डॉक्टर काफी काबिल थे उन्होंने फटाफट देख कर बोला इसको तो एलर्जी लगती है जोरदार ।
उसी समय किस्मत की बात थी घर में अट्रोपिन इंजेक्शन रखा हुआ था और एनटी।एलर्जेंट भी रखे थे ।
एड्रीनलीन भी रखा हुआ था इमरजेंसी के लिए।
फटाफट उस बच्चे को इंजेक्शन लगाया ।
इससे कम होता है तो ठीक नहीं तो उदयपुर बड़े हॉस्पिटल ले जाना पड़ेगा।
मगर किस्मत अच्छी थी थोड़ी देर बाद ही उस बच्चे के सारे लाल लाल लाल चकते जहां से वह सुज रहा था कम होने लगा।
खुजली भी कम होने लगी 3 घंटे वहां रुकने के बाद बच्चे का एलर्जी का असर एकदम कम हो गया।
फिर सुबह होने के बाद भी लोग घर गए और बहुत सारी दुआएं देते हुए आप तो हमारे लिए भगवान बन कर आए हैं।
यह घटना आज तक हम भूल नहीं पाए क्योंकि वह डॉक्टर मेरे पति ही थे। और हमेशा बहुत परेशान लोगों की परेशानी में आने वाले लोगों की अभी कोविड-19मेँ लोगों की बहुत सेवा भावना से मदद करी है ।
1977 की बात है☺️☺️ स्वरचित सत्य घटना