।।गज़ले-बयान।।
।।गज़ले-बयान।।दुष्यंत चाहते थे चिरांगा हरेक घर के लिए । निकल पड़ा हूँ मैं उसी सियाह सफर के लिए।।मुझे पता है की दरख्तों के साये भी चुभेंगे ।कौन धूप से भाग सका है उम्र भर के लिए ।।माना की भटक रहा हूँ कब से अँधेरी बस्ती में ।बनूँगा एक दिन सूरज नयी सहर के लिए ।।मेरी ग़ज़ल के गलियारे में ज़ज़्बात बिखरतें है ।म